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- चीन का रवैया

Written by जनसत्ता: भारत और चीन के बीच पंद्रहवें दौर की बातचीत अगर बेनतीजा रही, तो इसमें शायद हैरानी की बात नहीं है! दोनों पक्षों में इस बार भी कोई ठोस सहमति नहीं बन पाने के बाद यह साफ हो गया है कि चीन जब तक अपना हठधर्मिता वाला रवैया नहीं छोड़ेगा, तब तक बातचीत का कोई मतलब नहीं है। इस साल जनवरी में चौदहवें दौर की वार्ता का भी हश्र यही हुआ था। दोनों पक्ष किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए थे। पिछले साल अक्तूबर में तेरहवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही थी। तब भी चीन अपने अड़ियल रुख पर डटा रहा था।
इन वार्ताओं में बड़ा मुद्दा हाट स्प्रिंग सहित रणनीतिक महत्त्व वाले ठिकानों से सैनिकों को हटाने का है, जिसके लिए चीन राजी नहीं हो रहा। दरअसल, सीमाई इलाकों के विवादों को लेकर अब तक चीन का जैसा रवैया रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में कैसे उम्मीद की जाए कि वह हाट स्प्रिंग और दूसरी जगहों से सैनिक हटाने को तैयार हो जाएगा? हालांकि भारत ने अब तक अपनी तरफ से हर स्तर पर सकारात्मक रुख ही दिखाया है और यही अपेक्षा उससे भी की है। हर दो-तीन महीने के अंतराल में होने वाली ये वार्ताएं अगर इसी तरह बेनतीजा रहेंगी तो कैसे समाधान की तरफ बढ़ा जाएगा, यह चीन को समझना चाहिए।
विवाद खड़े करना, उन्हें बनाए रखना और पड़ोसी देशों को धमकाते रहना चीन की पुरानी रणनीति है। पिछले दो साल के घटनाक्रम से यह और साफ हो गया है। गलवान घाटी को लेकर पहले कभी विवाद सामने नहीं आया था। लेकिन जून 2020 में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया, जिसमें भारत के चौबीस जवान शहीद हो गए थे। फिर उसने इलाके में अपना सैन्य जमावड़ा बढ़ाना शुरू कर दिया।
आज भी वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास उसके करीब साठ हजार सैनिक डटे हैं। पिछले साल कई दौर की वार्ताओं के बाद कुछ जगहों से उसने अपने सैनिक इसलिए नहीं हटाए कि वह मामले को खत्म करना चाहता है, बल्कि पूर्वी लद्दाख में भारत की सैन्य तैयारियों से उस पर दबाव बना था और अमेरिका जैसा देश भी भारत के साथ आ खड़ा हुआ था। पर अब पिछले तीन दौर की वार्ताओं में चीन ने जिस तरह का रुख अपना लिया है, उससे समाधान का रास्ता आसान लगता नहीं है।
दरअसल, वार्ताओं के दौर जितने लंबे खिंचते चले जाते हैं, विवाद के विषय उतने ही पुराने पड़ते जाते हैं और जटिल रूप ले लेते हैं। सीमा विवाद दशकों पुराना हो गया है। चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा पर वह नए-नए ठिकाने खोज कर उन्हें विवादित बनाते की नीति पर चल रहा है। डोकलाम विवाद और अरुणाचल प्रदेश को लेकर जब-तब किए जाने वाले दावे इसका उदाहरण हैं।
ऐसे विवाद पैदा कर सैन्य गतिविधियां बढ़ाना, सैन्य अड्डे बना लेना, रिहायशी बस्तियां बसाना लंबे समय से जारी है। चीन के रवैए को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर समय-समय पर जो नाराजगी जताते रहे हैं, वह बेवजह नहीं है। जयशंकर का यह कहना कि इस दौर में भारत-चीन के रिश्ते जितने तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, उतने पहले कभी रहे, कोई गलत नहीं है। सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए चीन जिस तरह से समझौतों को ठेंगा दिखता रहा है और विवाद के नए-नए बहाने खोजता रहा है, उससे सीमाई विवादों का समाधान नहीं निकलने वाला।