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- फिर झुका चीन, सीमा...
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सोर्स- Jagran
लद्दाख में टकराव की स्थिति वाले गोगरा हाट स्प्रिंग इलाके से चीन जिस तरह अपनी सेना पीछे हटाने के लिए तैयार हुआ, उससे यही स्पष्ट हुआ कि वह शक्ति की ही भाषा समझता है। यदि भारत ने चीन के समक्ष और साथ ही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार दृढ़ता के साथ यह नहीं कहा होता कि जब तक सीमा पर टकराव वाले हालात बने रहते हैं, तब तक उससे संबंध सामान्य नहीं हो सकते, तो शायद चीनी सेना अपने कदम पीछे खींचने के लिए विवश नहीं होती।
निःसंदेह उसकी विवशता का एक कारण यह भी रहा कि भारत ने भी सीमा पर अपने सैनिकों की तैनाती के साथ सतर्कता बढ़ा दी थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि चीन लद्दाख सीमा पर टकराव टालने वाले हालात खत्म करने के लिए इसलिए बाध्य हुआ, क्योंकि अगले सप्ताह शंघाई सहयोग संगठन की बैठक होने वाली है, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री के अतिरिक्त चीनी राष्ट्रपति को भी शामिल होना है। अभी यह स्पष्ट नहीं कि उक्त बैठक में दोनों नेताओं के बीच कोई वार्ता होगी या नहीं, लेकिन चीन को यह संदेश देना तो आवश्यक है ही कि वह उसकी दादागीरी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं।
जून 2020 में गलवन घाटी की घटना के बाद चीन जिस तरह लंबे समय तक आक्रामक रवैया अपनाए रहा और सीमा विवाद को परे रखकर संबंधों को सामान्य बनाने की पैरवी करता रहा, वह उसकी चालबाजी के अलावा और कुछ नहीं था। चूंकि चीन की कथनी और करनी में सदैव अंतर होता है और वह द्विपक्षीय संबंधों को मनमाने तरीके से परिवर्तित एवं परिभाषित करते रहता है, इसलिए भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मई 2020 से पहले वाली स्थिति बहाल हो।
सच तो यह है कि चीन से तब तक सतर्क रहने और सीमाओं पर चौकसी बरतने रहने की आवश्यकता है, जब तक वह सीमा विवाद को सुलझाने के लिए आगे नहीं आता। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए दो दशक से भी अधिक समय से वार्ता जारी रहने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझता, तब तक भारत को वन चाइना पालिसी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करने से इन्कार करना चाहिए।
यदि चीन भारतीय हितों के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाता तो भारत को भी उसके हितों के प्रति संवेदनशील होने की कहीं कोई आवश्यकता नहीं। चूंकि गोगरा हाट स्प्रिंग इलाके में पहले वाली स्थिति कायम हो जाने का यह मतलब नहीं कि चीन भरोसे के काबिल हो गया है, इसलिए भारत को उस पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने के प्रयास भी जारी रखने चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि अभी तक वांछित परिणाम हासिल नहीं हो सके हैं।
Rani Sahu
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