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संयम श्रीवास्तव | हिंदुस्तान एक तरफ जहां अफगानिस्तान (Afghanistan) की समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन (China) ने एक नई चाल चली है. वह तिब्बत (Tibet) की तरफ से हिंदुस्तान की मुश्किलें बढ़ाना चाहता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) हाल ही में 3 दिन की तिब्बत यात्रा पर गए थे. कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में शी जिनपिंग की यह पहली तिब्बत यात्रा थी. दरअसल तिब्बत को लेकर हिंदुस्तान और चीन में हमेशा से तनातनी रही है. चीन कहता है कि अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) भी दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और वह तो यहां तक कहता है कि अरुणाचल प्रदेश के लोगों को चीन का वीजा लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह चीन का ही हिस्सा हैं. हालांकि भारत सरकार इस बात पर हमेशा कड़ा विरोध जताती आई है और अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग मानती है.
दरअसल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. इसलिए चीन इस पर हमेशा अपनी निगाह बनाए रहता है. चीन फिलहाल तिब्बत को सिचुआन से जोड़ने की योजना बना रहा है. अगर ऐसा हो जाता है तो इससे निंग्ची प्रशासित हिस्से को पर्यटन और व्यापार में बढ़ावा मिलेगा. चीन इस इलाके में तेजी से अपने पैर पसार रहा है. चाहे टनल बनाना हो, लंबी सड़के बनानी हों या फिर यारलांग सांगपो नदी पर बड़े-बड़े बांध बनाने हों. चीन हर जगह तेजी से आगे बढ़ रहा है. ऐसा करने के पीछे सबसे बड़ी वजह है, चीन यहां भारत पर अपना प्रभाव बनाना चाहता है. उसका मानना है कि अगर वह इस हिस्से में तेजी से डेवलपमेंट कर अपने आप को स्थापित कर लेता है तो आने वाले समय में रणनीतिक रूप से यह हिस्सा चीन के लिए लोहे की दीवार साबित होगी.
निंग्ची यात्रा पर ज्यादा जोर देने के मायने क्या हैं?
शी जिनपिंग की इस तिब्बत यात्रा में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा रही, वह था निंग्ची यात्रा. दरअसल यह इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अरुणाचल प्रदेश की सीमा लगती है. चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने भी शी जिनपिंग के तिब्बत यात्रा से ज्यादा इस इलाके की यात्रा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया. शी जिनपिंग चीन के पहले बड़े नेता हैं जिन्होंने अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे इस शहर का दौरा किया. दरअसल चीन अपने अगले पंचवर्षीय योजना में अपने देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों को आपस में बेहतर तरीके से जोड़ने के लिए बड़ी योजनाएं तैयार कर रहा है और निंग्ची चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. तिब्बत में चीन के दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि वह इसके जरिए नेपाल के साथ अपने व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करता है. इन संबंधों को और मजबूत करने के लिए नई बनी लहासा-निंग्ची रेल मार्ग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं जिनपिंग
तिब्बत के दौरे को लेकर जानकार मानते हैं कि ऐसा शी जिनपिंग ने इसलिए किया क्योंकि वह भारत पर दबाव बनाना चाह रहे हैं. हालांकि उनके ऐसा करने से भारत पर कोई दबाव बना है, दिखाई तो नहीं दे रहा है. भारत तिब्बत को हमेशा से चीन का स्वायत्तशासी अंग मानता है, लेकिन भविष्य में वह तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता देगा. ऐसा भी हो सकता है. शी जिनपिंग तिब्बत की यात्रा पर अचानक इसलिए आए, क्योंकि वह दुनिया को बताना चाहते थे कि तिब्बत का मामला अभी भी चीन के लिए खत्म नहीं हुआ है.
दरअसल अभी 6 जुलाई को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को फोन कर उनको जन्मदिन की बधाई दी थी. इससे पहले वह सिर्फ ट्वीट कर बधाई दे देते थे. इससे चीन को शायद लगा हो कि भारत कहीं अपने तिब्बत की नीति से हटकर कोई नया विचार तो नहीं कर रहा है. यानि कि तिब्बत की निर्वासित सरकार को कहीं भारत मान्यता तो नहीं देगा? यही वजह रही कि 2013 से जिस नेता ने राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद तिब्बत की तरफ देखा तक नहीं, वह अचानक तिब्बत की यात्रा पर निकल गया. क्योंकि शी जिनपिंग को मालूम है कि भारत में मौजूदा नरेंद्र मोदी की सरकार फैसले लेने में पीछे नहीं हटती, इसलिए चीन को यह डर सता रहा है कि कहीं भारत ने अगर तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता दे दिया उसके लिए बड़ी मुसीबत हो जाएगी.
भारत को घेरने का पूरा प्लान तैयार
चीन बीते एक दशक से दक्षिणी तिब्बत के इस इलाके पर अपनी नजर बनाए हुए है. सोचिए कि 12 वर्ष पहले तक निंग्ची प्रांत एक अकेला ऐसा इलाका था जो सड़क से नहीं जुड़ा था. लेकिन चीन ने हिमालय में 3 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाकर मेडॉक को उत्तर में बॉम काउंटी से जोड़ दिया. इसे जोड़ने के लिए चीन ने लगभग 64 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है जो भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक जाती है. चीन जितनी तेजी से अपने इस इलाके में सड़क निर्माण कर रहा है, भारत उसके मुकाबले अभी पीछे हैं.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग निंग्ची से लहासा नए रेल रूट से गए जो पिछले महीने ही बनकर तैयार हुआ है. इसकी लंबाई 435 किलोमीटर है और भविष्य में इसे लगभग 12 सौ किलोमीटर लंबा बनाने की तैयारी चल रही है जो चेंगदू से निंग्ची को जोड़ेगा. 1962 के युद्ध के बाद से ही चीनी सेना इस इलाके में रणनीतिक दृष्टिकोण से अपनी स्थिति मजबूत करती आई है. लेकिन अब देश में एक ऐसी सरकार है जो जवाब देना जानती है. इसलिए चीन की किसी भी चाल का मौजूदा सरकार मुंहतोड़ जवाब देती है. डोकलाम संघर्ष में भी देखा गया कि भारत सरकार और भारतीय सैनिकों ने कितनी जांबाजी से चीन की लाल सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया.