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By: divyahimachal
हिमाचल की वर्तमान सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं का गुलदस्ता पेश करते हुए कई रंग ढूंढे हैं, लेकिन ई-वाहनों के जरिए नई मंजिलों का पता भी बताया गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में ग्रीन कोरिडोर चिन्हित करने के उपरांत अब 500 ई बस रूट जोड़े जा रहे हैं। ई-वाहनों की एक खेप सरकारी बसों के माध्यम से आएगी, जबकि युवा बेरोजगारों के लिए भी यह सौगात बन कर स्वरोजगार का ई- परिदृश्य पेश कर रही है। हिमाचल में परिवहन का सरकारी पक्ष हमेशा सरकारों के लिए कठिन चुनौती रहा है, लेकिन अबकी बार एक ऐसी सरकार आई है, जो पहाड़ पर चलता हुआ दिखना चाहती है। इसी संदर्भ में चार्जिंग स्टेशन और इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की जरूरत की व्याख्या हो रही है। छोटी और बड़ी बसों के रूट निर्धारित करने की प्रक्रिया से परिवहन के कुनबे में एक नई परिभाषा, प्रतिस्पर्धा तथा रोजगार की संभावना परिलक्षित हुई है, लेकिन ई वाहन पॉलिसी के तहत समग्रता से सारे ट्रांसपोर्ट सेक्टर की धमनियों की जांच परख भी आवश्यक हो जाती है। पहले तो यही कि ई-बसों के साथ-साथ स्वरोजगार क्षेत्र को व्यापक दृष्टि देते हुए इसके साथ टैक्सी आपरेशन को भी जोडऩा होगा। कम से कम प्रमुख पर्यटक स्थलों तथा धार्मिक नगरियों के इर्द-गिर्द ई टैक्सी आपरेशन की एक सशक्त भूमिका अभिलषित है। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हिमाचल में टैैक्सी संचालन गैर जिम्मेदाराना ढंग, जवाबदेही के बिना, निरंकुश दरों के तहत तथा व्यावहारिक तौर पर असहज तरीके से हो रहा है।
ऐसे में राज्य सरकार किसी एक ई-वाहन कंपनी से करार करते हुए उसे टैक्सी आपरेशन का पार्टनर बना कर, इसका सीधा लाभ युवा बेरोजगार को राज्य की गारंटी से वाहन खरीद में मदद कर सकती है। दूसरे इलेक्ट्रिक टैक्सियों को दिल्ली की तर्ज पर प्वाइंट टू प्वाइंट आपरेशन की दरें निर्धारित करके पर्यटन उद्योग व दैनिक यात्रियों को बड़ी राहत दे सकती है। उदाहरण के लिए शिमला, कांगड़ा व कुल्लू एयरपोर्ट से इलेक्ट्रिक टैक्सियां अगर प्वाइंट टू प्वाइंट दौड़ती हैं, तो कम दरों पर ऐसी सुविधा से सारा परिदृश्य बदल सकता है। शिमला और धर्मशाला में आरंभिक तौर पर स्थानीय परिवहन में अगर ई बसें स्मार्ट सिटी के तहत आ चुकी हैं, तो यहां टैक्सियों को स्मार्ट रूपरेखा में पेश करते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों से जोड़ दिया जाए। इलेक्ट्रिक वाहन अपने साथ ऐसी तकनीक ला रहे हैं जिससे नया रोजगार व सस्ती परिवहन सेवा संभव हो सकती है, लेकिन इसका परोक्ष लाभ प्रदेश की परिवहन नीति को सरल, साहसी व उपयोगी बनाने को भी मिलेगा। सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों का शामिल होना राज्य की पर्यटन छवि और संभावना को भी आगे बढ़ाने में काम आ सकता है। इलेक्ट्रिक बसों के मार्फत सबसे पहले धार्मिक पर्यटकों की आवाजाही सुनिश्चित की जाए, तो ग्रीन कोरिडोर ऐसे वाहनों के आगमन को प्रतिबंधित कर सकते हैं, जो अब तक कई शहरों का प्रदूषण स्तर से खिलवाड़ कर रहे हैं। तमाम धार्मिक व पर्यटक स्थलों से बीस-पच्चीस किलोमीटर पहले ही बाहरी राज्यों के वाहन रोक कर अगर आगे पर्यटकों को इलेक्ट्रिक वाहनों से ले जाया जाए, तो पर्यटन सीजन के टै्रफिक जाम बीते कल की बात हो जाएंगे। दरअसल परिवहन पर सोच विकसित करें, तो प्रदेश में रोजगार के अवसर, आर्थिक विकास और भविष्य के विकास का नक्शा कुछ इस तरह बनेगा कि सामान्य परिवहन से ऊपर उठकर रज्जु मार्गों का अधिकतम इस्तेमाल तथा भविष्य के बस स्टैंड अपने भीतर पर्यटक सुविधाओं के स्तंभ बन सकते हैं। प्रदेश के शिमला, मंडी, ऊना व कांगड़ा में बस स्टैंड का एक मॉडल बनता हुआ नजर आया है और अगर इसी तर्ज पर निजी निवेश से कम से कम सौ और बस स्टैंड कम शापिंग-पार्किंग कांप्लेक्स विकसित होते हैं, तो परिवहन के रास्ते पर्यटन परिसर हर जगह स्वागत करेंगे। कुछ मंदिर परिसर ऐसे बस स्टैंड के मार्फत यात्री सुविधाओं के केंद्र व दर्शन को आरामदायक बना सकते हैं। उदाहरण के लिए ज्वालामुखी व चिंतपूर्णी में बस स्टैंड की परिकल्पना को यात्री सुविधा, शापिंग व मनोरंजन केंद्र के रूप में विकसित करते हुए आगे मंदिर परिसर तक रज्जु मार्गों तक जुड़ जाएं, तो परिवहन व पर्यटन एक ही सिक्के के दो पहलू हो जाएंगे। बहरहाल हिमाचल प्रदेश आने वाले कुछ सालों में ग्रीन राज्य की कसौटियों में अपनी तमाम योजनाओं-परियोजनाओं का समन्वित विकास करता है, तो प्रदेश आर्थिकी, स्वरोजगार व पर्यटन विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय जरूरतों को भी काफी हद तक संबोधित कर सकता है।
Rani Sahu
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