सम्पादकीय

मैपिंग नीति में बदलाव भारत के लिए रक्षा और गैर-रक्षा से जुड़े क्षेत्रों को बनाएगा आत्मनिर्भर

Gulabi
10 March 2021 4:08 PM GMT
मैपिंग नीति में बदलाव भारत के लिए रक्षा और गैर-रक्षा से जुड़े क्षेत्रों को बनाएगा आत्मनिर्भर
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मैपिंग नीति में बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने नियंत्रित भू-स्थानिक डाटा तक पहुंच पर प्रतिबंध को हटा लिया

India New Mapping Policy मैपिंग नीति में बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने नियंत्रित भू-स्थानिक डाटा तक पहुंच पर प्रतिबंध को हटा लिया है। इस बदलाव से पहले व्यक्तियों और कंपनियों को भू-स्थानिक सूचना विनियमन अधिनियम, 2016 के तहत मानचित्रण डाटा के उपयोग के लिए पूर्व अनुमति लेना आवश्यक था। भू-स्थानिक डाटा और सेवाओं को प्राप्त करने व सृजित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रलय द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों के तहत व्यवसायों और नवप्रवर्तकों को डिजिटल भू-स्थानिक डाटा और मानचित्रों को एकत्रित करने, स्टोर करने, तैयार करने, प्रसार करने, प्रकाशित करने और उसे अद्यतन करने से पहले उसके पूर्व अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी।


भौगोलिक क्षेत्र की सटीक जानकारी आधुनिक डिजिटल प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। यह उन उद्योगों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है जो ई-कॉमर्स, डिलीवरी और लॉजिस्टिक्स व परिवहन जैसी स्थान-आधारित सेवाएं प्रदान करते हैं। यह अर्थव्यवस्था के अधिक परंपरागत क्षेत्रों जैसे कृषि, निर्माण और अचल संपत्ति व खदान जैसे क्षेत्रों के लिए भी जरूरी है। यह कदम कई मायनों में महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि इस क्षेत्र में विदेशी कंपनी पर निर्भरता कम करनी होगी जो सामरिक दृष्टि से भी अहम है।

चिंताजनक यह है कि भू-स्थानिक डाटा प्रसंस्करण के क्षेत्र में भारतीय स्टार्ट-अप अभी भी काफी पीछे हैं। वहीं इससे जुड़े कुल 140 स्टार्ट-अप राजस्व के मामले में इस क्षेत्र की बड़ी कंपनी गूगल से काफी पीछे हैं। ऐसे में मैपिंग नीति में हुए व्यापक बदलाव एक प्रभावी कदम साबित होगा। दरअसल भारत में ई-कॉमर्स के विकास की गति काफी तेज है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार वर्ष 2024 तक भारत में ई-कॉमर्स से जुड़े क्षेत्रों का कारोबार सौ अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। महत्वपूर्ण है कि ई-कॉमर्स से जुड़े क्षेत्र की निर्भरता अभी भी कुछ सीमित विदेशी संस्थाओं पर है जो भौगोलिक डाटा उपलब्ध कराते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में आवश्यक पहल करने की जरूरत है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रलय द्वारा हाल ही में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर जो चीज आसानी से उपलब्ध है, उसे भारत में प्रतिबंधित करने की जरूरत नहीं है और इसलिए जो भू-स्थानिक डाटा प्रतिबंधित था, भारत में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होगा। भारतीय संस्थाएं भू-स्थानिक डाटा के प्रयोग के लिए विदेशी संस्थाओं और विदेशी-स्वामित्व वाली संस्थाओं को लाइसेंस दे सकती हैं।

यह भी सही है कि वैश्विक स्तर पर हो रहे अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान ने देश की सुरक्षा और गोपनीयता के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर दी है। ऐसे में विदेश आधारित इमेजिंग उपग्रह पर निर्भरता को कम करने की दिशा में अपेक्षित सुधार आवश्यक हो गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में गूगल पर उपलब्ध भारत के सभी रक्षा ठिकानों और अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं को देश के लिए खतरा बताया गया था, वहीं सुरक्षा एजेंसियों ने जांच में पाया कि 26/11 के मुंबई हमले में भी आंतकियों द्वारा जानकारी जुटाने के लिए इन्हीं माध्यमों का उपयोग किया गया था।

मुद्दा यह है कि जब तक भारत भौगोलिक डाटा प्रसंस्करण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो जाता है, तब तक इस क्षेत्र को नियंत्रित करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है। भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए इसरो द्वारा विकसित भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है जिसे भारतीय क्षेत्र में भौगोलिक स्थिति की जानकारी प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है, जबकि यह भारतीय मुख्य भूमि से 1,500 किमी के आसपास तक नेविगेशन आधारित जानकारी देने में सक्षम है। इसका उपयोग स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन के लिए किया जा रहा है, जबकि आपदा प्रबंधन, मैपिंग और भू-स्थानिक डाटा के प्रयोग आधारित जुड़े क्षेत्रों में किया जा रहा है।

भू-स्थानिक डाटा पृथ्वी की सतह पर किसी भी विशिष्ट स्थान से संबंधित विशिष्ट जानकारी होती है, ऐसे में भारत में कई आधारभूत संरचनागत विकास में इसका प्रयोग महत्वपूर्ण हो सकता है। औद्योगिक गलियारों या नदियों के लिंक जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के दौरान सटीक भू-स्थानिक डाटा महत्वपूर्ण है। साथ ही, लॉजिस्टिक्स और उन्नत शहरी परिवहन व्यवस्था आधारित स्मार्ट-सिटी के विकास में इस डाटा का प्रयोग काफी उपयोगी हो गया है।

विगत वर्षो में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा आधारभूत संरचना के निर्माण कार्यो और निगरानी के लिए भौगोलिक सत्यापन को अनिवार्य बनाया जा रहा है। ऐसे में योजनागत निर्माण कार्यो का सटीक अनुमान के साथ उसके प्रबंधन में भी इस डाटा का प्रयोग काफी बढ़ा है। यह बदलाव भू-स्थानिक डाटा तक अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों की पहुंच आसान होगी, जबकि देश में विकसित इमेजिंग उपग्रह और सटीक भू-स्थानिक जानकारी उपलब्ध करने में सक्षम है। केंद्र सरकार रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है, वहीं मैपिंग नीति में बदलाव भी इस क्षेत्र के भारतीय स्टार्ट-अप के लिए काफी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा और भारत के लिए रक्षा और गैर-रक्षा से जुड़े क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाएगा।


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