सम्पादकीय

पाकिस्तान में बदलाव

Rani Sahu
10 April 2022 6:15 PM GMT
पाकिस्तान में बदलाव
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पाकिस्तान में अंतत: सियासत ने नई करवट ले ली और इमरान सरकार को बहुमत के अभाव में जाना पड़ा

पाकिस्तान में अंतत: सियासत ने नई करवट ले ली और इमरान सरकार को बहुमत के अभाव में जाना पड़ा। इमरान खान ने अंतिम समय तक खुद को बचाने की कोशिश की। सहानुभूति का लाभ लेने या माहौल के बदलने का इंतजार किया, लेकिन विपक्ष के अड़ने से जब हर चाल व उम्मीद नाकाम हुई, तब रविवार को 174 मतों के साथ नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया। वह इस तरह रुखसत होने वाले अपने देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। वह चूंकि अपनी पूरी फजीहत कराकर रुखसत हुए हैं, इसलिए उन्हें आने वाले दिनों में सियासी मोर्चे के साथ-साथ प्रशासनिक मोर्चे पर भी खूब संघर्ष करना पड़ेगा। उनके विदेश जाने पर एक तरह से रोक लग गई है और उन्होंने अपनी कमजोरियों की वजह से अपने विरोधियों को मौका दे दिया है। दरअसल, जब आप लोकतांत्रिक और सांविधानिक संस्थाओं पर विश्वास करते हैं, तब ये संस्थाएं भी आप पर विश्वास करती हैं और मजबूती देती हैं। लेकिन जिस तरह इमरान ने खुद को बचाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग किया है, अदालत के आदेश के बावजूद संसद से बचने की अंतिम समय तक कोशिश की है, उससे उन्होंने खुद अपने लिए कांटे बिछा लिए हैं।

9 अप्रैल का दिन पाकिस्तान के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। जो नेता अपनी मनमानी से पाकिस्तान का स्याह इतिहास लिख रहे थे, उनसे जनता कितनी नाउम्मीद हुई है, यह तो आगामी चुनावों में ही पता चलेगा, लेकिन फिलहाल बचे हुए कार्यकाल के लिए पाकिस्तान में किसी तरह से नई सरकार बनाने की कवायद चल रही है। नई सरकार का सुलूक इमरान खान और उनकी टीम के साथ मनमानी या द्वेष भरा नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण होना चाहिए। इमरान खान चाहते थे कि आगामी चुनाव उनके प्रधानमंत्री रहते हो, लेकिन इसके लिए यथोचित माहौल या बाकी नेताओं का विश्वास जीतने में वह कामयाब नहीं रहे। उन्होंने विरोधी हुए नेताओं को साथ लेने की उदार कोशिशों के बजाय भड़काने का ही काम किया। पाकिस्तान में नेताओं को गहरे घाव देने वाले ऐसे आरोपों से बचने की कोशिश करनी चाहिए।
लोकतांत्रिक सरकार चलाने के लिए परस्पर बुनियादी विश्वास की जरूरत पड़ती है, इसका अभाव पाकिस्तान में नया नहीं है। क्या इस अविश्वास को अगले प्रधानमंत्री दूर कर पाएंगे? जिन विपक्षी दलों ने एक सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया है, उन पर अब जिम्मेदारी है कि मिलकर देश को अच्छी सरकार दें। भावी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को बहुमत जुटाने के अलावा सेना को भी विश्वास में लेकर चलने की मजबूरी कदम-कदम पर झेलनी पड़ेगी। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अगर चौपट न होती, तो शायद इमरान खान को ऐसे न जाना पड़ता। अब शहबाज शरीफ कह रहे हैं कि पाकिस्तान के मुस्कराने केदिन आ गए हैं, क्या वाकई ऐसा है? सबसे पहले तो उन्हें आर्थिक सुधारों की दिशा में तेजी से बढ़कर दिखाना होगा, ताकि देश को बार-बार दुनिया के सामने हाथ न पसारना पड़े। भ्रष्टाचार से खुद बचना और देश को बचाना होगा। अभी पाकिस्तान पर जीडीपी का 43 फीसदी कर्ज है, महंगाई रोके नहीं रुक रही है। पाकिस्तानी होने का गर्व दिन-प्रति-दिन घटता जा रहा है, अत: सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि कट्टरता व आतंकवाद की राह पर यह देश अब न बढ़े, ताकि दुनिया में उसके पासपोर्ट की भी इज्जत बढ़े।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान


Rani Sahu

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