सम्पादकीय

अपना रवैया बदलें प्रशासनिक अधिकारी

Triveni
31 Jan 2023 2:23 PM GMT
अपना रवैया बदलें प्रशासनिक अधिकारी
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कुछ समय पहले बिहार के एक आईएएस अधिकारी भी चर्चा में रहे। पूर्व के एक कार्यक्रम में एक होस्ट ने उनसे फ्री सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए गए प्रश्नों को लेकर पूछा था।

जनता से रिश्ता वेबडेसक | क्वीन कहावत है कि देश में सत्ता पीएम, सीएम और डीजे ही दौड़ते हैं। बहुत हद तक इसमें सच्चाई भी है। हाल में जूनियर अधिकारियों को लेकर दो खबरें सामने आई हैं। भोपाल से खबर आई कि वहां एक आईपीएस अधिकारियों के आवास पर 44 कांस्टेबल सेवा में लगे हुए हैं। नियमानुसार दो अर्दली रख सकते हैं। बेड-टी तैयार करने से लेकर खाना बनाने का जिम्मा इन डेड कॉन्स्टेबल का था। इनमें से कुछ झाड़ू-पोछा करते थे, तो कुछ कपड़े धोते थे और चौकीदार और माली का भी काम करते थे। अधिकारी के पति भी बुजुर्ग अधिकारी हैं। उनके कोटे से भी 12 कर्मचारी आवास पर रुके हुए थे।

खबरों के मुताबिक, यदि उनकी सेवा में सभी कर्मचारियों का वेतन जोड़ा जाए, तो सरकार वैकल्पिक से हर 27 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान किया जा रहा था। दूसरे ओर हमारे देश में अशोक खेमका जैसे अधिकारी भी हैं, जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। हरियाणा कैडर का यह अधिकारी किसी भी व्यवस्था को रास नहीं करता है। पिछले दिनों खेमका ने मनोहर लाल को पत्र लिखकर कहा है कि उनके पास काम कम है और उन्हें अधिक काम दिया जाता है ताकि वे अपने वेतन को न्यायोचित बनाए रख सकें। खेमका की 30 साल की नौकरी में 55वीं बार तबादला हुआ और अब उन्हें अभिलेख विभाग में भेज दिया गया है। इस विभाग में सिर्फ 22 कर्मचारी काम करते हैं और काम तो कुछ नहीं है। इसलिए बार-बार उनका तबादला इस विभाग में कर दिया जाता है। खेमका 2012 दिशानिर्देशों में तब आएं, जब उन्होंने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े गुरुग्राम के एक जमीनी सौदे के म्यूटेशन को रद्द कर दिया था।
कुछ समय पहले बिहार के एक आईएएस अधिकारी भी चर्चा में रहे। पूर्व के एक कार्यक्रम में एक होस्ट ने उनसे फ्री सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए गए प्रश्नों को लेकर पूछा था। इस पर उनका जवाब था कि मांग का क्या कोई अंत है। काजल पैंट भी मांगेंगे और परस कहोगे कि जूते क्यों नहीं देते? जब होस्ट ने कहा कि सरकार वोट तय करती है तो आ जाती है, तो इस पर उन्होंने कहा कि मत दो तुम वोट। पाकिस्तान चले जाओ। यह वीडियो चर्चा का केंद्र रहा था। बाद में उस अधिकारी ने जोक मांग ली थी। झारखंड की तो प्लेकिए ही मत। कहा जाता है कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता। यहां की कथा भी अनंत है। कुछ दिनों पहले दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में अपने कुत्ते के साथ सैर करने वाले आईएएस अफसरों का मामला चर्चा में रहा था। जब वे अपने कुत्ते को टहलाने ले जाते थे, तो पूरा स्टेडियम खाली कर दिया जाता था और वहां प्रशिक्षण प्राप्त करके सभी खिलाड़ियों को स्टेडियम से बाहर निकाल दिया जाता था।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार में खबर छपने के बाद गृह मंत्रालय ने आईएएस पार्टनर का तबादला कर दिया। कहने का आशय यह है कि अधिकारियों में पद के प्रति दृष्टिकोण की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। जिसके लिए जंपिंग सर्विस की गई थी, वह अपना काम करती नजर नहीं आ रही है। अधिसंख्य अधिकारियों में संवेदना और मानवीय मूल्य की कमी स्पष्ट नजर आती है। कई अधिकारी जूनियर ओदे का इस्तेमाल करते हुए नजर आ रहे हैं। हमारे सामने ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें से कुछ अधिकारियों के पास से बड़ी राशियां बरामद हुई हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सभी अधिकारी अपने अधिकार का सेवन करते हैं। ऐसे भी कई अधिकारी हैं, सत्य ध्येय जनसेवा है। मुंबई में अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान चलाने के कारण खेरनार चर्चित हुए थे।
किरण बेदी जब दिल्ली पुलिस के अधिकारी थे, तो बेहद चर्चित रही थीं। उन्होंने ट्रैफिक व्यवस्था को व्यवस्थित करने और आपत्तिजनक हटाने के लिए पहली बार दिल्ली में क्रेन का इस्तेमाल किया था और लोग उन्हें क्रेन से हटाकर कहने लगे थे। लेकिन सत्ता की घोषणा को भी ऐसी अधिकारी पसंद नहीं आतीं और उनके बार-बार तबादले होते हैं। अब ऐसे कनेक्शन पर गिने जा सकते हैं। कुछ समय पूर्व असम में बाढ़ के दौरान एक आईएएस अधिकारी कीर्ति जली की कीचड़ में उतरे लोगों की मदद करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। इसके लोगों ने बड़ी मेहनत की थी। फोटो में आईएएस अधिकारी कीर्ति जल्ली एक अन्य महिला के साथ एक नाव में घूस रही हैं, जहां दोनों के ही पांव कीचड़ से सने हुए हैं। असम में बाढ़ के बीच लोगों की मदद करने के लिए उनकी परेशानी सुनने के लिए आईएएस अधिकारी कीर्ति जली बाढ़ से प्रभावित इलाके में पहुंचे थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले 50 सालों से ही वे बाढ़ से परेशान होते जा रहे हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि जब कोई आईएएस अधिकारी उनके पास पानी के दिनों में आया हो और उनकी परेशानी सुन रहे हों।
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में जिन नवयुवकों का चयन होता है, वे कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा में अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं। किसी नवयुवक की जंपिंग सेवा में चयन पर बढ़ाइयों का तांता लग रहा है। पूरे परिवार का नामकरण शासन हो जाता है। लेकिन जब अधिकारियों के आचार व्यवहार को लेकर स्पष्ट खबरें सामने आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है। कुछ समय पहले जंपिंग सेवा की कोचिंग करने वाले एक सज्जन सेवा में शामिल हुए और उन्होंने अपना अनुभव अनुभव किया। उनका कहना था कि जब किसी नवयुवक का चयन होता है, तो वह शुरुआत में पैर छूता है और बहुत कुछ अलग करता है।
कुछ समय बाद वह हाथ मिलाता है, तब तक वह मान चुका है कि वह किसी अन्य जमात से है। चार-पांच साल बाद अगर कहीं आमना-सामना हुआ, तो ज्यादातर मामलों में वह पूरी तरह से अनदेखी कर देता है, जैसे परिचित नहीं हो सकते। उनकी व्याख्या यह थी कि तब यह बात उसके मस्तिष्क में स्थापित हो गई थी कि वह अन्य लोगों से श्रेष्ठ है और बाकी लोग उससे कमतर हैं। अधिकारियों को यह चक होगा कि उनकी यह स्थान उनकी योग्यता के कारण मिला है और वे व्यवस्था एवं जनता के प्रति प्रत्युत्तर हैं, किसी राजनीतिक दल के प्रति प्रतिसाद नहीं। विकास की रजौती गरीब आदमी तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने के लिए आप इस जगह पर बैठे हैं।

जनता से रिश्ता इस खबर की पुष्टि नहीं करता है ये खबर जनसरोकार के माध्यम से मिली है और ये खबर सोशल मीडिया में वायरल हो रही थी जिसके चलते इस खबर को प्रकाशित की जा रही है। इस पर जनता से रिश्ता खबर की सच्चाई को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता है।

सोर्स: prabhatkhabar

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