- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दिल्ली सरकार का सस्ता...
दिल्ली सरकार ने पेट्रोल की कीमत में कमी करके राजधानी वासियों को जो तोहफा नये साल से पहले दिया है उसका सर्वत्र स्वागत किया जा रहा है क्योंकि दिल्ली के आसपास के शहरों में पहले पेट्रोल दिल्ली के मुकाबले सस्ते दामों पर बिक रहा था जिसकी वजह से नोएडा व गुरुग्राम जैसे शहरों में दिल्ली वाहनों की भारी भीड़ रहती थी। मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के इस निर्णय से दिल्लीवासियों को निश्चित रूप से राहत मिलेगी और वे राजधानी परिक्षेत्र में ही अपने वाहनों के लिए समुचित मात्रा में पेट्रोल खरीद सकेंगे। दिल्ली सरकार ने राज्य सरकार द्वारा पेट्रोल की कीमत पर लागू वैट या बिक्रीकर की दर 30 प्रतिशत से घटा कर सीधे 19.4 प्रतिशत कर दी है जिससे इसकी कीमत आठ रुपए प्रति लीटर कम हो गई है। किसी भी राज्य सरकार द्वारा दी गई यह राहत कम इसलिए नहीं आंकी जा सकती क्योंकि पेट्रोल व डीजल पर वैट लगा कर राजस्व उगाही करने का यह सबसे सरल तरीका होता है। यही फार्मूला केन्द्र सरकार द्वारा उगाहे जाने वाले उत्पाद शुल्क पर भी लागू होता है। पिछले महीने केन्द्र ने भी वाहन ईंधन की बढ़ती कीमतों को देखते हुए पेट्रोल पर पांच रुपए व डीजल पर दस रुपए प्रति लीटर की कमी की थी। जिससे थोड़ी-बहुत राहत उपभोक्ताओं को मिली थी। तभी से यह मांग की जा रही थी इस कमी करने के बावजूद पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर से ऊपर होने पर राज्य सरकारों को भी वैट की दरों में कमी करनी चाहिए। कुछ राज्य सरकारों ने एेसे कदम भी उठाये और पेट्रोल-डीजल की दरें कम रखने का प्रयास किया परन्तु दिल्ली ने इस क्षेत्र में बाजी मारते हुए वैट की दर में सीधे 10.6 प्रतिशत की कमी की। यदि हम आबादी के लिहाज से देखें और उस पर दुपहिया व चार पहिया वाहनों की संख्या को देखें तो दिल्ली में प्रति व्यक्ति वाहन सबसे ऊपर रहना चाहिए। इससे यह संकेत मिलता है कि राजधानी में निजी वाहन रखना प्रत्येक परिवार की आवश्यकता बन चुकी है। इन वाहनों में भी दुपहिया वाहन सर्वाधिक हैं जो सामान्य राजधानी वासी के लिए अपनी आवागमन जरूरत के लिए घर का हिस्सा बन चुके हैं। दिल्ली की भागमभाग भरी जिन्दगी और पारिवारिक जरूरतों को देखते हुए दुपहिया वाहन निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के लिए सुविधाजनक वाहन तभी बने रह सकते हैं जबकि इन्हें चलाने के लिए आवश्यक ईंधन की कीमत भी इनकी जेब के मुताबिक हो। क्योंकि दिल्ली में सार्वजिनक यातायात की सुविधाएं बढ़ती आबादी के अनुपात में बढ़ाई जानी असंभव दिखाई पड़ती हैं। इसकी वजह यह है कि दिल्ली का विस्तार बहुत बेतरतीब तरीके से हुआ और इस मुद्दे पर जम कर राजनीति भी होती रही है।दिल्ली में ट्राम चलाने की योजनाएं इसी वजह से खटाई में पड़ती रहीं कि इसका विस्तार किसी वैज्ञानिक शहरी परियोजना को आधार बना कर नहीं हुआ बल्कि फौरी तौर पर राजनीतिक हानि-लाभ की दृष्टि से ज्यादा हुआ हालांकि 'मास्टर प्लान' की बातें भी होती रहीं। परन्तु श्री केजरीवाल ने दिल्ली के विकास के लिए जो खाका तैयार किया उसे इन सन्दर्भों में महत्वपूर्ण माना जायेगा और भविष्य की दृष्टि से सामान्य आदमी के हित में देखा जायेगा विशेषकर शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधारभूत सुधार करके आम आदमी पार्टी की सरकार ने यह साबित करने की कोशिश की यदि राजनीतिक इच्छा शक्ति हो तो विषम परिस्थितियों के बीच भी रास्ता खोजा सकता है। पेट्रोल पर वैट घटाने से दिल्ली सरकार को राजस्व की भारी हानि होगी मगर लोकतन्त्र में जनता के सुख से ऊपर कोई सुख नहीं होता है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अब दुपहिया वाहन धीरे-धीरे एेसे गरीब आदमी का वाहन बनता जा रहा है जो गरीबी की सीमा रेखा से थोड़ा ही ऊपर है।संपादकीय :नए वेरिएंट से बचना है तो चलो ''पुराने मंत्र'' परभारत का परागलोकलेखा समिति की शताब्दीबूस्टर डोज की जरूरत?370 अब कल की बात हुईकोरोना की मार से निकलती अर्थव्यवस्था देश में आये बाजार मूलक अर्थव्यवस्था को दौरान वित्तीय सुधारों के चलते अब एेसे वाहनों को सीमति आय स्रोत वाले लोग भी खरीदने की हिम्मत दिखा रहे हैं। यही वजह है कि अब देश की सड़कों से साइकिल गायब होती जा रही है और दुपहिया वाहनों की बाढ़ आयी हुई है। अतः पेट्रोल अब आवश्यक उपभोक्ता सामग्री की श्रेणी में आ चुका है और हर मध्यम वर्ग के परिवार के पास अपना चार पहियों वाला वाहन होना किसी शान की नहीं बल्कि जरूरत की चीज बन चुकी है। पिछले तीस सालों में भारत में यह क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है इसे कोई भी आर्थिक विश्लेषक नकार नहीं सकता है। मगर इसके समानान्तर पेट्रोल व डीजल की कीमतों में भी वृद्धि हुई है जिसकी मुख्य वजह इनकी कीमतों को कच्चे तेल के अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मूल्यों से जोड़ना रहा है। इस बात पर रचनात्मक बहस हो सकती है कि इस व्यवस्था के लागू होने के बाद केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क का ढांचा क्या रहना चाहिए था और पेट्रोल व डीजल की कीमतों को भी 'जीएसटी' के दायरे में ले आया जाना चाहिए था परन्तु इस बात पर बहस नहीं हो सकती कि सामान्य जन की जरूरत के वाहन ईंधन को उसकी जेब की पहुंच से बहुत ऊंचा रखा जाये। अतः अरविन्द केजरीवाल की सरकार का निर्णय मौजूदा शुल्क ढांचे के तहत जनहित का निर्णय कहा जायेगा।