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प्राथमिक स्कूलों का खुलना अब इसलिए आवश्यक
रीतिका खेड़ा। दिल्ली में ऐसा लग रहा है कि सरकार स्कूल बंद रखने के बहाने ढूंढ रही हो। हालांकि अन्य कई राज्यों में पूरी क्षमता के साथ स्कूल खोलने की अनुमति दी गई है। पर दिल्ली में 18 महीनों बाद दबाव के कारण प्राथमिक स्कूल खोले, तब भी केवल 50% उपस्थिति के साथ। हालांकि एसी वाले सिनेमा में 100% उपस्थिति की अनुमति है। मुश्किल से एक सप्ताह स्कूल चले कि उन्हें फिर से प्रदूषण के कारण बंद कर दिया। पहले निर्माण कार्यों को अनुमति मिली, फिर स्कूलों की याद आई।
नब्बे के दशक तक देश में यूनिवर्सल नामांकन भी एक चुनौती थी। पिछले 20 सालों में देश की एक बड़ी उपलब्धि यह थी कि हर बच्चे का रोज स्कूल जाना एक आम बात बन गई। कोरोना ने इस अहम मानक पर बड़ी ठेस पहुंचाई है। कोविड से बचाव के लिए शुरू के महीनों में लॉकडाउन का सहारा लिया गया। केवल 'एसेंशियल सर्विस'(आवश्यक सेवाओं) के खुले रहने की अनुमति थी। एसेंशियल सर्विस में किन सेवाओं को शामिल होना चाहिए, इसका निर्णय भी प्रश्न योग्य है।
प्राथमिक स्कूल को कई देशों ने इस श्रेणी में रखा है। यूनिसेफ और युनेस्को ने कहा कि प्राथमिक स्कूल को जरूरत पड़ने पर आखिर में बंद होना चाहिए और सबसे पहले खोलना चाहिए। इसके अलावा छोटे बच्चों के लिए स्कूल जाना अहम है, जबकि बड़े (आठवीं से आगे) बच्चों के लिए फिर भी घर पर पढ़ाई मुमकिन है। इसके विपरीत दिल्ली व अन्य राज्यों में बड़ी कक्षाओं के लिए स्कूल पहले खोले गए और 18 महीनों बाद प्राथमिक स्कूल खोलने का ऐलान तो किया, लेकिन साथ ही क्लास में 50% क्षमता का आदेश भी था।
आपको लगेगा कि इसमें समझदारी है, क्योंकि दूरी रखना जरूरी है। लेकिन याद रखिए कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने यह भी कहा है कि खुली जगह और ऐसे कमरे जहां वेंटिलेशन अच्छा है, वहां संक्रमण का डर कम है। सभी बच्चों के लिए स्कूल आना अनिवार्य करने की जरूरत नहीं, जो अभिभावक बच्चों को भेजना चाहें, उन्हें ऑफलाइन शिक्षा मिलनी चाहिए; बाकियों के लिए ऑनलाइन जारी रह सकता है।
दिल्ली डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने अपने आदेशों में कई महीनों से शहर के सिनेमा-मल्टीप्लेक्स में 100% क्षमता में लोगों को जाने की अनुमति दे रखी है, वह भी जब सिनेमा में ताजी हवा का कोई प्रबंध नहीं, क्योंकि वहां एयर-कंडीशनर चलते हैं और स्कूलों में ज्यादातर वेंटिलेशन अच्छा होता है। इससे एक ही संकेत मिल रहा है- बिजनेस का बोलबाला है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई की परवाह नहीं।
स्कूल संक्रमण के डर के कारण बंद किए जा रहे हैं, लेकिन क्या नीति निर्माताओं को यह नहीं दिख रहा कि बच्चे बस्तियों की गलियों में घूम रहे हैं? उन्हें घर पर कोविड होगा, तो सरकार को कोई फिक्र नहीं, उन्हें इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ेगी। बच्चों की खुशहाली का कारण बताकर इस निर्णय को जायज ठहराने की कोशिश की जा रही है। यह मानना मुश्किल है, क्योंकि निर्माण कार्यों को (जिनसे प्रदूषण बढ़ता है) अनुमति दी गई है।
दिल्ली सरकार के विपरीत तमिलनाडु सरकार बाढ़ में भी स्कूल जारी रखने की कोशिश कर रही है। स्कूलों को सुरक्षित रखने के लिए दिशासूचक भेजे गए हैं। समस्या केवल दिल्ली में नहीं, पिछले हफ्ते रांची में क्रिकेट स्टेडियम में हज़ारों लोग जुटे, लेकिन प्राथमिक स्कूल नहीं खुले हैं। उच्च प्राथमिक कक्षाएं चल तो रही हैं, लेकिन वहां मध्याह्न भोजन नहीं शुरू किया गया। इस तरह की खबर बिहार से भी आई।
उम्मीद इस पर कायम है कि कुछ राज्यों में शिक्षक बच्चों के भविष्य के लिए आवाज उठा रहे हैं। जब पंजाब सरकार ने मध्याह्न भोजन की राशि नहीं दी, तो शिक्षकों ने अपनी तरफ से दो महीनों तक मध्याह्न भोजन जारी रखने की कोशिश की। महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों में शिक्षक ऑफलाइन शिक्षा के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं।
Rani Sahu
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