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आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद के लिए भारत ने हाथ बढ़ाया है और उसे 6670 करोड़ रुपए की सहायता देने की घोषणा की है। भारत का यह कदम आर्थिक सुधार और विकास के लिए श्रीलंका के साथ खड़े होने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है। भारत हमेशा पड़ोसी देशों की मदद के लिए तैयार रहता है। कोरोना महामारी हो या कोई प्राकृतिक आपदा या फिर मानवीय संकट भारत ने हमेशा पड़ोसी देशों की मदद की है। हाल ही में भारत ने तालिबान शासन के बावजूद अफगानिस्तान के लोगों की मदद के लिए खाद्यान्न और दवाइयां भेजी हैं। श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने दिसम्बर में नई दिल्ली का दौरा किया था और आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद की अपील की थी। श्रीलंका इन दिनों गम्भीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। क्योंकि उसके पास करोड़ों का कर्ज चुकाने के लिए धन नहीं है। श्रीलंका ने चीन से भी करोड़ों का कर्ज लिया हुआ है। ऐसी स्थिति में श्रीलंका नए कर्ज के जाल में फंस सकता है। पिछले वर्ष 30 अगस्त को श्रीलंका सरकरा ने मुद्रा मूल्य में भारी गिरावट की थी और राष्ट्रीय वित्तीय आपातकाल की घोषणा की थी। उसके बाद से ही खाद्य कीमतों में काफी तेजी से बढ़ौतरी हुई है। हालात यह है कि लोग सौ-सौ ग्राम दूध खरीद रहे हैं और सौ ग्राम हरी मिर्च 70 रुपए की और आलू दो सौ रुपए किलो तक बिक रहा है। लोग खाने को तरस रहे हैं। 2014 के बाद से ही श्रीलंका का विदेशी कर्ज लगातार बढ़ रहा है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि फरवरी से अक्तूबर 2022 के दौरान 4.8 मिलियन अमेरिकी डालर के विदेशी ऋण का प्रबंधन कैसे किया जाए। उसे आवश्यक भुगतान के लिए कम से कम 437 अमेरिकी मिलियन डालर उधार लेने की जरूरत होगी। श्रीलंका में वित्तीय संकट के एक नहीं अनेक कारण हैं। एक कारण तो यह है कि कोरोना महामारी के चलते उसका पर्यटन उद्योग ठप्प पड़ा हुआ है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है लेकिन अर्थव्यवस्था में गिरावट का बड़ा कारण उसके शासकों का कुप्रबंधन भी है। लम्बे समय तक चले गृहयुद्ध के बाद उसने चीन से ऐसी दोस्ती की, जिसका खामियाजा उसे अब भुगतना पड़ रहा है। श्रीलंका के शासकों ने चीन से कर्ज लेकर घी पीना शुरू कर दिया और देश चीन के जाल में फंसता चला गया। चीन ने श्रीलंका की सहायता के नाम पर भारी-भरकम विकास परियोजनाएं शुरू कर दी हैं। श्रीलंका को आय तो नहीं हुई उलटा उसकी हालत खस्ता होती गई। चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते दुनिया भर में बदनाम हो चुका है। पहले वह छोटे देशों को सहायता देता है, फिर उन्हें कर्ज के जाल में फंसाता है। जब छोटे देश कर्ज नहीं चुका पाते तो उनकी जमीन हथिया लेता है। चीन ने श्रीलंका में भी ऐसा ही किया। चीन ने श्रीलंका में हम्बनटोटा में बदरंगाह का निर्माण कर्ज देकर करवाया था लेकिन जब यह परियोजना आर्थिक संकट के चलते लटक गई तो चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह को 70 फीसदी हिस्सेदारी के साथ हड़प लिया। चीन ने ऐसा कई देशों में किया है।राष्ट्रपति गोरबापा राजपक्षे द्वारा श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल घोषित करने के बाद सेना को चावल और चीनी सहित आवश्यक वस्तुओं को सुनिश्चित करने की शक्ति दी गई थी जो कि निर्धारित कीमतों पर बेची जाती हैं लेकिन लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। महामारी की शुरूआत के बाद श्रीलंका के 5 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए। दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुके श्रीलंका ने चीन के सामने कर्ज में कुछ छूट के लिए गुहार लगाई थी लेकिन चीन ने उसे टका सा जवाब देते हुए इंकार कर दिया। उलटा चीन ने भारत और अमेरिका को लपेटने की कोशिश की। दरअसल जब कोई देश विदेशी कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो उसे डिफाल्टर घोषित कर दिया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय रेटिंग एजैंसियों ने श्रीलंका की रेटिंग इतनी गिरा दी है जो दिवालिया होने से पहले की अवस्था है।संपादकीय :घबराने की जगह अलर्ट रहना जरूरी...चुनावों में कोरोना नियमों का उल्लंघन74 साल का इंसानी अलगावआम आदमी की रोजी-रोटी का सवाल!मनोहर लाल सरकार जनता की कसौटी पर खरीजनरल नरवणे की खरी खरीश्रीलंका में चीन विरोधी भावनाएं अब खुलकर व्यक्त की जा रही हैं। जब से कोलम्बो ने किंगदाओ सीविन समूह से जैविक उर्वरकों के बीस हजार टन के शिपमैंट को इस आधार पर खारिज कर दिया क्योंकि वह दूषित पाए गए थे तब से ही चीन श्रीलंका में मतभेद गहरा गए हैं। इससे पहले श्रीलंका सरकार ने जाफना तट के तीन द्वीपों में एक हाईब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना को रद्द कर दिया था, जिसका चीन ने काफी विरोध किया था। दोनों देशों के बीच कलह को हवा उस समय मिली जब श्रीलंका के लोगों ने चीन में बने सिनोफार्म कोविड टीके लगाने से साफ इंकार कर िदया। हाल ही में भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला और सेना प्रमुख एम.एम. नरवणे ने श्रीलंका की यात्रा की थी। हर्षवर्धन शृंगला ने श्रीलंका में विभिन्न परियोजनाओं पर विचार-विमर्श भी किया। श्रीलंका के चीनी उपनिवेश बनने की आशंका से जनता में नाराजगी बढ़ रही है और सार्वजनिक आक्रोश उमड़ता दिखाई दे रहा है। भारत-श्रीलंका संबंध काफी पुराने हैं। अगर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो भारत श्रीलंका का मजबूत साझीदार है। दोनों पड़ोसियों के सांस्कृतिक संबंध भी हैं। बेहतर यही होगा कि दोनों देश आपसी संबंधों की नई राहें तलाश करें और पुरानी बातों को भूलकर संबंधों को मजबूत बनाएं लेकिन इसके लिए श्रीलंका का चीन के चंगुल से निकलना जरूरी है।