सम्पादकीय

बदली दुनिया का बदला-बदला दस्तूर

Rani Sahu
8 Jun 2022 7:14 PM GMT
बदली दुनिया का बदला-बदला दस्तूर
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देखते ही देखते लोगों के जीने का, बात करने का, अपने आप को पेश करने का सलीका बदल गया। पहले कहा जाता था कि ‘बन्धु तुम्हारे पापों का घड़ा इतना भर गया है कि तुम तो अब किसी को मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रहे

देखते ही देखते लोगों के जीने का, बात करने का, अपने आप को पेश करने का सलीका बदल गया। पहले कहा जाता था कि 'बन्धु तुम्हारे पापों का घड़ा इतना भर गया है कि तुम तो अब किसी को मुंह दिखाने के काबिल भी नहीं रहे।' ऐसी महामारी फैली है कि किसी को मुंह दिखाना, नंगे मुंह चमक-दमक कर निकलना ही गुनाह हो गया। उसके बाद से आज सड़क पर चलता हर बशर नकाबदारी में नज़र आता है। क्या यह चचा जान का वचन यह साबित नहीं कर देता कि 'इस दुनिया के सब चोर-चोर, कोई बड़ा चोर कोई छोटा चोर।' जहां से आपने महीनों पहले उधार ले रखा था, और वापस चुकाने की आपकी कोई मंशा नहीं थी, वहां भी अब आप मज़े से यह मास्क ओढ़ कर जा सकते हैं। चेहरा न दिखाने पर कोई पहचानेगा नहीं। कोई धृष्ट महाजन आपका नकाब हटा आपको पहचानने की कोशिश करे तो बेशक कानून परस्तों के सामने चिल्ला दीजिए, 'हुज़ूर यह हमारा नकाब छीन कर हमें कानून के उल्लंघन के लिए मजबूर कर रहा है।

इसे पकड़ कर भारी जुर्माना कीजिए।' हमारी सिफारिश पर उन्होंने कुछ रियायत कर दी, तो हम उस बचत की ही इसके कर्ज़ की राशि की वापसी बना देंगे। जी हां, यहां सीधी उंगली से घी निकलता कहां है? अब कोई उंगली टेढ़ी करने लगे तो उससे पूछ लीजिएगा, 'बन्धु, टेढ़ी उंगली को धो-पौंछ सैनेटाइज़ कर लिया?' कहीं ऐसा न हो कि अपनी संक्रमित उंगली से सारा घी ही बिगाड़ दो। क्या इससे बेहतर नहीं कि जनता की भलाई के लिए जारी हुआ घी हम आपस में ही आधा-आधा बांट लें। उन्हें अपनी उंगलियां संक्रमित सपाट रखने के लिए खाली हथेली बार-बार धोने का संदेश दे स्वयं को जनसेवक बना डालें। सम्भवतः यह समय का तकाज़ा है कि न नौ मन तेल हो और न राधा नाचे। न राशन बंटेगा न हथियाने के लिए मारामारी होगी, न इनकी हथेलियां लिथड़ेंगी। लोग महामारी से नहीं दूसरी बीमारी भुखमरी से मरे हैं।
इसलिए सिद्ध होता है कि महामारी से मरने वालों का आंकड़ा कम हो रहा है और हमने इससे अपने इलाके की मृत्यु दर घटा कर विजय प्राप्त कर ली है। वैसे भी हमने बीमारी से डर कर शहर छोड़ अपने-अपने गांव भागते हुए लोगों को बताया था कि 'भई वहां कुछ नहीं रखा है। जब मरना ही है तो चाहे यहां मरो या वहां अपने गांव घर जाकर मरो।' हालात सब जगह एक से हैं। यहां भी छुट भय्ये नेता दनदनाते हैं, वहां भी उनकी कमी नहीं। पता है न एक देश, एक राशन कार्ड बन गया है। इसलिए कौन सा कार्ड फर्जी है, इसे पहचानने में और भी दिक्कत हो जाएगी। अब आप उन नकाबों की तलाश न कीजिएगा कि जिन्हें ओढ़ आपके मेहरबानों ने आप पर यह करम फरमाया है। फिलहाल तो यह पता कीजिए कि आपके हिस्से की मनरेगा राशि कहां उड़न छू हो गई? खाते बताते हैं कि आपके इलाके की सारी मनरेगा राशि बंट चुकी है और आपके हिस्से एक छदाम भी नहीं आया। जो कार्ड बन गए थे, उन पर धन बंट गया। फिलहाल तो यह काम कीजिए कि पता करें यह धनराशि कौन से नकाबपोश फर्जी अते-पते के साथ सेंध लगा कर ले उड़े। लीजिए अब अपने कल्याण का इंतज़ार नहीं, इन सेंधों की तलाश कीजिए कि जहां जारी हुए एक रुपए के नब्बे पैसे बंट गए। लेकिन नेता जी तो बता रहे थे, 'आजकल पूरे का पूरा रुपया गरीबों के खाते में जाता है।' आइए पहले इन नकाबपोशों को बेनकाब करें जो हमारा रुपया हमें दे भी गए और उसे ले भी उड़े। चलें, आमीन।
सुरेश सेठ

By: divyahimachal


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