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- संकट में बच्चे
पिछले साल दुनिया में दो करोड़ तीस लाख बच्चों को डीटीपी का टीका नहीं लग पाना चिंता की बात है। छोटे बच्चों को डिप्थीरिया, टिटनेस और पर्टुसिस (काली खांसी) से बचाने के लिए ये टीके जीवन रक्षक हैं। डीटीपी टीकाकरण भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना पोलियो, चेचक जैसी बीमारियों से बचाने वाले टीके हैं। दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा खासतौर से बच्चे पहले ही कुपोषण से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर बच्चे को जीवन रक्षक टीके नहीं लग पाएंगे तो बच्चे कैसे स्वस्थ कैसे जीएंगे? विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि डीटीपी टीके से वंचित बच्चों को भविष्य में किन खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यह रिपोर्ट बता रही है कि दुनिया भर में पिछले साल एक करोड़ सत्तर लाख बच्चों को तो किसी भी टीके की एक खुराक भी नहीं लग पाई। जबकि सवा दो करोड़ से ज्यादा बच्चे किसी न किसी तरह के जीवनरक्षक टीके से वंचित रह गए। अब खतरा यह है कि कहीं ये बच्चे पोलियो, खसरा जैसी बीमारियों की चपेट में न आ जाएं।
गौरतलब है कि डेढ़ साल में महामारी ने दुनिया को हिला दिया है। अभी भी इससे मुक्ति के आसार नहीं हैं। ऐसे में सभी देशों का जोर फिलहाल महामारी पर ही है। कई महीनों तक तो अस्पतालों में दूसरी गंभीर बीमारियों के इलाज भी नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में बच्चों के लिए दूसरे जरूरी टीकों का अभियान बुरी तरह से प्रभावित होना ही था। डबल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि महामारी से पहले विश्व में डीपीटी, खसरा और पोलियो के टीकाकरण की दर छियासी फीसद थी, जबकि मानक पनचानवे फीसद का है। जाहिर है टीकाकरण का यह अभियान पहले भी कोई तेज नहीं था। फिर कोरोना में तो एकदम थम गया। हैरानी की बात है कि दुनिया में 2019 में पैंतीस लाख बच्चों को डीटीपी टीके की पहली खुराक भी नहीं लगी थी। तीस लाख बच्चे खसरे के टीके की पहली खुराक से वंचित रह गए थे। जिन देशों में बच्चों को ऐसी स्थिति भुगतनी पड़ी उनमें भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस और मैक्सिको भी हैं।
दरअसल किसी भी देश में टीकाकरण जैसे अभियान तभी सफल हो पाते हैं जब उसके पास पहले ही से स्वास्थ्य सेवाओं का मजबूत ढांचा हो। भारत जैसे देश में स्वास्थ्य सेवाएं कितनी बदहाल हैं, यह महामारी के दौरान उजागर हो चुका है। देश भर में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में बच्चों के जरूरी टीकाकरण की उपेक्षा होनी ही थी। यह अपने में कम गंभीर बात नहीं है कि डीटीपी की पहली खुराक के मामले में दुनिया में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। पिछले साल भारत में तीस लाख से ज्यादा बच्चों को इस टीके की पहली खुराक नहीं मिली। 2019 में भी चौदह लाख बच्चे इस टीके वंचित रह गए थे। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि 2019 में जब कोरोना नहीं था तब चौदह लाख बच्चों को डीटीपी का टीका क्यों नहीं लग पाया। दरअसल यह हमारी बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था का सबूत है। टीकाकरण अभियान सुसंगत और पेशेवर तरीके से बनाई गई योजना से ही सफल हो पाते हैं। और इस वक्त भी कोरोना के टीकाकरण में भारत किस हालत में है, इसकी खबरें आए दिन हम पढ़ ही रहे हैं। सारा दोष मौजूदा महामारी पर मढ़ने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए स्वास्थ्य व्यवस्था पर चौतरफा नजर की जरूरत है।