सम्पादकीय

भारत की कमांड थियेटर योजना बाधित करने में चीन सफल हो रहा है

Rani Sahu
16 May 2022 1:22 PM GMT
भारत की कमांड थियेटर योजना बाधित करने में चीन सफल हो रहा है
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आजादी के बाद के अपने सैन्य संघर्षों में भारत (India) के पास सफलताओं और असफलताओं का मिला-जुला अनुभव रहा है

अशोक कुमार |

आजादी के बाद के अपने सैन्य संघर्षों में भारत (India) के पास सफलताओं और असफलताओं का मिला-जुला अनुभव रहा है. 1971 में भारत ने वास्तविक कामयाबी का स्वाद चखा जब इसने न सिर्फ पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ निर्णायक जीत हासिल की बल्कि एक नए राष्ट्र बांग्लादेश (Bangladesh) का जन्म हुआ. अगर हम दुनिया भर के संघर्षों पर गौर करें तो पाएंगे कि कामयाबी की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं और मिल पाए. अपने पड़ोसी को व्यापक शिकस्त देने के बाद भी भारत आज पाकिस्तान के साथ सैन्य और राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने की कोशिशों को जारी रखे हुए है.
महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर दस्तखत किए. फिर भी 1947-48 के भारत-पाक संघर्ष की समाप्ति/रोक के परिणामस्वरूप वर्तमान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार एक बड़ा क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में आ गया जो आज भी पाकिस्तान के पास ही है. 1965 के भारत-पाक संघर्ष के दौरान हमारी कामयाबी उतनी बड़ी नहीं थी. 1966 के ताशकंद समझौते के तहत हमें एक बड़ा हिस्सा खोना पड़ा था. 1971 में भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की और यह एक ऐतिहासिक क्षण था. बहरहाल, चीन का मुकाबला करने के लिए भारत अपनी रणनीति को नई दिशा दे सकता था. गौरतलब है कि 1962 के चीन-भारत युद्ध में हमें अपमानित होना पड़ा था. कहने की जरूरत नहीं कि इस क्षेत्र में एक बड़े खतरे के रूप में चीन उभर रहा है.
भारत ने पाकिस्तान के बजाए चीन पर अपना ध्यान बढ़ाया
हमने चीनी सैन्य खतरे पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, जिसकी वजह से हमारी सैन्य क्षमताओं का विकास भी प्रभावित रहा है. हाल ही में हमने पाकिस्तान से अपना ध्यान हटाया है जो एक बहुत ही सकारात्मक कदम है. अब देश ने चीन पर ध्यान केंद्रित करने का एक समझदार रणनीतिक निर्णय लिया है. साथ ही सीमा पर अपनी सैन्य क्षमताओं को तेज करने की कोशिश की है. हालांकि अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. हमारे और चीन के बीच विभिन्न क्षेत्रों में भारी अंतर होने के बावजूद रणनीतिक दिशा सही है. इन कमियों की पहचान कर ली गई है और एक जवाबी रणनीति जरूर ही बनाई जा रही होगी.
भारत और चीन के बीच बढ़ते व्यापार के साथ यह भरोसा जताया जाना स्वाभाविक था कि इससे दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बढ़ेंगे और भविष्य में सुलह का मार्ग प्रशस्त होगा. फल-फूल रहे कोरोबार के मद्देनजर ये भी उम्मीद थी कि न केवल एलएसी पर बल्कि सीमाओं पर भी संघर्षों का समाधान होगा. बहरहाल, भारत संभवत: चीन के मौजूदा और बड़े इरादे को भांप नहीं सका जब अप्रैल 2020 के बाद चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के इस तरफ घुसपैठ को अंजाम दिया. गौरतलब है कि अक्साई चिन का विशाल इलाका पहले से ही चीन के नियंत्रण में है. एलएसी की घुसपैठ को कभी भी स्थानीय कार्रवाई नहीं कहा जाना चाहिए. ये सामरिक स्तर की कार्रवाइयां हैं और इनके सामरिक और राष्ट्रीय स्तर के प्रभाव देखे जा सकते हैं.
2020 में नए साल के पहले दिन भारत ने नियुक्त किया था अपना पहला सीडीएस
2020 में नए साल के पहले दिन भारत ने अपना पहला सीडीएस नियुक्त किया था. सरकार ने अपने सैन्य-सुधार की प्रक्रिया की शुरुआत की थी, जिसके तहत संयुक्त और संयुक्त थिएटर कमांड की स्थापना करना था. इसका उद्देश्य न केवल कई मुख्यालयों को खत्म करना था बल्कि तीनों सेवाओं के बीच बेहतर तालमेल को भी नियोजित करना था ताकि पूरे युद्ध शक्ति का अधिकतम इस्तेमाल हो सके. नवनियुक्त सीडीएस ने अभी-अभी ज्वाइंट थिएटर कमांड के वास्तविक गठन की शुरुआत की ही थी कि चार महीने से भी कम समय में चीन ने पूर्वी लद्दाख में कई जगहों पर बड़ी घुसपैठ की और कुछ जगहों पर नए दावे ठोक दिए. इतना ही नहीं, पहले से ही परस्पर सहमत बिंदुओं को भी विवादित बना दिया गया.
इस तरह की घुसपैठ के मद्देनजर भारत को अपनी सीमा पर बड़े पैमाने पर बलों को जुटाने की जरूरत है. साथ ही चीनी सीमाओं पर पर्वतीय युद्ध के लिए कुछ लड़ाकू संरचनाओं को फिर से बनाने की आवश्यकता भी है. सेना के प्रत्येक सेवा/सेवा घटक की भूमिका और परिणाम को अलग-अलग देखने के कारण कमांड थियेटर और संयुक्त कौशल (एक सामान्य रणनीति के साथ एकीकृत सैन्य संचालन करना) हमेशा एक चुनौती रही है. कोर कमांडर स्तर की पंद्रह दौर की वार्ता के बावजूद इन एलएसी घुसपैठों को अभी भी पूरी तरह से सुलझाया नहीं जा सका है और इसकी वजह से कमांड थियेटर का समयबद्ध निर्माण नहीं हो पा रहा है.
एक दृढ़ विश्वास है कि यदि उत्तरी सीमाओं पर अपनी सोच और योजना के मुताबिक कमांड थियेटर का निर्माण किया जाए तो नतीजा प्रतिकूल हो सकता है. खास तौर पर जब एलएसी के दोनों तरफ पर्याप्त संख्या में सेना आमने सामने डटी हुई है. भले ही हॉट स्प्रिंग्स में समस्या का समाधान हो गया हो, लेकिन डेपसांग और डेमचोक की समस्या को हल करने के लिए चीन की तरफ से एक उच्च स्तर की स्टेट्समैनशिप की जरूरत होगी. संदेह होना लाजिमी है कि चीन ऐसी कोशिश करेगा. इसके अलावा भले ही एलएसी गतिरोध को राजनीतिक बातचीत से सुलझा लिया जाए, लेकिन पीछे से सैनिकों की वापसी एक चुनौती बनी रहेगी. अगर ऐसा होता भी है तो चीन खुद को सीमा पर फिर से संगठित करने के विकल्प को बंद नहीं करेगा. इस प्रक्रिया में इसने कुछ समय के लिए भारत के कमांड थियेटर और व्यापक एकीकरण को प्रभावित किया है. इस तरह भारत के राष्ट्रीय योजना को बाधित कर चीन अपने सामरिक गतिविधि में लगभग सफल रहा है.
जनरल रावत की मौत के 5 महीने बाद भी नए सीडीएस की नहीं हुई है नियुक्ति
जनरल रावत की असामयिक मृत्यु के पांच महीने बाद भी उनका उत्तराधिकारी भारत सरकार नहीं चुन सकी है. यह निश्चित रूप से चीन के लिए फायदेमंद है. सीडीएस की देरी से नियुक्ति और एलएसी गतिरोध के बावजूद तेजी से बढ़ता व्यापार दरअसल 'सेल्फ गोल' की रणनीति का हिस्सा ही दिखता है. एलएसी पर चीनी कार्रवाई भारत की बहुप्रचारित कमांड थियेटर योजना को ही बाधित नहीं कर रही बल्कि इसने भारत को अपना ध्यान जमीन पर केंद्रित करने को मजबूर भी किया है. चीन की संवेदनशीलता मुख्य रूप से नौसैनिक क्षेत्र में देखने को मिलती है चाहे वह हिंद महासागर, इंडो-पैसिफिक या दक्षिण चीन सागर हो. चीन ने पहले ही नौसैनिक विस्तार अभियान शुरू कर दिया है. चीन ने दो एयरक्राफ्ट कैरियर चालू स्थिति में तैनात किए हैं और दो अतिरिक्त एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की प्रक्रिया में है.
चीन से बहुत पहले भारत एक ब्लू वाटर नेवी था, लेकिन चीन के मुकाबले हमारी क्षमताएं सिकुड़ गई हैं और पीएलए नौसेना कई मामलों में भारतीय नौसेना से आगे निकल गई है. इसके अलावा चीन विभिन्न देशों में बंदरगाह स्थापित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है. ऐसा करके वो अपने राष्ट्रीय हितों के लिए न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है बल्कि अपने विरोधियों पर काबू पाने की पर्याप्त क्षमता भी विकसित कर रहा है. गौरतलब है कि भारत ने अपनी नौसेना शक्ति को बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी उसे बहुत कुछ करने की जरूरत है. भारत ने विभिन्न देशों के साथ कई नौसैनिक अभ्यास भी किए हैं
बहरहाल, रूस-यूक्रेन संघर्ष ने एक बात बहुत साफ कर दी है कि राष्ट्रों को अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं का स्वतंत्र रूप से खुद ही ध्यान रखना चाहिए, विशेष रूप से वे देश जो नाटो जैसे किसी सुरक्षा छतरी के नीचे नहीं हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि नौसेना में क्षमता विकास पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जाए. लेकिन इस कोशिश में हमें जमीन पर अपने फोकस को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. इसके लिए बजट आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता होगी लेकिन इसके लिए सेना के पूंजीगत बजट में कटौती नहीं करना चाहिए और नौसेना और वायु सेना के लिए आवंटन में वृद्धि करना चाहिए जैसा कि चालू वर्ष के रक्षा बजट में सामने आया है.
हमेशा जीतने की कोशिश में लगा रहता है चीन
चीन की कुछ खास बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. यह एक ऐसा राष्ट्र है जो कभी भी जल्दबाजी में नहीं होता है, लेकिन हमेशा जीतने की कोशिश में लगा रहता है. सीमाओं पर हमारी क्षमता को प्रभावित किए बिना कमांड थियेटर योजना की चुनौती से निपटने की आवश्यकता है. हालांकि ये एक बहस का मुद्दा हो सकता है कि बढ़े हुए बजट का उपयोग बड़े-बड़े उपकरण/प्लेटफॉर्म के निर्माण/खरीद पर किया जाए या प्रौद्योगिकी की क्षमता को बढ़ाने के लिए. चाहे हम कुछ भी सोचें, लेकिन ये एक हकीकत है कि चीन एलएसी पर घुसपैठ कर हमारी रणनीतिक योजनाओं को बाधित कर रहा है और मुद्दा को जिंदा रख रहा है. चीन भविष्य में भी यही करता रहेगा.
Rani Sahu

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