सम्पादकीय

बदलती तस्वीर : सरकारी स्कूलों में बढ़ते दाखिले का मतलब

Neha Dani
23 Nov 2021 1:38 AM GMT
बदलती तस्वीर : सरकारी स्कूलों में बढ़ते दाखिले का मतलब
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भावी भारत के बेहतर भविष्य के लिए इनसे उसे कुशलतापूर्वक निपटना ही होगा।

उदारीकरण के बाद से सरकारी शिक्षा की गिरती स्थिति चिंता का सबब रही है। इस वजह से सरकारी तंत्र में वे ही माता-पाता अपने बच्चों को दाखिला कराते रहे हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति निजी स्कूलों के भारी-भरकम खर्च को उठा पाने लायक नहीं रही या फिर जिनके सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं रहा। नतीजतन सरकारी स्कूलों में छात्रों का नामांकन लगातार घटता रहा है।

लेकिन कोरोना की वजह से इस स्थिति में बदलाव नजर आ रहा है। हाल ही में आई वार्षिक शिक्षा स्थिति यानी असर की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में सरकारी स्कूलों में दाखिला करीब पांच प्रतिशत बढ़ गया। साल 2020-21 में जहां सरकारी स्कूलों में बच्चों की दाखिला दर 65.8 फीसद थी, जो 2021-22 में बढ़कर 70.3 फीसद हो गई। सवाल यह है कि क्या सरकारी तंत्र में लोगों का भरोसा बढ़ रहा है या निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई होने लगी है?
शिक्षाशास्त्रियों और समाजविज्ञानियों की नजर में निश्चित तौर पर दोनों ही स्थितियां नहीं हैं। लोककल्याण का दावा करने वाली तमाम सरकारें निजी स्कूलों पर कोरोना काल में फीस न लेने, फीस न चुका पाने वाले बच्चों को स्कूल से नहीं निकालने का आदेश देती रहीं, लेकिन हकीकत में निजी स्कूलों ने अपनी मनमानी जारी रखी। दिल्ली समेत कुछ राज्य सरकारों ने निजी स्कूलों को सिर्फ ट्यूशन फीस ही लेने का निर्देश दिया, जिसके खिलाफ दिल्ली के स्कूलों का संगठन दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया।
दिलचस्प यह है कि हाई कोर्ट ने स्कूलों के फीस वसूलने पर लगी रोक हटा दी और उन्हें विकास आदि शुल्क भी वसूलने की छूट दे दी। नतीजतन दिल्ली के नामी पब्लिक स्कूल पिछले दो साल की कसर मौजूदा सत्र के आखिरी छह महीनों में ही पूरी करने में जुट गए हैं। राज्य सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है, लिहाजा माता-पिता भारी-भरकम रकम चुकाने को मजबूर हैं। कम से कम इस स्थिति से सरकारी स्कूल दूर हैं। उनके यहां कोई छिपी हुई रकम बतौर फीस नहीं वसूली जानी है।
उन माता-पिता का सरकारी स्कूलों पर भरोसा बढ़ा है, जिनकी आमदनी कम हो गई है या फिर नौकरी छूट गई है। चूंकि सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है, स्पष्ट है कि इसका असर निजी स्कूलों के नामांकन में गिरावट के तौर पर दिख रहा है। निजी स्कूलों में नामांकन साल 2018 के 32.5 फीसदी से घटकर 2020 में 28.8 और 2021 में 24.4 फीसदी तक पहुंच गया है।
सरकारी स्कूलों में कोरोना के दौरान उत्तर प्रदेश और केरल में नामांकन में विशेष बढ़ोतरी दिखी है। दोनों राज्यों में साल 2018 की तुलना में 2021 में 13.2 और 11.9 प्रतिशत ज्यादा बढ़त दिखी है। इसी तरह दक्षिण भारत में तेलंगाना के अलावा सभी राज्यों के सरकारी स्कूलों में आठ प्रतिशत से ज्यादा नामांकन हुआ है। हालांकि इस बढ़त में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में काफी ज्यादा है।
असर की रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 16 साल की आयु वर्ग के बच्चों का साल 2018 में सरकारी स्कूलों में जहां 57.4 फीसदी नामांकन था, वह 2021 में बढ़कर 67.4 प्रतिशत हो गया। उत्तर प्रदेश के छह से 14 साल के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन 2018 में जहां 43.1 प्रतिशत था, वह 2021 में बढ़कर 56.3 फीसदी हो गया है।
इतना बड़ा बदलाव दूसरे राज्यों में नहीं दिख रहा। कोविड काल में स्कूलों के बंद होने के चलते ऑनलाइन पढ़ाई बढ़ी। सरकारी विद्यालय जाने वाले 63.7 फीसदी बच्चों को ही स्मार्टफोन की सुविधा उपलब्ध है, वहीं निजी विद्यालय के 79 फीसदी से ज्यादा बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं।
सरकारी विद्यालयों में बच्चों के बढ़ते नामांकन ने उन पर गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने का दबाव बढ़ा दिया है, वहीं चौथाई बच्चों तक स्मार्टफोन न होना व्यवस्था के लिए परेशानी का सबब हो सकता है। जाहिर है कि दोनों ही स्थितियों में व्यवस्था और तंत्र पर ही जिम्मेदारी बढ़ती है। भावी भारत के बेहतर भविष्य के लिए इनसे उसे कुशलतापूर्वक निपटना ही होगा।


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