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- बालश्रम की दलदल में...
कुंदन कुमार: बालश्रम के कारणों में गरीबी और भुखमरी सबसे मुख्य वजह हैं। अगर सरकार समाज से गरीबी को नियंत्रित और भुखमरी को खत्म कर दे, तो बच्चों को कम उम्र में काम करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं है, पर नामुमकिन बिल्कुल नहीं है।
शहरों में अमूमन बड़े-बड़े कल-कारखानों, रेस्तरां, किराना दुकानों, ढाबों में काम करते हुए ऐसे बच्चे देखे जाते हैं, जिनकी उम्र या तो पढ़ाई करने की होती है या खेलने-कूदने की। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी अक्सर खेतों में, छोटे-छोटे निर्माण उद्योगों और किराना दुकानों में चौदह वर्ष या इससे कम उम्र के बच्चे काम पर लगे होते हैं। कम उम्र के ऐसे बच्चे, जो मजबूरी में श्रम में लगे हैं, बाल श्रमिक के रूप में परिभाषित किए जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने बालश्रम को मुख्य रूप से ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया है, जो बच्चों को उनके बचपन या बाल्यावस्था से वंचित तथा उनके मानसिक और शारीरिक विकास को अवरुद्ध कर देता है। बालश्रम बच्चों को मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से कमजोर बना तथा उनके आत्मबल को नेस्तनाबूद कर देता है। ऐसे बच्चे स्कूलों की चौखट से प्राय: दूर ही रहते हैं। स्कूली शिक्षा पूर्ण न होने के चलते उन्हें खुद के अधिकारों के बारे में भी जानकारी नहीं होती है, जिसका खामियाजा उन्हें जीवन के हर मोड़ पर भुगतना पड़ता है।
जिन बच्चों के अभिभावक नहीं होते, वैसे बच्चों को बालश्रम के सबसे निकृष्ट और भयावह रूपों को सहना पड़ता है। प्राय: ऐसे बच्चों के साथ दासों जैसा व्यवहार किया जाता है। ऐसे बच्चों को खतरनाक कामों में लगाने के वास्ते इनकी खरीद-ब्रिकी तक की जाती है। आतंकवादियों के हाथ लग जाने पर इन्हें मानव बम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं निराश्रित छोटी बच्चियों की खरीद-फरोख्त कर वेश्यावृत्ति जैसे निंदनीय कामों में धकेल दिया जाता है, जो इनके जीवन को जोखिम में डाल देता और इनके मानवीय अधिकारों का खुलेआम गला घोंटता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(ए) में प्रावधान है कि छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निश्शुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य की है। इसके अलावा भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 23 मानव के दुर्व्यवहार के साथ-साथ बालश्रम को भी प्रतिबंधित करता है और कानूनी व्यवस्था देता है कि बालश्रम करवाने या करने को मजबूर करने वाले को सलाखों के पीछे कैद किया जाए। अनुच्छेद 24 में भी चौदह वर्ष से कम आयु के बालकों या बालिकाओं को कारखानों, खानों और जोखिम भरे कामों में नियोजन करने को प्रतिषेध किया गया है।
अनुच्छेद 39 में प्रावधान किया गया है कि चौदह वर्ष से कम आयु के बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न किया जाए। इन संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद बालश्रम पर पूर्णतया अंकुश लगाने में सरकारें पूर्णत: सफल नहीं रही हैं। जिन नाजुक हाथों में किताबें होनी चाहिए, उन्हीं कोमल हाथों में हथौड़ा देखा जाना आम बात है। मजबूरी और परिवार के हालत के आगे नतमस्तक होने वाले बच्चे शौक से बाल मजदूरी नहीं करते हैं। सरकार की नाकामियों और परिवार की मजबूरी उन्हें कम उम्र में पत्थर तोड़ने को विवश कर देती है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष द्वारा विश्व बाल निषेध दिवस के अवसर पर 12 जून को एक वैश्विक अनुमान '2020 प्रवृत्तियां और आगे की राह' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि दुनिया भर में सोलह लाख बच्चे मजबूरी में पेट पालने के लिए मजदूरी करने को विवश हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाल मजदूरी करने वालों की अधिकतर संख्या उपसहारा अफ्रीकी देशों में है।
वैश्विक स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में बालश्रम की व्यापकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक होने की बात भी इस रिपोर्ट में कही गई है। भारत में पांच से चौदह वर्ष आयु वर्ग के करीब एक लाख बच्चे बाल मजदूरी करने को विवश हैं। भारत में बाल मजदूरी का प्रसार उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अधिक है। यूनिसेफ के मुताबिक पूरी दुनिया के लगभग बारह फीसद बच्चे सिर्फ भारत में बाल मजदूरी में लगे या लगाए हुए हैं।
यों तो बालश्रम जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए सरकारी स्तर पर कई प्रयास किए गए, पर सांस्थानिक स्तर पर किए गए ये प्रयास अभी तक महज कागजी ही साबित हुए हैं। स्वतंत्र भारत में पहली बार 1948 में कारखाना कानून के माध्यम से पंद्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम पर लगाने को गैरकानूनी घोषित किया गया। तत्पश्चात खान अधिनियम (1952) द्वारा सभी प्रकार की खानों में बालकों के नियोजन को प्रतिबंधित किया गया। बीड़ी तथा सिगार कर्मकार अधिनियम (1966) इस प्रकार के उद्योगों में बच्चों को काम पर लगाए जाने को प्रतिबंधित करता है।
वर्ष 1979 में सरकार ने बालश्रम को रोकने के उपायों पर विचार करने के लिए गुरुपद स्वामी समिति का गठन किया। इस समिति ने सरकार को बताया कि जब तक गरीबी रहेगी, तब तक बाल मजदूरी को रोकना संभव नहीं दिख रहा है। समिति ने यह भी कहा कि कानून के जरिए इन्हें जड़ से खत्म करना संभव नहीं है। समिति का सुझाव था कि जोखिमपूर्ण कार्यों में बच्चों को काम पर लगाना पूर्णत: वर्जित किया जाए तथा गैर-प्रतिबंधित क्षेत्रों में बालकों की कार्य स्थिति, समय, मजदूरी बेहतर हो।
गुरुपद स्वामी समिति की सिफारिश पर ही 1986 में बालश्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) कानून बनाया गया था। इस कानून के माध्यम से यह तय हुआ कि घरेलू इकाइयों को छोड़ कर अन्य सभी क्षेत्रों में चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों से जबरन या उनकी सहमति से काम करवाना कानूनन जुर्म है। इस कानून के उल्लंघन पर दोषी व्यक्ति को तीन माह से एक वर्ष तक कारावास या दस से बीस हजार रुपए जुर्माना या दोनों हो सकता है।
बेतहाशा बढ़ते बालश्रम को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकार ने बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन), संशोधन अधिनियम 2016 पारित किया। इसमें प्रावधान किया गया कि सभी व्यवसायों में चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और खतरनाक व्यवसायों तथा प्रक्रियाओं में अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की नियुक्ति दंडणीय अपराध है।
समाज में हर स्तर पर फैल चुके बालश्रम को रोकना अकेले सरकार के वश की बात नहीं है। सरकार अपने स्तर पर इसे नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर अधिनियम पारित करती रहती है, ताकि बालश्रम जैसी सामाजिक बुराइयों से छुटकारा मिले। किस कारण बच्चे असमय श्रम की भट्टी में जलने को विवश हैं, इस पर सरकार का ध्यान नहीं जाता। बालश्रम के कारणों में गरीबी और भुखमरी सबसे मुख्य वजह है।
अगर सरकार समाज से गरीबी को नियंत्रित और भुखमरी को खत्म कर दे, तो बच्चों को कम उम्र में काम करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं है, पर नामुमकिन बिल्कुल नहीं है। कई गैर-सरकारी संगठन बालश्रम से बच्चों को छुटकारा दिलाने के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। सरकार ऐसे संगठनों का सांस्थानिक स्तर पर सहयोग प्राप्त कर बालश्रम में धकेले गए बच्चों को उनके नरकीय जीवन से मुक्त कर सकती है।
किसी भी देश का भविष्य वर्तमान की दशा तय करता है। आज के बच्चे ही कल देश का भविष्य होंगे, इसलिए उन्हें बालश्रम के चंगुल से बचा कर उनमें निवेश करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में मानव पूंजी के रूप में परिष्कृत होकर आज के बच्चे कल भारत का स्वर्णिम इतिहास लिख सकें। कहीं भी अगर कोई बच्चा मजबूरी में बालश्रम में फंसा हो, तो यह हमारा सामाजिक दायित्व बनता है कि उसे इससे बाहर निकालने के सकारात्मक उपाय करें।