सम्पादकीय

किसानों और वनवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए छत्तीसगढ़ आर्थिक रणनीति पर कर रहा काम

Gulabi
15 Dec 2020 2:06 PM GMT
किसानों और वनवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए छत्तीसगढ़ आर्थिक रणनीति पर कर रहा काम
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छत्तीसगढ़ का 44 प्रतिशत भूभाग वनों से आच्छादित है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। छत्तीसगढ़ का 44 प्रतिशत भूभाग वनों से आच्छादित है, जबकि देश के कुल क्षेत्रफल का यह 12 प्रतिशत है। जाहिर है कि प्रदेश के साथ-साथ देश के आर्थिक विकास में भी यहां के जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पिछले करीब दो वर्षो के दौरान छत्तीसगढ़ शासन ने अपने निरंतर प्रयासों और नवाचारों से इस भूमिका को और भी विस्तारित करने का काम किया है।


जैव-विविधता से भरपूर छत्तीसगढ़ के जंगलों में अनेक तरह के वनोपज और दुर्लभ जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। वनक्षेत्रों के रहवासियों द्वारा परंपरागत रूप से इनका संग्रहण कर आय अर्जति की जाती रही है। वनोपजों के संग्रहण और विक्रय की इस पूरी प्रक्रिया में वनवासियों को कभी भी उनके परिश्रम की सही कीमत नहीं मिल पाई थी, फलत: उनके हिस्से में हमेशा न्यून आय ही आई। दूसरी ओर इन्हीं वनोपजों से बिचौलिये और बड़े व्यापारी अच्छा मुनाफा कमाते रहे।

वनों को क्षति पहुंचाए बिना वनक्षेत्रों के विकास की जो रणनीति शासन ने तैयार की है, उसमें वनोपजों के संग्रहण और विक्रय से जुड़ी विसंगतियों को दूर करना सर्वोच्च प्राथमिकता में रहा है। इसी क्रम में तेंदूपत्ता संग्रहण दर को बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया गया। इसी तरह समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले लघु वनोपजों की संख्या सात से बढ़ाकर 52 कर दी गई। इनमें से 38 वनोपजों की खरीदी छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संघ द्वारा सीधे की जाती है, जबकि संघ द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 14 वनोपजों की खरीदी स्व सहायता समूहों द्वारा की जाती है।

कोरोना काल में भी छत्तीसगढ़ के जंगलों में वनोपजों के संग्रहण का कार्य तेजी से चलता रहा। इस दौरान देश में संग्रहित कुल वनोपजों का 73 प्रतिशत छत्तीसगढ़ ने संग्रहित करते हुए सभी राज्यों में पहला स्थान प्राप्त किया। संग्राहकों ने 130.21 करोड़ रुपये मूल्य के वनोपजों का संग्रहण किया। संकट काल में राज्य में बेरोजगारी दर को नियंत्रित करने में वनक्षेत्रों में चल रही आर्थिक गतिविधियों का बड़ा योगदान रहा।


वनोपजों के प्राथमिक प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए राज्य में 139 वन-धन केंद्रों की स्थापना की गई है। इनके माध्यम से 103 प्रकार के हर्बल उत्पाद तैयार कर छत्तीसगढ़ हर्बल्स नाम से संजीवनी केंद्रों द्वारा विक्रय किए जा रहे हैं। इस कार्य से लगभग 14 हजार स्व-सहायता समूहों के सदस्य लाभान्वित हो रहे हैं। राज्य के पाटन क्षेत्र में एक केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई तथा प्रसंस्करण पार्क की स्थापना की जा रही है। इसमें निजी उद्यमियों को भूखंड तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। राज्य में लाख उत्पादन को आगामी तीन वर्षो में 4,000 टन से बढ़ाकर 10,000 टन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लाख उत्पादन से फिलहाल करीब 50 हजार परिवारों को 100 करोड़ रुपये की सालाना आय प्राप्त होती है। लाख पालन को कृषि का दर्जा देते हुए ब्याज रहित फसल ऋण तथा फसल बीमा सुविधा का लाभ देने का निर्णय लिया गया है। लाख की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करते हुए 20 क्षेत्रीय संयंत्रों के माध्यम से इसका प्रसंस्करण किया जाएगा। प्रसंस्कृत लाख बेचने से 200 करोड़ रुपये से अधिक की आमदनी होगी।

राज्य में वनौषधियों के उपयोग से परंपरागत उपचारकर्ताओं द्वारा सुदूर वनांचलों में प्राचीन परंपरा के अनुसार प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई जा रही है। इस परंपरागत ज्ञान तथा पद्धति का दस्तावेजीकरण करने, उसे संरक्षित करने तथा औषधियों का परीक्षण-प्रमाणीकरण करने के उद्देश्य से राज्य औषधि पादप बोर्ड को पुनर्गठित करते हुए छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड का गठन किया गया है। वनों तथा वनवासियों ने हमेशा एक-दूसरे को सुरक्षित-संवíधत किया है। सामुदायिक वन अधिकार के तहत खेती करने वाले वनवासी आम कृषकों की तरह शासन की कृषि-योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन तथा पुनर्जीवन के लिए सामुदायिक वन संसाधन अधिकार भी दिए गए हैं।

बांस वनों से एक बड़े समुदाय की आजीविका जुड़ी रही है, इसकी व्यापक उपलब्धता ने बीजापुर जैसे बांस-संपन्न क्षेत्रों में कागज-उद्योग की संभावनाओं को भी जन्म दिया है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रख बांस वनों के संवर्धन तथा प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। वनक्षेत्रों में बहने वाले नालों के पानी को सहेजा जा रहा है। इससे खेती में सिंचाई के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा। इन कार्यो से बड़े पैमाने पर रोजगार का भी सृजन हो रहा है। थोड़े ही समय में वनक्षेत्रों के रहवासियों के जीवनस्तर में जो बदलाव आया है, उसका असर यहां के बाजारों में देखा जा सकता है। हम परस्परता की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ते हुए एक ऐसा ईको सिस्टम विकसित कर रहे हैं, जिसमें जंगल मनुष्यों के जीवन को संवारेंगे और मनुष्य जंगलों को।




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