सम्पादकीय

चीन का रुख

Gulabi
19 Oct 2020 2:07 AM GMT
चीन का रुख
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पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हजारों की संख्या में चीनी सैनिकों की मौजूदगी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हजारों की संख्या में चीनी सैनिकों की मौजूदगी को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर का चिंता व्यक्त करना स्थिति की गंभीरता को बताने के लिए काफी है। पिछले कुछ महीनों में चीन ने इस इलाके में सैनिकों के साथ-साथ भारी मात्रा में हथियार भी जमा कर लिए हैं।

चीन की ये बढ़ती सैन्य गतिविधियां उसकी युद्ध की मानसिकता और तैयारियों का संकेत हैं। इससे यह जाहिर होता है कि वह किसी न किसी बहाने भारत को उकसा कर लड़ाई छेड़ने की फिराक में है। इस साल मई से लेकर अब तक के घटनाक्रम से भी इसकी पुष्टि होती है। मई महीने में सीमा पर घुसपैठ और मारपीट की घटनाओं की परिणति 15-16 जून की आधी रात गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमले के रूप में देखने को मिली, जिसमें बीस भारतीय जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद अगस्त के आखिरी हफ्ते में भी चीनी सैनिकों ने आक्रामक रुख दिखाया, जिसे भारतीय सैनिकों की सजगता से नाकाम कर दिया गया था।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ समय में भारत को लेकर चीन ने जो रुख दिखाया है, उसका दोनों देशों के संबंधों बुरा असर पड़ा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरों से उम्मीद बंधी थी कि अब दोनों देशों के बीच रिश्तों के नए युग की शुरूआत होगी और सीमा विवाद हल करने की दिशा में बढ़ा जाएगा। पहली बार चीनी राष्ट्रपति सितंबर 2014 में भारत आए थे और दूसरी बार पिछले साल अक्तूबर में। लेकिन भारत की उम्मीदों पर पानी फिरने में साल भर भी नहीं लगा।

मई से ही चीन ने लद्दाख क्षेत्र में एलएसी पर जिस तरह की घुसपैठ और सैन्य गतिविधियां जारी रखी हुई हैं, उससे तो कहीं नहीं लगता कि चीन भारत का अच्छा दोस्त और पड़ोसी हो सकता है। ऐसे में हैरानी पैदा करने वाली बात यह है कि एलएसी पर चीन जो कर रहा है, क्या वही रिश्तों का नया युग है!

विदेश मंत्री ने खुद इस हकीकत को स्वीकार किया है कि पैंगोंग में जून में भारतीय सैनिकों पर हुए हमले ने तीस साल से चले आ रहे सामान्य रिश्तों को खत्म कर डाला। इससे न सिर्फ राजनीतिक स्तर पर, बल्कि जनता के स्तर पर भी गहरा असर पड़ा है। मुश्किल यह है कि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए भारत-चीन के बीच अब तक जो करार हुए हैं, चीन ने उनकी धज्जियां उड़ाई हैं। दोनों देशों के बीच 1996 में हुए समझौते में साफ कहा गया है कि कोई भी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा।

वर्ष 2013 में हुए सीमा रक्षा सहयोग करार में सहमति बनी थी कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने आ भी जाते हैं तो वे बल प्रयोग, गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। लेकिन चीन ने इन समझौतों को दरकिनार करते हुए भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया। हाल में उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को लेकर बेतुका बयान दे डाला, जिसका भारत ने कड़ा प्रतिवाद किया। दरअसल, अब लद्दाख में भारत ने जिस तरह की सैन्य तैयारियां कर ली हैं, उससे भी चीन परेशान है। वह समझ चुका है कि भारत अब उसे मुंहतोड़ जवाब देने की मजबूत स्थिति में है। चीन की विस्तारवादी गतिविधियां क्षेत्र में अशांति को ही जन्म दे रही हैं। सवाल है ऐसे तनावपूर्ण हालात में कैसे सीमा विवाद सुलझेगा और दो पड़ोसी देश कैसे शांति से रह पाएंगे?

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