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Written by जनसत्ता: खास बात यह है कि इन चुनावों में एक बार फिर ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी बहुमत हासिल करने का दावा किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो यह विश्व की राजनीति के लिए एक खास परिघटना होगी।
आज अमेरिका मंदी की तरफ बढ़ रहा है और महंगाई दर के अभी तक काबू में आने के संकेत नहीं दिख रहे हैं। अगर अमेरिका ही नहीं, दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों का हालिया इतिहास देखा जाए तो ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं जिन्होंने चुनाव में पराजित होने और पद छोड़ने के दो साल के बाद भी मैदान में खड़े हैं और आज फिर उनके एक बार फिर अगला चुनाव लड़ने की अपेक्षा की जा रही है। अभी हाल ही में इजराइल में लिकुड पार्टी के नेता बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बार फिर सत्ता हासिल की है और अब वे पांचवीं बार इजराइल की सत्ता संभालने वाले हैं। इधर हमारे देश में नरेंद्र मोदी आज सत्ता में हैं।
अगर डोनाल्ड ट्रंप की बात करें तो वे कुछ अलग ही मिजाज में नजर आ रहे हैं। इनका पिछला कार्यकाल भी काफी तूफानी रहा था और इस बार फिर उन्होंने अपनी जिस तरह से तैयारियां की हैं, वह देखने लायक है। अमेरिका में अक्सर जो पार्टी सत्ता में होती है उसका प्रदर्शन मध्यावधि चुनावों में खराब रहता है 1865 में अमेरिकी सिविल वार के खत्म होने के बाद सिर्फ तीन बार सत्ताधारी पार्टी को इन चुनावों में जीत मिली है।
इसीलिए इस बार राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी के हारने का अनुमान लगाया जा रहा है। चुनाव से पहले जो सर्वे आए, उनमें भी खासतौर पर आर्थिक मामलों को लेकर बाइडेन सरकार से मतदाता नाराज बताए जा रहे हैं और वे महंगाई से भी परेशान हैं जो कुछ समय पहले तक चार दशकों के उच्च शिखर पर पहुंच गई थी। इस महंगाई को कम करने के लिए ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी की जा रही है, जिससे मांग में कमी आएगी।
बेरोजगारी बढ़ने का खतरा बना हुआ है। इसलिए हर तरह की संभावनाओं को देखते हुए आज डोनाल्ड ट्रंप काफी उत्साहित है, पर अब देखना यही है कि उन्हें चुनाव की उम्मीदवारी घोषित करने में कितनी सफलता मिलती है। अगर सब बाधाओं को पार करके अगर वे खड़े होकर चुनाव जीत जाते हैं तो फिर विश्व की राजनीति में उन नेताओं का फिर से बोलबाला होगा जिन्होंने पहले भी विश्व की राजनीति को काफी प्रभावित किया था।
उत्तर प्रदेश में छोटे दल शायद बड़ी सौदेबाजी के लिए लोकसभा चुनाव 2024 का इंतजार कर रहे हैं। कम जीत के अंतर से उत्साहित कुछ दलों ने, जिन्हें बड़ी पार्टियों ने दरकिनार कर दिया था, अपने विकल्पों को बढ़ा लिया है, यह घोषणा करते हुए कि वे 2024 के आगामी लोकसभा चुनावों में सबसे शक्तिशाली गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। कुछ महीने पहले ठोस दिख रही समाजवादी पार्टी के गठबंधन टूटने लगे हैं, वहीं कई मुद्दों को लेकर भाजपा खेमे में भी बेचैनी के संकेत दिखाई दे रहे हैं।
भाजपा अपने दम पर केंद्र सरकार नहीं बना सकती है। उसे गठबंधन सहयोगियों की जरूरत है। यूपी में उप क्षेत्रीय और क्षेत्रीय दलों का महत्त्व है। ऐसी पार्टी जिनका समर्थन आधार कुछ जिलों तक सीमित है या उनकी अपनी जाति समूहों के बीच बड़ी पार्टियों के साथ वे करीबी मुकाबला करती है, जैसा कि 2022 के विधानसभा चुनावों में देखा गया था।
ध्यान देने योग्य तथ्य है कि 2022 के चुनावों में करीब पचास सीटों पर जीत का अंतर 5000 मतों से कम रहा। लोकसभा चुनावों अब पंद्रह महीने दूर हैं। यह स्पष्ट है कि नए गठबंधन बनाने के लिए छोटे दल बेहतर सौदेबाजी के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये छोटे दल अपने प्रभाव वाली सीटों पर कुछ समर्थन लाते हैं, जो भाजपा और सपा जैसी बड़ी पार्टियों के लिए करीबी मुकाबला जीतने के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं।