सम्पादकीय

बच्चों का काल कोरोना

Gulabi
1 Sep 2021 5:26 PM GMT
बच्चों का काल कोरोना
x
कोरोना वायरस महामारी बच्चों के लिए काल बन कर आई

जितने बच्चे कोरोना महामारी के परोक्ष असर से मरे, उनमें एक तिहाई भारत के हैं। भारत में कुपोषण पहले से बड़ी समस्या है। पांचवें पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक आजादी के बाद 2015-19 की अवधि में ऐसा पहली बार हुआ, जब बाल कुपोषण के कारण होने वाले प्रभाव बढ़े।

कोरोना वायरस महामारी बच्चों के लिए काल बन कर आई। शुरुआत में यह कहा गया था कि इस संक्रमण से बच्चे प्रभावित नहीं होंगे। मगर महामारी के कारण पैदा हुई दूसरी स्थितियों ने लाखों बच्चों को मौत के मुंह में पहुंचा दिया। इस महामारी के असर से अभी मुक्ति मिलती नहीं दिखती। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए जो आर्थिक पाबंदियां लगाई गईं, उनके अभी आगे भी जारी रहने के हालात हैँ। जबकि उनके कारण कम विकसित और गरीब देशों में दो लाख 67 हजार ज्यादा शिशुओं की जान गई है। वर्ल्ड बैंक ने ऐसा अनुमान जाहिर किया है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे वर्ल्ड बैंक के शोध के मुताबिक गरीब और मध्यम आय वाले देशों में कोरोना वायरस के कारण लगीं पाबंदियों का घातक असर हुआ है। इन पाबंदियों ने आर्थिक असमानता और गरीबी तो बढ़ाई ही है, पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा औसत जानें भी लीं। इसमें गौर करने की बात यह है कि विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक जितने बच्चे कोरोना महामारी के परोक्ष असर से मरे, उनमें एक तिहाई भारत के हैं।
भारत में कुपोषण पहले से बड़ी समस्या है। पिछले साल जारी हुए पांचवें पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक आजादी के बाद 2015-19 की अवधि में ऐसा पहली बार हुआ, जब बाल कुपोषण के कारण होने वाले प्रभाव बढ़े। कुपोषण का संबंध गरीबी से होता है। जो गरीब हो रहे परिवारों के सामने जब लॉकडाउन जैसी चुनौती आई, तो जाहिर है कि उनके कुपोषणग्रस्त बच्चे उसे झेल नहीं पाए। विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 128 देशों में शिशु मृत्यु दर में लगभग सात फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। बदलती अवधि और गंभीरता वाली पाबंदियों ने अमीर और गरीब, ज्यादातर देशों की जीडीपी को प्रभावित किया है। ज्यादातर देशों में कोरोना वायरस को प्राथमिकता देने के कारण अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को या तो कम कर दिया गया या पूरी तरह बंद कर दिया गया। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि गरीब और मध्यम आय वाले देशों में जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट से हर हजार बच्चों पर मृत्यु दर में 0.23 फीसदी की वृद्धि होती है। इन देशों में लॉकडाउन के कारण हो रही आर्थिक तंगी से निपटने के लिए जरूरी धन नहीं था। नतीजा भयानक रहा है। चिंताजनक यह है कि इन हालात से अभी मुक्ति की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।
नया इण्डिया
Next Story