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- पंजाब में बदलाव
पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव से बमुश्किल छह महीने पहले नेतृत्व परिवर्तन न केवल चौंकाता है, बल्कि एक खास तरह के राजनीतिक चरित्र को भी सामने रखता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे कद्दावर नेता, जिन्होंने भाजपा के विजय रथ को कम से कम पंजाब में थामे रखा था और जो कांग्रेस को गौरव के कुछ पल नसीब कराते थे, वह अचानक अप्रिय कैसे हो गए? चार साल उन पर कांग्रेस को पूरा विश्वास रहा और जब उनका कार्यकाल अंतिम छमाही में पहुंचा, तो उन्हें पद से विदा करने का इंतजाम कर दिया गया। क्या पंजाब में सत्ता परिवर्तन केवल चुनावी हार के डर की वजह से हुआ है? काश! हार का यह भय हमारी राजनीतिक पार्टियों को हर दिन सताता, तो चुनाव की दहलीज पर पहुंचकर नेतृत्व परिवर्तन की जल्दी नहीं मचती। पंजाब में फिर दिख गया कि सत्तासेवी राजनीति अपने स्वभाव में कितनी निर्मम होती है। कल तक कैप्टन कांग्रेस के लिए नायक हुआ करते थे और आज चरणजीत सिंह चन्नी से उम्मीदें हैं। सत्तासेवी राजनीति न तो कैप्टन के प्रति उदार थी और न चन्नी पर अनायास मेहरबान हो जाएगी।