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चीन का यह कहना कि ‘चीन एवं भारत पड़ोसी हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
चीन का यह कहना कि 'चीन एवं भारत पड़ोसी हैं और अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों के हितों को पूरा करता है' भारत के लिए बहुत ही सकारात्मक संकेत होता, बशर्ते चीन यह बात खुले मन से कहता। समस्या यह है कि चीन दुनिया को दिखाने के लिए कहता कुछ और है जबकि उसके मन में कुछ और रहता है।
चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग ने कहा कि 'दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।' लेकिन वास्तविकता यह है कि चीन अगर चालाकी नहीं दिखाता तो एलएसी का मुद्दा कब का सुलझ गया होता।
चीन की हठधर्मिता के कारण ही अब कड़ाके की ठंड के दिनों में भी एलएसी के सर्द इलाकों में दोनों देशों के जवानों को पेट्रोलिंग करनी पड़ती है और सीमा पर सैन्य साजो-सामान का भारी जमावड़ा जुटा कर रखना पड़ता है। चीनी रक्षा मंत्री फेंग का कहना है कि 'हमने कमांडर स्तर पर 15 दौर की बातचीत की है और हम इसे सुलझा लेंगे।'
लेकिन इसके साथ ही सिंगापुर में आयोजित शंगरी-ला-डायलॉग में रविवार को वे यह कहने से भी नहीं चूके कि भारत ने सीमा पर बड़ी संख्या में हथियारों का जमावड़ा किया था और भारतीय सैनिक चीनी सीमा में दाखिल हुए थे, जिसके कारण दोनों देशों के बीच में तनाव शुरू हुआ।
जबकि हकीकत यह है कि मई 2020 में चीन की सेना ने पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर कई जगह घुसपैठ करने की कोशिश की थी। साथ ही चीन ने बड़ी संख्या में अपने सैनिकों के साथ-साथ टैंक, तोप और मिसाइलों का जमावड़ा भी एलएसी पर किया था, जिसके बाद गलवान घाटी की हिंसा हुई थी और दोनों देशों के बीच तनातनी शुरू हुई थी।
दो साल बाद 15 दौर की बातचीत के चलते कई जगह पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे जरूर हट गई हैं लेकिन सीमा पर तनाव बरकरार है, क्योंकि भारत तो समझौते के अनुसार पीछे हट जाता है लेकिन चीन समझौता होने के बाद भी जब पीछे हटने की बारी आती है तो निर्धारित स्थल तक पीछे हटने से इंकार कर देता है।
इसलिए भारत को भी फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ रहा है और चीन जब तक समझौते को अमली जामा न पहनाए, वह भी पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा है। चीन एक तरफ तो शांति की बात कर रहा है, दूसरी ओर एलएसी के अपने इलाके में डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर और सैन्य तैनाती को मजबूत करने में जुटा है। इसी से उसके पाखंड का पता लग जाता है।
दरअसल भारत के अलावा अन्य छोटे-छोटे पड़ोसी देशों के भी अपने खिलाफ हो जाने के कारण चीन अब भारत को अपनी बातों से रिझाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अमेरिका के साथ मिलकर चीन के हितों को नुकसान न पहुंचाए। इसलिए चीन की चिकनी-चुपड़ी बातों के झांसे में आने के बजाय भारत को अपने हितों की दृढ़ता के साथ रक्षा करनी होगी, क्योंकि पहले 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के नारे के बीच भी ड्रैगन हमारी पीठ में छुरा घोंप चुका है।

Rani Sahu
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