सम्पादकीय

भारत की रणनीति से बदले चीन-पाकिस्तान के मिजाज़, वर्षों बाद क्या होगी सीमा पर शांति?

Gulabi
26 Feb 2021 7:56 AM GMT
भारत की रणनीति से बदले चीन-पाकिस्तान के मिजाज़, वर्षों बाद क्या होगी सीमा पर शांति?
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पिछले एक साल में भारत ने दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले ज्यादा बडी और लम्बी चुनौतियों का सामना किया है,

पिछले एक साल में भारत ने दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले ज्यादा बडी और लम्बी चुनौतियों का सामना किया है, जैसे की Coronavirus महामारी के साथ-साथ बॉर्डर पर चीन और पाकिस्तान का भारत की सीमाओं पर बेवजह विस्तारवाद. हालांकि पाकिस्तान के साथ भारत लम्बे समय से दो-दो हाथ करता रहता है, लेकिन चीन ने जो पिछले साल किया वो चौंकाने वाला तो था ही साथ ही भारत को ये एहसास कराने वाला भी था की विकास के साथ-साथ शक्ति और आत्मनिर्भरता का होना भी जरूरी है. इस आत्मनिर्भरता का मतलब सरकार के आत्मनिर्भर भारत से नहीं बल्कि अपनी सीमाओं की सुरक्षा और अपने फैसलों के लिए दूसरे मुल्कों की तरफ ना देख कर अपने फैसले अपने हिसाब से लेने से है.


पहले चीन से शुरू करते हैं, पिछले साल जब चीन ने स्टैंडॉफ की शुरुआत की थी तो उसको भी अंदाजा नही था की भारत ना सिर्फ इतने कम समय में अपनी मोबिलाइजेशन कर लेगा बल्कि कूटनीतिक (Diplomatic) मंचों पर भी चीन को विस्तारवादी कह-कह कर कटघरे में खड़ा कर देगा. इतने सवाल चीन पर खड़े कर देगा की दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चीन के नागरिकों को इसके अपमान का भी सामना करना पडेगा. स्टैंडॉफ की शुरुआत हो या गलवान हो या अभी-अभी पहले फेज के खत्म हुए Disengagement का, हर मौके पर चीन को सिवाए बदनामी और मुह की खाने के अलावा कुछ खास मिला नहीं और ऊपर से भारत से मिले आर्थिक झटके ने तो चीन के सिस्टम को भी हिला दिया.


चीन को पीछे हटता देख पाकिस्तान के भी तेवर ढीले पड़े
'खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलने' वाली पुरानी कहावत इस समय पाकिस्तान पर बिलकुल सटीक बैठती है चीन ने Disengagement के प्रस्ताव पर सहमति क्या दिखाई पाकिस्तान ने भी अपना रुख बदल दिया. हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर से सीजफायर को लेकर प्रतिबद्धता दोहराई गई. भारतीय सेना उम्मीद कर रही है कि पाकिस्तान इसे तोड़ेगा नहीं, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो भारत भी जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. दरसल 22 फरवरी को भारत और पाकिस्तान के डीजीओएम के बीच बातचीत हुई. जिसमें सीज फायर सही से लागू करने पर सहमति बनी. खास बात ये की इस प्रस्ताव की पेशकाश पाकिस्तान की तरफ से आयी है. जिसकी उम्मीद पाकिस्तान के आर्मी चीफ और प्रधानमंत्री इमरान खान के हाल ही में आए ताजा बयानों से जाहिर होने लगी थी.

क्या चीन और पाकिस्तान पर भरोसा किया जा सकता है?
लेकिन इन दोनों बदले घटनाक्रम से सवाल ये उठता है कि क्या चीन और पाकिस्तान पर भरोसा किया जा सकता है? इसका जवाब आपको इतिहास के पन्नों में दर्ज अनुभवों से तो एक ही मिलेगा "ना". आगरा समझौता कार्गिल युद्ध और 2018 में भी भारत और पाकिस्तान डीजीएमओ की बातचीत में सीजफायर लागू करने पर हुई सहमति. पाकिस्तान के साथ भारत का अनुभव कड़वा ही रहा है. आतंकी हरकतों की वजह से या फिर पाकिस्तानी सेना की भड़काऊ हरकतों से शांति प्रक्रिया बार-बार पटरी से उतरी है. लेकिन भारत फिर भी उम्मीद कर रहा है कि पाकिस्तान इस बार ऐसा नहीं करेगा. हालांकि इसके साथ ही भारत पूरी तरह से सतर्क भी है.

भारत पहले से है सतर्क
वहीं चीन के लिए भी यही कहा जा सकता है कि 2017 में डोकलाम के बाद भी भारत को उम्मीद थी कि चीन शायद अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ रिश्ते बेहतर करना चाहता है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, वहीं 2020 में चीन और भारत 1962 के बाद सबसे खराब दौर में चले गए. यहां तक की जब चीन से जनवरी 2021 में जब बातचीत निर्णायक मोड़ पर थी तब भी चीन ने नॉर्थ सिक्किम के नाथूला में एक और नया Friction Point खोल दिया.

तो बात एक दम स्पष्ट है कि शांति का मौसम भले ही बहुत अच्छा और सुहाना सा नजर आता हो लेकिन मौसम कभी भी अपना मिजाज़ बदल सकता है बस उम्मीद है कि हाल ही मिलें अनुभवों को भारत याद रखें और अपने पड़ोसियों को पड़ोसियों की तरह ही ले क्यूँकि ये पड़ोसी पहले भी मेहमान बन कर आये हैं और विश्वासघात का जख्म देकर गए हैं.


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