सम्पादकीय

चरित्र की चुगली

Rani Sahu
27 July 2022 6:59 PM GMT
चरित्र की चुगली
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चरित्र की चुगली करती सरकारी मशीनरी को पढऩे की जरूरत है

By: divyahimachal

चरित्र की चुगली करती सरकारी मशीनरी को पढऩे की जरूरत है, वरना हिमाचल जैसे शांत दिखने वाले प्रांत की पांत भी कहीं बदनाम राज्यों से न जुड़ जाए। हिप्पा के उपनिदेशक पर लग रहे आरोपों की जद में यही चरित्र संगीन अपराध कर रहा है, तो आए दिन मिली भगत के कारनामों में जनता का विश्वास डूब रहा है। हम प्रसन्न हैं क्योकि छींटे हमारी महफिल पर नहीं गिरे, लेकिन बाहर मौसम को खबर है कि आशंकाओं के बादल कहीं न कहीं हमें भी घेर रहे हैं। हर विभाग की ऊंची पताका के ठीक नीचे भ्रष्ट तरीकों की फेहरिस्त से जब कोई दामन जला देता है, तो हम उफ करके बैठ जाते हैं या खुश होते हैं कि हमारी गली तक बिछा सीमेंट बरकरार है। इसी प्रदेश में सरकारी जमीनों को कब्जा धारियों को बांटने का खेल चल रहा है। यह मात्र मंडी की बलद्वाड़ा तहसील का ही मामला नहीं, बल्कि भू माफिया का नया अवतरण है। जमीन की पैमाइश करती फाइलें इतनी प्रभावशाली हो चुकी हैं कि शामलात भूमि का आबंटन करते कई अधिकारी मिल जाएंगे। एक ऐसी ही फाइल घूमते हुए हमारे कार्यालय पहुंच गई है, जहां कांगड़ा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सरकारी जमीन को तथाकथित रूप से खरीद लिया है। यह हो इसलिए रहा है क्योंकि हिमाचल का तरक्की पसंद समाज अब केवल भौतिक उत्कंठा में ही संपन्न दिखना चाहता है। इसके लिए या तो केवल सरकारी नौकरी चाहिए या सत्ता से सरकार तक अपना किरदार चाहिए। जरा गौर करें और देखें हिमाचल के प्रमुख शहरों की सार्वजनिक संपत्तियों पर कौन बैठे हैं।
जब योजनाएं ही परियोजनाएं बनकर सरकारी जमीन की दुकानदारी पर उतर आएं, तो शहरी निर्माण में लगा सरकारी धन परोक्ष रूप से बिक जाता है। हर शहर में नगर निकायों की संपत्ति पर काबिज लोगों का ब्यौरा बता देगा कि पर्दे के पीछे किस-किस का चरित्र बिक रहा है। इसी तरह प्रशासनिक दखल से कामर्शियल भवन बनते हैं और बंट भी जाते हैं। धर्मशाला में एडीबी की मदद से कैफे की इमारत तैयार होती है और एक ढाबे को लीज पर चली जाती है, जबकि इसे पर्यटन विकास निगम को भी दिया जा सकता था। बहरहाल तरक्की के खेत में राजनीति के बीज इस कद्र उग रहे हैं कि हिमाचल का अधिकारी वर्ग, राजनीति में जाने की तैयारी में रहता है। अभी एक डीएसपी महोदय नौकरी छोड़ सियासी पदार्पण करते हुए दिखाई दे रहे हैं, तो कुछ मौलिक प्रश्र उठते हैं। पुलिस अधिकारी के लिए दायित्व निर्वहन राजनीति के आगे छोटा पड़ गया या राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ही हिमाचल की श्रेष्ठता बन चुकी है। सोशल मीडिया के जरिए अवलोकन करें तो कई सरकारी अधिकारी, इंजीनियर्स व डाक्टर अपनी-अपनी सियासी निष्ठा की कसौटी पर प्रत्याशी बनने की जिद कर रहे हैं।


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