सम्पादकीय

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन : यहां लोकतंत्र परवान चढ़ रहा या कहानी कुछ और है?

Gulabi Jagat
10 April 2022 7:40 AM GMT
पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन : यहां लोकतंत्र परवान चढ़ रहा या कहानी कुछ और है?
x
पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन
प्रदीप ठाकुर।
कहने, सुनने और देखने में निश्चित रूप से यह सुखद अहसास दे रहा है कि भारत का पड़ोसी और कट्टर दुश्मन देश पाकिस्तान (pakistan) में बीती रात जो कुछ घटित हुआ, दुनिया उसे एक परिपक्व लोकतंत्र की तरफ बढ़ते कदम के तौर पर देख रही है, लेकिन जो कुछ कहा जाता है, सुना जाता है और देखा जाता है, खासकर पाकिस्तान के संदर्भ में, असल में वैसा होता नहीं है. पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही होती है, लेकिन तात्कालिक तौर पर इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि पहली बार पाकिस्तान में शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण में नेशनल एसेंबली (national assembly), सुप्रीम कोर्ट, सत्ताधारी दल (ruling party) और विपक्षी दलों ने मिलकर एक स्वस्थ और परिपक्व लोकतंत्र की तरह व्यवहार किया है.
हालांकि अंदेशा जताया जा रहा था कि इमरान खान आसानी से सत्ता नहीं छोड़ेंगे और फिर जोर-जबरदस्ती होगी तो आईएसआई और सेना की जुगलबंदी कुछ वैसा ही करेगी जैसा पाकिस्तान में पहले से होता रहा है, लेकिन अल्ला-ताला ने इमरान को ऐसा कुछ भी नहीं करने की मति दी, लिहाजा सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया. अब रही बात पाकिस्तान के परिपक्व लोकतंत्र की तरफ आगे बढ़ने की तो ऐसा कहना अभी जल्दबाजी होगी. इस दिशा में कोशिश जरूर की गई है, लेकिन पाकिस्तान के संदर्भ में इस तरह की कोशिशें अक्सर कामयाब होती नहीं हैं.
सच जानना है तो विदेशी साजिश पर संदेह जरूरी
पाकिस्तान के संदर्भ में आज मुझे फ्रेंच दार्शनिक, गणितज्ञ और वैज्ञानिक रेने देकार्ते का यह कथन बार-बार यह कहने को मजबूर कर रहा है कि अगर सच जानना है तो हर चीज पर संदेह जरूर करें. सत्ता हस्तांतरण के पूरे घटनाक्रम को लेकर जितनी बातें पिछले कई दिनों से कही जा रही हैं उसमें से अधिकांश बातों पर मुझे संदेह है कि इमरान को इस वजह से सत्ता से बेदखल होना पड़ा है. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहा है. विपक्षी दल और तमाम राजनीतिक विश्लेषक भले ही इसके पीछे बेतहाशा महंगाई, भयानक भ्रष्टाचार, सेना से बढ़ती दूरियां, बेहाल अर्थव्यवस्था का हवाला दे रहे हों, लेकिन एक बात जिसका जिक्र इमरान खान बार-बार कर रहे थे विदेशी साजिश का और इसके आधार पर एक बार मानो ऐसा लगा कि इमरान विपक्ष की बाजी को पलट देंगे, मुझे लगता है कि यह मसला इमरान की सत्ता को पलटने में सबसे अहम किरदार के रूप में रहा.
हो सकता है यह मेरा संदेह हो लेकिन सच जानने के लिए संदेह करना जरूरी भी है. निश्चित रूप से महंगाई, भ्रष्टाचार और बदतर अर्थव्यवस्था की वजह से इमरान की पार्टी के नेता समेत पूरा विपक्ष अगर एकजुट हो गया और इमरान को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी तो नि:संदेह यह पाकिस्तान के लोकतंत्र को मजबूत करने वाला है. साथ ही जिस शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया वह पाकिस्तान के लोकतंत्र को परिपक्व बनाता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के तहत रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दक्षिण एशिया में जिस तरह से रूस और चीन का दखल बढ़ा है और भारत, पाकिस्तान समेत कई देश रूस के साथ खड़े हो गए हैं, यह अमेरिका के लिए मुश्किल परिस्थितियों को जन्म दे रहा था.
अमेरिका को हर हाल में एक ऐसा स्पेस चाहिए था जहां से वह भारत, पाकिस्तान और चीन पर नजर रख पाए. ऐसे में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पाक सेना के साथ-साथ विपक्षी नेता पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता शहबाज शरीफ, नवाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन की अमेरिकी साजिश के मोहरे रहे हों. क्योंकि प्रधानमंत्री के तौर इमरान खान खुलकर अमेरिका की खिलाफत करने लगे थे.
अगर विदेशी साजिश है तो यह लोकतंत्र पर धब्बा
जानकारों का मानना है कि पूर्व के प्रधानमंत्रियों जुल्फिकार भुट्टो और नवाज शरीफ की तरह इमरान खुद को सेना के चंगुल से आजाद पीएम बनने की चाह रखने लगे थे. इसके बाद उन्होंने ऐसे कई कदम उठाए, जिससे उनके और अमेरिका परस्त सेना और खुफिया एजेंसी के बीच खाई चौड़ी होती गई. हाल ही में इमरान जब रूस की यात्रा पर पहुंचे और वहां उन्होंने यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर कुछ भी नहीं कहा तो ये अमेरिका परस्त मानी जाने वाली पाक सेना के लिए झटका था. इमरान यहीं नहीं रुके और उन्होंने विपक्ष के अविश्वास प्रस्वाव के जरिए उन्हें हटाने की कोशिशों को विदेशी साजिश करार दिया और खुलकर इसके पीछे अमेरिका का हाथ होने का नाम लिया. ये अमेरिका समर्थक माने जाने वाली पाक सेना से एकदम उलट रुख था.
इमरान ने जहां भारत की विदेश नीति की तारीफ की, वहीं जनरल बाजवा ने कश्मीर-विवाद को बातचीत से हल करने की पेशकश की. कहने का मतलब यह कि वर्तमान संकट में भले ही पाक सेना सीधे तौर पर शामिल नजर नहीं आई, लेकिन उसने सुप्रीम कोर्ट के जरिए इमरान को सत्ता से बाहर करने की राह को आसान कर अमेरिकी मंसूबे को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया. हां, जहां तक लोकतांत्रिक तरीके से इस सत्ता परिवर्तन को अंजाम तक पहुंचाने की बात है तो इसमें सुप्रीम कोर्ट, नेशनल एसेंबली के कायदे-कानूनों का पूरी तरह से पालन किया गया जिसमें मंहगाई, भ्रष्टाचार और बदतर अर्थव्यवस्था का तड़का पहले से ही तैयार कर ही लिया गया था. ऐसे में पहली बात तो यह है कि इमरान को देश के समक्ष ऐसे सुबूत रखने होंगे जो यह राय बना सके कि वास्तव में एक लोकतांत्रिक सरकार को विदेशी साजिश के तहत गिराया गया. और दूसरा यह कि विदेशी साजिश का आरोप साबित हो गया तो यह भी तय हो जाएगा कि पाकिस्तान का लोकतंत्र अभी इतना परिपक्व नहीं हो पाया है जो किसी विदेशी साजिश को विफल कर दे. यह लोकतंत्र पर धब्बा होगा.
जिस दम पर सत्ता मिली उसी में फंस गए इमरान
इसमें कोई दो राय नहीं कि इमरान खान जुलाई 2018 में भ्रष्टाचार से निपटने और अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधारने के वादे के आधार पर ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए थे. लेकिन बीत चार वर्षों में पाकिस्तान की जीडीपी 315 अरब डॉलर से गिरकर 264 अरब डॉलर की रह गई है. महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. इस साल फरवरी में रिटेल महंगाई 12.2% और होलसेल महंगाई 23.6% तक पहुंच गई. इमरान के सत्ता संभालने के समय 1 अमेरिका डॉलर के मुकाबले 109 पाकिस्तानी रुपए की कीमत गिरकर अब 1 डॉलर के मुकाबले 186 पाकिस्तानी रुपए हो गई है. यानी इमरान के राज में पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था सुधरने के बजाय और रसातल में पहुंच गई.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक हालिया रिपोर्ट की मानें तो इमरान खान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार और बढ़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान को सबसे भ्रष्ट 180 देशों की सूची में 2021 में 140वां स्थान मिला था, इसमें 180वां स्थान दुनिया में सबसे भ्रष्ट देश का होता है. पाक की रैंकिंग 2018 में 117, 2019 में 120 और 2020 में 124 थी. इसके अलाला इमरान के शासन में भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में भी बढ़तरी हुई. 2022 में लीक हुए स्विस बैंक के एक डेटा से 1400 पाकिस्तानी नागरिकों से जुड़े 600 खातों का पता चला था, जिनमें कई ताकतवर राजनेता और जनरल शामिल हैं.
वहीं विपक्षी दल पाकिस्तान की तीसरी पत्नी बुशरा बीबी की खास सहेली माने जाने वाली फराह खान उर्फ फराह गुज्जर उर्फ फराह शहजादी पर अरबों रुपए का भ्रष्टाचार करने का आरोप है. नवाज शरीफ की बेटी मरियम ने हाल ही में फराह और बुशरा पर ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर 6 अरब रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. ये सारे हालात इस बात को बताने के लिए काफी है कि इमरान की सत्ता भले ही लोकतांत्रिक तरीके से तय हुई थी लेकिन सरकार लोकतांत्रिक तरीके से व्यवहार नहीं कर रही थी. ऐसे में यह कहना नाइंसाफी होगी कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक परिपक्वता बढ़ी है.
नई सरकार का 'लोकतांत्रिक व्यवहार' देखना बाकी
अब जबकि पाकिस्तान में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इमरान खान सत्ता से बाहर हो चुके हैं और जल्द ही एक नई सरकार शपथ लेगी. लेकिन इससे पहले 3 अप्रैल 2022 को नवाज शरीफ के उस ट्वीट को नजरंदाज करना ठीक नहीं होगा जिसमें उन्होंने लिखा- 'सत्ता को चाहने वाला शख्स आज संविधान को रौंद रहा है. इमरान खान जो देश के सामने अपने अहंकार को आगे रखता है और इस साजिश में शामिल सभी लोग गंभीर देशद्रोह के दोषी हैं, जिनपर आर्टिकल 6 लागू होता है. पाकिस्तान के दुरुपयोग और संविधान के अपमान को ध्यान में रखा जाएगा.' इसके अलावा मरियम नवाज का ताजा बयान कि इमरान के हाथ में माचिस है वह आग लगा दे उससे पहले उसे गिरफ्तार किया जाए. विपक्षी नेताओं के ऐसे तमाम बयान व ट्वीट इस बात के संकेत हैं कि एक साल के बाकी कार्यकाल के लिए जो भी नई सरकार बनेगी वह इमरान खान को चैन से जीने नहीं देगी. गिरफ्तारी भी हो सकती है और लंबे वक्त के लिए जेल भी भेजे जा सकते हैं. यह पाकिस्तान की राजनीति का रिवाज भी है. लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इमरान खान पहले के प्रधानमंत्रियों से थोड़े अलग किस्म के प्रधानमंत्री रहे हैं. सत्ता से बेदखल होते-होते इमरान पाकिस्तान पर अपनी राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री की छाप तो छोड़ ही गए हैं. युवाओं में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ ठीक-ठाक है जो आने वाले चुनावों में उनकी पार्टी के बेहतर प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभा सकता है. तो ऐसे में नई सरकार किस तरह के लोकतांत्रिक व्यवहार को अपनाता है इसपर बहुत कुछ निर्भर करेगा. अगर नई सरकार इमरान खान को व्यक्तिगत तौर पर नुकसान पहुंचाने की रणनीति पर आगे बढ़ता है तो यह तथाकथित तौर पर परिपक्व होते पाकिस्तान के लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है.
बहरहाल, पाकिस्तान को करीब से देखने व समझने वाले विश्लेषकों का मानना है कि देश अप्रत्याशित हालात की तरफ बढ़ रहा है जहां बहुत सारी समस्याएं हैं और इससे आने वाले वक्त में अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है. आने वाली नई सरकार इसे किस रूप में संभालती है, इसी से तय होगा कि ताजा सत्ता हस्तांतरण में संसद, सुप्रीम कोर्ट, सत्ताधारी दल और विपक्ष दलों ने मिलकर जिस लोकतांत्रिक परिपक्वता का परिचय दिया है वही प्रक्रिया आगे भी अनवरत जारी रहेगी या फिर पाकिस्तान अपनी ही फितरत में जीने को अभिशप्त होता है जिसमें तख्तापलट, भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ाना आदि-आदि.
Next Story