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- महाप्रलय में बदलता जल

आदित्य चोपड़ा| इसे प्रकृति की मार ही कहा जाएगा कि आकाश से बरस रहा पानी मनुष्य के अस्तित्व पर कहर बरपा रहा है। हर वर्ष वर्षा अपने ठिकाने ढूंढने लगी है और जल स्वयं के लिए रास्ते तलाश लेता है। हम पानी को रोक सकते हैं लेकिन प्रकृति को कौन रोक पाया है। मौसम के व्यवहार में जल के उत्पात को मनुष्य आज तक नहीं जान पाया। महाराष्ट्र में भारी बारिश से तबाही हुई है और वर्षा जनित घटनाओं में 136 लोगों की मौत हो चुकी है। रायगढ़, सतारा, रत्नागिरी, महाबालेश्वर, गोडिया, चन्द्रपुर, ठाणे, पालघर बाढ़ की चपेट में हैं। पहाड़ दरक रहे हैं, नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। लोगों के आशियाने ध्वस्त हो चुके हैं, गाड़ियां कागज की नाव की तरह पानी में बह गई हैं। वैसे तो मानसून की फुहार जन-जन के तन-मन को िभगोती रही है, मानसून की बूंदों का इंतजार सभी को रहता है। सवाल फिर हमारे सामने है कि मानसून की वर्षा ने अपना व्यवहार क्यों बदला? क्यों वर्षा मनुष्यों की जानें ले रही है। क्यों वर्षा लोगों द्वारा मेहनत की कमाई से बनाए गए घराें को अपने साथ बहा ले जा रही है। अतिवृष्टि केवल भारत की समस्या ही नहीं बल्कि दुनियाभर में इससे तबाही हो रही है। चीन, जर्मनी और अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों में बाढ़ हमें इस बात का अहसास कराती है कि जलवायु में परिवर्तन हो चुका है। कई देशों ने ऐसी बाढ़ पहले नहीं देखी। उन्होंने ऐसी आपदा से निपटने के लिए कोई तैयारी ही नहीं की थी। दुनिया भर में अपनी धोंस जमाने वाला चीन कुदरत की आफत के आगे बौना दिखाई देता है। विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका के लोग भी वर्षा के कहर से खुद को बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर पा रहे। कहीं बांध टूट रहे हैं, कहीं बांध डूबने के चलते उनके गेट खोलने को विवश होना पड़ रहा है। शहर और गांव डूब रहे हैं।
