सम्पादकीय

चीन को यूक्रेन को लेकर अमेरिका के साथ संबंध बेहतर होने की कोई उम्मीद नहीं है, तटस्थता एक आवश्यकता के साथ फायदेमंद भी होगा

Gulabi Jagat
18 May 2022 3:36 PM GMT
चीन को यूक्रेन को लेकर अमेरिका के साथ संबंध बेहतर होने की कोई उम्मीद नहीं है, तटस्थता एक आवश्यकता के साथ फायदेमंद भी होगा
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24 फरवरी को रूसी टैंक के यूक्रेन पहुंचने के बाद से ही चीन दुविधा में है
(प्रणय शर्मा):-
24 फरवरी को रूसी टैंक के यूक्रेन पहुंचने के बाद से ही चीन दुविधा में है. संघर्ष जितना लंबा खिंचता है चीन को व्यापार में उतना ही अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा. हालांकि यूक्रेन युद्ध से अमेरिका का ध्यान इंडो-पैसिफिक से दूर भी हो गया है. वहीं दूसरी तरफ बीजिंग को इस बात का इल्म है कि जैसे ही रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होगा अमेरिका का रुख चीन के विकास को दोबारा रोकने की तरफ हो जाएगा. रूस-यूक्रेन युद्ध ने रूस का समर्थन करने या युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने के तरीकों को लेकर चीन में बड़ी बहस को जन्म दे दिया है और जिसको लेकर वहां के लोगों की राय बंटी हुई है. संघर्ष ने 1958 की ऐगुन संधि की याद ताजा कर दी है जिसमें चीन को अपनी दो लाख तीस हजार वर्ग मील जमीन रूस को देनी पड़ी थी. इस कारण चीन के लोगों में रूस विरोधी भावनाएं भी पैदा हो रही हैं.
चीन की तटस्थता: आवश्यकता या फायदे का सौदा
बीजिंग के रेनमिन विश्वविद्यालय के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि 30 प्रतिशत लोगों ने रूस के सैन्य अभियानों का समर्थन किया, 20 प्रतिशत ने यूक्रेन का पक्ष लिया और 40 प्रतिशत तटस्थ रहे. तटस्थ रुख अपनाना चीन की जरूरत के साथ-साथ उसे फायदा पहुंचाने वाली चीज भी है. युद्ध ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन के निवेश पर बुरा प्रभाव डाला है. चीन के लिए यूक्रेन एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. हालांकि चीन-यूक्रेन के बीच का व्यापार चीन-रूस के 147 अरब डॉलर से काफी कम है, लेकिन 2021 में यूक्रेन-चीन व्यापार में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 19.3 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. पश्चिम के नेताओं को इस बात की आशंका है कि शीतकालीन ओलंपिक के दौरान बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के बीच एक बैठक में रूस ने चीन को यूक्रेन पर आक्रमण करने की अपनी योजना की जानकारी दे दी थी. हालांकि चीन ने रूसी आक्रमण को लेकर पहले से जानकारी होने से इनकार किया है.
चीन बहुत कुछ खो देगा
अमेरिका में चीन के राजदूत किन गैंग ने मार्च 2022 में द वाशिंगटन पोस्ट से कहा कि रूस के क्रियाकलापों के कारण चीन बहुत कुछ खो देगा. यूक्रेन में 6,000 से अधिक चीनी नागरिक हैं. रूस और यूक्रेन दोनों का ही चीन सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आयातक भी. "अगर हमें इस आने वाले संकट के बारे में पता होता तो हम इसे रोकने की पूरी कोशिश करते," उन्होंने कहा. पश्चिम में रणनीति विशेषज्ञ चीन के दावे को लेकर संशय में हैं. लेकिन चीन बार-बार रूस-यूक्रेन संघर्ष में अपनी तटस्थता दिखाने की कोशिश कर रहा है. चीनी टिप्पणीकारों का कहना है कि भले ही शी-पुतिन के संयुक्त बयान में "दोनों देशों के बीच दोस्ती की कोई सीमा नहीं है" और "सहयोग को लेकर कोई 'वर्जित' क्षेत्र नहीं हैं" जैसे वाक्य शामिल हैं, मगर "रणनीतिक साझेदारी" किसी भी तरह से एक सैन्य गठबंधन की बात नहीं करता. नाटो के आर्टिकल 5 की तरह यह हमले की स्थिति में दोनों देशों को एक-दूसरे की सहायता के लिए आने को मजबूर नहीं करता.
सात दशकों में चीन-रूस संबंध दोस्ती और शत्रुता के लंबे दौर से गुजरा
बीजिंग और मॉस्को ने क्राइमिया, ताइवान, साउथ चाइना सी या भारत-चीन विवादों जैसे एक-दूसरे के "मूल हितों" जैसे मुद्दों पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है. सात दशकों में चीन-रूस संबंध दोस्ती और शत्रुता के लंबे दौर से गुजरा है. 1949-1959 के बीच दोनों पक्षों के बीच मजबूत और आपसी सहयोग वाले संबंध थे लेकिन वामपंथियों के वर्ल्ड लीडर बनने को लेकर दोनों के बीच 1960 से 1989 तक जबरदस्त प्रतिस्पर्धा देखी गई. इस दौरान दोनों की सीमा पर सशस्त्र संघर्ष भी हुए. शीत युद्ध के दौरान रूस को अलग-थलग करने के लिए अमेरिका ने चीन को खूब दुलारा-पुचकारा. हालांकि, चीन 1982 से एक स्वतंत्र और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति का पालन कर रहा है जिसे पश्चिमी विश्लेषकों ने "निष्पक्षता और व्यावहारिकता" के मिश्रण के रूप में परिभाषित किया है.
बीजिंग ने न केवल चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में बल्कि 2008 के जॉर्जिया-रूस संघर्ष और 2014 के यूक्रेन-क्राइमिया संकट के दौरान भी इसी नीति का पालन किया. लेकिन चीन का कहना है कि मास्को के साथ-साथ बीजिंग को भी कमजोर करने के लिए अमेरिका यूक्रेन युद्ध को जानबूझकर लंबा खिंचने दे रहा है. चूंकि अमेरिका रूस को अपनी "प्रतिबंधों" से रोकने में विफल रहा इसलिए अब वह संघर्ष को समाप्त होने की जगह उसे लंबा खींचने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका एक पत्थर से दो शिकार करने की कोशिश कर रहा है.
भविष्य में अमेरिका चीन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की कोशिश करेगा
चीनी विश्लेषकों के अनुसार, हर बार जब रूसी और यूक्रेनी वार्ताकार शांति योजना की ओर बढ़ते दिखाई देते हैं, अमेरिका इसे विफल करने की कोशिश करता है. अमेरिका यूक्रेन को पहले से ज्यादा सैन्य सहायता इसी लक्ष्य को पाने के लिए कर रहा है. चीन यह नहीं मानता है कि यूक्रेन पर अमेरिका के साथ आने पर उसके और अमेरिका के संबंधों में आगे कोई सार्थक सुधार आएगा. चीनी विश्लेषकों ने तर्क दिया है कि भले ही चीन खुद को रूस से अलग कर ले और अमेरिकी और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का समर्थन करे, भविष्य में अमेरिका चीन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की कोशिश करेगा ही करेगा. वाशिंगटन के साथ किसी भी तरह के सहयोग से चीन को भविष्य में अमेरिकी दबाव से राहत मिलने की उम्मीद कम है.
यूक्रेन पर बीच का रास्ता चुनकर चीन ने मास्को को सैन्य सहायता देने से अब तक परहेज किया है. हालांकि, कई दूसरे देशों की तरह इसने रूस के साथ सामान्य व्यापारिक संबंध बनाए रखे हैं. चीन ने तर्क दिया कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को एक रूप देने में उसकी भी भूमिका है. मगर वैश्विक सुरक्षा को आकार देने में लीडर की भूमिका निभाने की उसकी कोई महात्वाकांक्षा नहीं है. बीजिंग ने महसूस किया कि उसकी और अमेरिका की सैन्य क्षमता में भारी असमानता के कारण, शांतिपूर्ण वातावरण को आकार देना अमेरिका पर ही छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि इससे चीन को अपने आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
हालांकि, चीन ऐसा तभी तक सोच सकता है जब तक अमेरिका ताइवान को सैन्य सहायता की पेशकश नहीं करता जिससे कि वह स्वतंत्र देश होने की घोषणा कर सके. हालांकि, यूक्रेन पर चीनी तटस्थता के बावजूद, पूर्वी एशिया और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के कई देशों का रुख उसके प्रति शत्रुतापूर्ण हो गया है. इन देशों ने अपनी बात अब तक साफ नहीं की थी. वे चाहते हैं कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करे जहां चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दावों ने क्षेत्र के सभी देशों के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है.
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