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पतित कथा का अध्याय
ये तर्क देना मुमकिन है कि उन्होंने तब की गलतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी। उसका परिणाम गलत रहा, तो इसकी जिम्मेदारी उनकी कैसे हो सकती है? लेकिन यहां सवाल उठेगा कि तब उन्होंने सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता, पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दे उठाए, उनके लिए आज वे क्या कर रहे हैं? ex cag vinod rai
पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) विनोद राय ने अगर झूठ नहीं बोला था, तो उन्हें संजय निरुपम से माफी मांगने की जरूरत नहीं थी। अगर उन्होंन ऐसा सच बोला था, जिसका सबूत उनके पास नहीं है, तो उस हालत में भी उन्हें अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए था। चूंकि उन्होंने दस साल पहले अपनी मसीहाई छवि बनाई थी, तो यह अपेक्षा उचित ही है कि एक मसीहा को सच की कोई भी कीमत चुकानी चाहिए। लेकिन अब उन्होंने माफी मांग ली है, तो यही माना जाएगा कि वे उस पतित कथा का जानबूझ कर हिस्सेदार बने, जिसका मकसद तत्कालीन यूपीए सरकार को बदनाम करना था। भ्रष्टाचार की निराधार कहानियां फैला कर तब जो एक निरर्थक नैरेटिव बनाने में जिन लोगों भी, जिस किसी रूप में सहभागिता निभाई, वे आज जो देश का हाल है, उसकी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। ये तर्क देना मुमकिन है कि उन्होंने तब की गलतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी। उसका परिणाम गलत रहा, तो इसकी जिम्मेदारी उनकी कैसे हो सकती है?
लेकिन यहां सवाल उठेगा कि तब उन्होंने सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता, पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दे उठाए, उनके पक्ष में आज वे क्या कर रहे हैं? उन्होंने कैसे एक ऐसी सरकार से लाभान्वित होना स्वीकार कर लिया, जिसका इन तमाम मुद्दों पर रिकॉर्ड पिछली सरकार से भी खराब है? चूंकि वे लाभान्वित हुए, उन मुद्दों को मझधार में छोड़ दिया और अब अदालत में मामला फंसने पर तब की अपनी करतूतों के लिए माफी मांग रहे हैं, तो फिर यही मान जाएगा कि तब एक सियासी चाल का वे हिस्सा बने। ऐसे हिस्सेदारों की आज लंबी सूची गिनाई जा सकती है। जाहिर है, यह उन तमाम लोगों के लिए गहरे अफसोस और पछतावे का मसला है, जो उन फर्जी देवताओं की बातों में आए और उस प्रक्रिया का हिस्सा बने, जिसके परिणामस्वरूप एक उभरती अर्थव्यवस्था आज मिट्टी में मिली हुई है। विनोद राय ने माफी 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से जुड़े मामले में सीएजी की रिपोर्ट के एक प्रकरण में मांगी है। राय ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम शामिल न करने के लिए उन पर संजय निरुपम ने दबाव डाला था, जो उस समय सांसद थे। राय के माफी मांगने के साथ ये मुद्दा समाप्त हो गया है। इसके साथ ही एक तब के देवता पर कालिख कुछ और ज्यादा पुत गई है।
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