सम्पादकीय

बड़ी चुनौती बनता चीन: तमाम खामियों और अड़ियल रवैये के बाद भी चीन ने की तेज तरक्की, भारत को नहीं करनी चाहिए अनदेखी

Triveni
4 July 2021 4:48 AM GMT
बड़ी चुनौती बनता चीन: तमाम खामियों और अड़ियल रवैये के बाद भी चीन ने की तेज तरक्की, भारत को नहीं करनी चाहिए अनदेखी
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चीन पर राज करने वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीसीपी की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर चीनी राष्ट्रपति शी चिंनफिंग ने थ्येनआनमन चौक से अपना जो भाषण दिया, उससे न केवल चीन की विस्तारवादी सोच झलकती है,

भूपेंद्र सिंह| चीन पर राज करने वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीसीपी की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर चीनी राष्ट्रपति शी चिंनफिंग ने थ्येनआनमन चौक से अपना जो भाषण दिया, उससे न केवल चीन की विस्तारवादी सोच झलकती है, बल्कि उसके दंभ के कारण विश्व के सामने आने वाली चुनौतियों की भी झलक मिलती है। माओत्से तुंग ने जब सोवियत संघ से प्रेरित होकर 1 जुलाई 1921 को सीसीपी की नींव रखी थी, तब उनका मकसद चीन को गरीबी से बाहर निकालकर देश को उस मुकाम पर पहुंचाना था, जहां वह तीन-चार सौ वर्ष पहले था। एक समय भारत और चीन, विश्व व्यापार में अपना आधिपत्य रखते थे, लेकिन समय के साथ दोनों पिछड़ गए और उनकी गिनती गरीब देशों में होने लगी। कभी विश्व व्यापार में चीन की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो 1941 में आधा प्रतिशत पर आ गई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसे रहे कि चीनी नेताओं को अमीर देशों के सामने अपमानित होना पड़ा। इस अपमान से विचलित हुए बगैर चीनी नेता अपने देश को आगे ले जाने की रूपरेखा बनाने में जुटे रहे।

चीन ने आर्थिक तरक्की के बल पर करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा के बाहर निकाला
चीन ने पिछले तीन-चार दशकों में अपनी आर्थिक तरक्की के बल पर करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा के बाहर निकाला और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर विश्व के पूरे व्यापार पर करीब 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी कायम कर ली। ऐसी उपलब्धि की मिसाल मिलना कठिन है। 50 वर्षों में दो प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी कर लेना किसी चमत्कार से कम नहीं। इस चमत्कार के पीछे चीनी नेताओं की दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता रही। चीन का यकीन इस पर नहीं कि जनता की भागीदारी से विकास होता है। अभी भी वह एक पार्टी वाली शासन व्यवस्था को आदर्श मान रहा है। लोकतंत्र और साम्यवाद के तौर-तरीके बिलकुल अलग होते हैं। जहां लोकतंत्र में जनता के वोट से सरकारें बनती हैं वहीं साम्यवाद में एक ही पार्टी का एकछत्र राज चलता है। जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं वहां पर कानूनों का निर्माण इस सोच के साथ किया जाता है कि सबको समान अधिकार मिलें और किसी का दमन न हो। ऐसे देशों के औसत नागरिकों की सोच में अधिकार सर्वोच्च हो जाते हैं और कर्तव्य पीछे। चीनी नागरिकों के पास कोई खास अधिकार नहीं हैं और चीनी सत्ता को इसकी परवाह भी नहीं की कि अपने नागरिकों के दमन पर विश्व उसके बारे में क्या सोचेगा? चीन ने जैसे थ्येनआनमन चौक पर लोगों का दमन किया, वैसे ही उइगर मुसलमानों का कर रहा है। चीन के अधिकांश नागरिक यह मानते हैं कि देश के सामने उनके अधिकार गौण हैं।
चीन ने अपने कारखानों को सरकारी मदद से खड़ा किया
1970 के आसपास चीन ने अपने कारखानों को सरकारी मदद से खड़ा किया। आज भी उसके अधिकांश कारखाने सरकारी मदद से ही चलते हैं। वैसे तो यह भारत की तरह के सार्वजनिक उपक्रम हैं, पर उत्पादकता के मामले में चीन के कारखानों का कोई सानी नहीं। भारत में चाहे सरकारी मदद से चलते कारखाने हों या प्राइवेट सेक्टर के, वे उत्पादकता के मामले में चीन के सामने ठहरते ही नहीं। इसी कारण जिस समय विकसित देश अपने उद्योगों की आउटसोर्सिंग कर रहे थे, उस वक्त उन्होंने चीन को पसंद किया और भारत हाथ मलता रह गया।
चीन को अपनी योजनाओं को अमल में लाने में बाधा का सामना नहीं करना पड़ता
चीन की तरक्की का कारण यह भी है कि उसे अपनी योजनाओं को अमल में लाने में किसी तरह की बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। सबसे बड़ी बात यह है कि पहले के नेताओं ने चीन के विकास का जो सपना देखा था, उसे ही उनके उत्तराधिकारियों ने देखा और उसे साकार करने में जुटे रहे। इसके विपरीत भारत के नेताओं ने देश के विकास का कोई साझा सपना नहीं देखा। यहां हर सरकार अपनी तरह से देश का विकास करना चाहती है।
चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय की दृष्टि में एक गैर-जिम्मेदार राष्ट्र
इसमें दो राय नहीं कि चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय की दृष्टि में एक गैर-जिम्मेदार राष्ट्र है। वह मानवाधिकारों को कोई महत्व नहीं देता और पड़ोसी राष्ट्रों को धमकाता रहता है, लेकिन इस सबके बाद भी उसने अपने लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालने में सफलता हासिल की है। नि:संदेह चीन की इस बात के लिए आलोचना होती है कि वह गरीब देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाता है और खुद से असहमत अपने लोगों का दमन करता है, लेकिन वह अपने आर्थिक विकास को सर्वोच्च महत्व देता है और हर हाल में उस पर ध्यान केंद्रित किए रहता है। चूंकि वह अपनी आर्थिक ताकत के नशे में चूर है इसलिए आगे भी विश्व समुदाय की निंदा-आलोचना की परवाह नहीं करने वाला। वह महाशक्ति बनने और अमेरिका का स्थान लेने को तैयार है। आज अमेरिका के सामने उसकी वही स्थिति है, जो एक समय सोवियत संघ की थी। चीन के अड़ियलपन और अहंकारी रवैये की कितनी भी आलोचना की जाए, उसने आर्थिक विकास के मामले में जो कुछ हासिल किया है, उसकी अनदेखी कम से कम भारत को नहीं करनी चाहिए।
चीन अपनी जरूरत का हर सामान खुद बनाता, भारत दूसरे देशों पर निर्भर
जहां भारत अपनी तमाम जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है, वहीं चीन अपनी जरूरत का हर सामान खुद बनाता है। इतना ही नहीं, वह दुनिया का कारखाना बना हुआ है। डिजिटल तकनीक के मामले में तो वह अमेरिका से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है। एक समय चीनी वस्तुओं की गुणवत्ता घटिया होती थी, लेकिन धीरे-धीरे वह गुणवत्ता प्रधान वस्तुओं का निर्माण करने में सक्षम हो रहा है। उसके विश्वविद्यालय भी विश्वस्तरीय बन रहे हैं और शोध-तकनीक के संस्थान भी। वह कई मामलों में अमेरिका के समकक्ष खड़ा नजर आता है। उसकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की धाक बढ़ती जा रही है। विश्व में शायद ही कोई देश हो, जो व्यापार में चीन का प्रमुख सहयोगी न हो। चीनी सत्ता अभी भी यह नहीं मानती कि चीन शिखर पर है। उसकी सोच चीन को सिरमौर बनाने की है। चीन के इरादों से भारत समेत दुनिया के लोकतांत्रिक देशों का सशंकित होना स्वाभाविक है। भारत को कहीं अधिक चिंतित होना चाहिए, क्योंकि चीन न केवल पड़ोसी देश है, बल्कि हमारी तरक्की की राह को रोकना चाहता है। ऐसे में हमारे नेताओं को यह सोचना होगा कि चीन का मुकाबला कैसे किया जाए? राजनीतिक नेतृत्व के साथ आम जनता को भी अपनी व्यवस्था की खामियों के बारे में सोचना होगा। यदि इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचा गया तो चीन का मुकाबला करना और कठिन होता जाएगा।


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