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- बड़ी समस्या चीन है
पी. चिदंबरम: देशभर में 26 जुलाई, 2022 को करगिल विजय दिवस मनाया गया। यह उचित ही है कि युद्ध के नायकों, खासकर शहीदों को याद करने के लिए सरकार यह दिवस मनाती है। तीन महीने तक लड़े गए इस युद्ध में पांच सौ सत्ताईस भारतीय सैनिक शहीद हुए और एक हजार तीन सौ तिरसठ जवान घायल हुए थे। देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए देश को जो कीमत चुकानी पड़ी, वह मामूली नहीं थी।
पचास साल पहले भी देश ने एक और युद्ध जीता था- बांग्लादेश मुक्ति संग्राम। भारतीय रक्षा बलों ने दो मोर्चों पर जंग लड़ी थी- तब के पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करा कर बांग्लादेश बनाने के लिए मुक्ति वाहिनी की मदद के लिए पूर्वी सीमा पर और भारत के ग्यारह वायु सैनिक अड्डों पर पाकिस्तानी वायु सेना के हमलों का जवाब देने के लिए पश्चिमी सीमा पर। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देशों पर भारत ने जम कर हमले किए।
भारत ने तीन हजार सैनिकों के शहीद होने और बारह हजार सैनिकों के घायल होने की बात कही। सोलह दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा के समक्ष बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था। युद्ध में भारत की यह सबसे बड़ी जीत थी।
ये दोनों जीत पाकिस्तान के खिलाफ थीं। 1947 और 1965 के युद्धों के बावजूद पाकिस्तान ने भारत के साथ शांति से रहना नहीं सीखा था। और 1971 की करारी हार के बाद भी इसने 1999 में करगिल में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। करगिल में हार के बाद भी पाकिस्तान अभी तक भारत में घुसपैठ की कोशिश करता रहता है।
दोनों देशों की आजादी के पचहत्तर साल बाद भारतीयों ने ऐसे झगड़ालू पड़ोसी के साथ रहने के लिए अपने को तैयार कर लिया है, जो यह जानता कि वह सामान्य युद्ध में भारत को कभी भी हरा नहीं सकता। इसलिए पाकिस्तान कोई बड़ी समस्या नहीं है।
समस्या चीन है। एक बात साफ है- पाकिस्तान के खिलाफ हर बात के लिए सीना ठोंकने वाली भाजपा सरकार को बिल्कुल भी नहीं पता कि चीन के हमलों से निपटा कैसे जाए। इसे प्रधानमंत्री मोदी को समझना चाहिए कि 11 अक्तूबर, 2019 को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में जब वे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूले में बैठे थे, तो वे उनकी मंशा को सही-सही भांप नहीं पाए।
जब समुद्र की ठंडी हवाओं के बीच झूला धीरे-धीरे झूल रहा था, तब तक तो चीन की सेना (पीएलए) भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की योजना को लेकर काफी आगे बढ़ चुकी थी। एक जनवरी, 2020 को राष्ट्रपति शी ने सैन्य कार्रवाई को अंजाम देने वाले आदेश पर दस्तखत कर दिए थे। मार्च-अप्रैल 2020 में पीएलए के जवान भारतीय क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण को पार कर घुस आए थे।
घुसपैठ के बारे में भारत को पता पांच-छह मई 2020 को चला। घुसपैठियों को हटाने की कोशिश में पंद्रह जून को भारत के बीस बहादुर सैनिक शहीद हो गए। उन्नीस जून को प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। अपनी बात का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा- 'भारतीय क्षेत्र में कोई बाहरी नहीं घुसा है न ही कोई बाहरी भारतीय क्षेत्र में था।'
फिर भी, कई सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार लगभग एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भारत का कोई नियंत्रण नहीं रह गया, जहां पहले हमारे जवान गश्त लगाया करते थे। भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर की वार्ता के सोलह दौर हो चुके हैं।
अगर भारतीय क्षेत्र में कोई बाहरी नहीं था तो फिर बीस जवानों को अपना सर्वोच्च बलिदान क्यों देना पड़ा? कभी खत्म नहीं होने वाली वार्ताओं के दौर में सैन्य कमांडरों के बीच किसे लेकर बात हो रही है? विदेश मंत्रालय बार-बार 'सैनिकों को पीछे हटाने' और 'सेना वापस बुलाने' जैसे शब्द क्यों इस्तेमाल करता है? क्या यह सच नहीं है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान और विदेश मंत्रालय के अन्य बयानों में 'पूर्व की स्थिति' बहाल करने की मांग की गई?
हमें हकीकत को स्वीकार करना चाहिए। चीन पूरी गलवान घाटी पर दावा करता है। उसका दावा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा फिंगर-चार के सहारे नियत है, न कि फिंगर-आठ के। (मई 2020 के पहले तक फिंगर-4 और फिंगर-8 के बीच के क्षेत्र में भारतीय जवान गश्त लगाते थे और यह क्षेत्र भारत के कब्जे में था।) सोलह दौर की वार्ताओं में हाट स्प्रिंग को लेकर चीन ने कुछ नहीं माना।
भारत ने देमचोक और देपसांग पर बात करनी चाही, उसने मना कर दिया। चीन अक्साई चीन और भारत से लगी तीन हजार चार सौ अट्ठासी किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र में सैन्य ढांचागत निर्माण कर रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा तक वह 5जी नेटवर्क स्थापित कर चुका है। पैंगोंग त्सो पर वह नया पुल बना चुका है। वह सीमा पर और ज्यादा साजोसामान और जवानों को ला रहा है। वह नए गांवों में अपने नागरिकों को बसा रहा है। उपग्रहों से मिली तस्वीरें भी इन सब बातों की पुष्टि करती हैं।
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने हाल में आई अपनी किताब (हाउ चाइना सीज इंडिया ऐंड द वर्ल्ड) में लिखा है- चीन भारत को एशिया में एक अधीनस्थ की भूमिका में देखना पसंद करेगा। भारत चीन के प्रभुत्व वाले विश्व और एशिया में इसका विरोध करेगा।
बिल्कुल सही है, लेकिन जो बात चीन को हठधर्मी बनाती है जैसा कि श्याम सरन लिखते हैं, वह दोनों देशों के बीच आर्थिक और सैन्य क्षमताओं में बढ़ती खाई है, जो चीन के पक्ष में जाती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 2021 में चीन की जीडीपी 16,863 अरब अमेरिकी डालर थी और भारत की 2,946 अरब अमेरिकी डालर।
भारत के विपक्षी दल हमेशा से, चाहे जो भी दल सत्ता में हो, सरकार और रक्षा बलों के साथ खड़े रहे हैं। भारत के राजनीतिक दलों और नागरिकों की एकजुटता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह एक नीति नहीं है। चीन को जवाब देने के लिए निडर और प्रभावकारी नीति तभी बनाई जा सकती है जब सरकार विपक्षी दलों को भरोसे में ले, उनके साथ तथ्यों को साझा करे और चीन को रोकने के लिए नीति बनाने पर खुल कर चर्चा करे। वरना हम वार्ताओं के दौर गिनते रहेंगे और अपने को भ्रम में रखते हुए खुश होते रहेंगे कि बदले हालात में भारत की अपनी चीन नीति है।