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चंडीगढ़ के अपने हालिया दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने एक सीधा सादा ऐलान किया था
कंवर संधू
चंडीगढ़ के अपने हालिया दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने एक सीधा सादा ऐलान किया था. तब शायद ही लोगों ने सोचा होगा कि इस घोषणा से जटिलताओं के साथ एक विवाद खड़ा हो जाएगा. उन्होंने केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ (Chandigarh) के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सेवा नियमों को लागू करने का फैसला लिया था. इस फैसले के बाद पंजाब (Punjab) के अधिकांश राजनीतिक दलों ने विरोधी रुख अख्तियार करते हुए केन्द्र सरकार पर ये आरोप लगाया कि वह राज्य के प्रति भेदभाव कर रही है. इसने चंडीगढ़ पर अपने दावों को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच पुराने झगड़े को भी फिर से सामने ला दिया.
नई सरकार बनने पर राजनीतिक माहौल गर्म
अमित शाह की घोषणा से चंडीगढ़ में पंजाब सेवा नियमों की जगह केंद्रीय नियम लागू हो गए. फैसले से यूनियन टेरिटरी चंडीगढ़ के कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी हो गई. दरअसल पहले केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों के लिए समय-समय पर दोनों नियमों को लागू किया जाता था. इसमें ध्यान रखा जाता था कि कौन सा नियम उनके लिए ज्यादा फायदेमंद है. लेकिन इस बार जब पंजाब में आप की नई सरकार बनी तो राजनीतिक माहौल काफी गर्म हो गया और इस घोषणा ने तो आग ही लगा दी. एक तरफ केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारी इस बदलाव का जश्न मना रहे थे. तो दूसरी तरफ पंजाब में सत्तारूढ़ "आप" के साथ कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल सहित तमाम विपक्षी दल केंद्र सरकार पर ये आरोप लगा रहे थे कि उन्होंने पंजाब के वैध अधिकारों को "लूट" लिया है.
लोकप्रियता की लहरों पर सवार नई आप सरकार ने इस भावनात्मक मुद्दे को भुनाने में थोड़ी भी देर नहीं की. इसने इस पर और इससे संबंधित मुद्दों पर एक प्रस्ताव पेश करने के लिए शॉर्ट नोटिस पर विधानसभा का एक विशेष सत्र बुला लिया. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्वयं प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का हवाला दिया जिसके तहत पंजाब को हरियाणा और चंडीगढ़ में पुनर्गठित किया गया था और पंजाब के कुछ हिस्सों को हिमाचल प्रदेश को दिया गया था. आप सरकार के प्रस्ताव में में कहा गया, "पुनर्गठन के बाद पंजाब राज्य और हरियाणा राज्य के नामांकित व्यक्तियों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पद देकर BBMB जैसी सामान्य संपत्ति के प्रशासन में संतुलन रखा गया था. लेकिन अपनी कई हालिया कार्रवाइयों के जरिए केंद्र सरकार संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है."
केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू करने का विरोध
मान ने खास तौर पर बीबीएमबी के कुछ पदों को विज्ञापन के जरिए भरने की कोशिशों का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि अब तक ये केवल पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों द्वारा संचालित होता रहा है. चंडीगढ़ प्रशासन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि पहले 60:40 के अनुपात में पंजाब और हरियाणा के अधिकारी चंडीगढ़ प्रशासन का प्रबंधन करते थे. उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि बाहर से अधिकारियों की नियुक्ति और चंडीगढ़ के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू करना वाकई में आपसी सहमति के विपरीत है.
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि जब भी किसी राज्य का विभाजन होता है तो राजधानी मूल राज्य के पास रहती है. प्रस्ताव में तत्काल "चंडीगढ़ को पंजाब में स्थानांतरित करने" की मांग को दोहराया गया साथ ही "केंद्र सरकार को संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने के लिए कहा गया."
भले ही पंजाब विधानसभा द्वारा चंडीगढ़ के स्थानांतरण से संबंधित प्रस्ताव कम से कम छह बार पारित किए गए हों, लेकिन इस बार आप सरकार बाजी मारने में सफल रही. भाजपा के दो विधायकों को छोड़कर, अन्य सभी दलों के सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था. मान ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर पंजाब के नजरिए को रखने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से समय मांगा जाएगा.
हरियाणा भी एक्शन में
भले ही केंद्र सरकार चंडीगढ़ पर आगे बढ़ने का फैसला करे या नहीं करे, लेकिन इतना तो जरूर है कि इस संवेदनशील मुद्दे को फिर से छेड़ दिया गया है. उम्मीद के मुताबिक पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ पर दावा पेश करने वाले प्रस्ताव के खिलाफ हरियाणा के सभी राजनीतिक दल एकजुट हो गए. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि चंडीगढ़ हरियाणा और पंजाब की राजधानी है और रहेगी. पूर्व सीएम और अब विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने अन्य मुद्दों को उठाया और कहा कि पानी और क्षेत्रीय मामलों को भी हल करने की जरूरत है.
इंडियन नेशनल लोक दल के अभय चौटाला ने मांग की कि चंडीगढ़ और एसवाईएल के मुद्दों पर चर्चा के लिए हरियाणा विधानसभा का एक दिवसीय सत्र बुलाया जाए. दिलचस्प बात यह है कि न तो चंडीगढ़ इकाई और न ही आप की हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ईकाइयों ने इस मुद्दे पर किसी तरह की टिप्पणी की. जाहिर है कि आप अब हिमाचल और हरियाणा में चुनाव लड़ने की योजना बना रही है.
चंडीगढ़ का पंजाब में कथित स्थानांतरण की एक लम्बी कहानी है. 1947 में देश के विभाजन के एक साल बाद तक जब पंजाब की राजधानी लाहौर पाकिस्तान में बनी रही, तब चंडीगढ़ को एक नई राजधानी शहर बनाने का विचार आया. शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसे इस जगह को इसलिए चुना गया था क्योंकि यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से संयुक्त पंजाब में स्थित था. इसके अलावा ये खूबसूरत जगह नदी नालों से भरा हुआ था और खेती-बारी के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था. पंजाब में खरड़ तहसील के 22 गांवों का अधिग्रहण होने के बाद काम जोर-शोर से शुरू हुआ. प्रसिद्ध स्विस-फ्रांसीसी आर्किटेक्ट और अर्बन प्लानर ले कॉर्बूज़ियर को शहर की योजना बनाने का काम सौंपा गया था. इसे "द सिटी ब्यूटीफुल" कहा जाने लगा और इसका उद्घाटन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1953 में किया था. यह शहर दुनिया के एक दर्जन नियोजित शहरों में से एक है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन डीसी और पाकिस्तान का इस्लामाबाद शामिल हैं.
हरियाणा और हिमाचल का बनना
पंजाब के पुनर्गठन के बाद, एक नया राज्य हरियाणा बनाया गया था और कुछ पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया था. लेकिन चंडीगढ़ को लेकर ये फैसला नहीं लिया जा सका कि दोनों राज्यों में से किसे दिया जाए. नतीजतन, चंडीगढ़ को एक नया केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. एक अंतरिम व्यवस्था के तहत चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की संयुक्त राजधानी बना दिया गया. सचिवालय भवन, विधानसभा और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय परिसर जैसी कुछ महत्वपूर्ण संपत्तियों को 60:40 अनुपात में बांट दिया गया जब तक कि कोई फैसला नहीं ले लिया जाता है.
केंद्र असमंजस में फंसा हुआ था और यहां तक कि उसने शहर को दो भागों में बांटने के बारे में भी सोचा था. लेकिन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला किया क्योंकि यह शहर की परिकल्पना, अवधारणा और नक्शा के साथ खिलवाड़ हो जाता. इस बीच शिरोमणि अकाली दल ने एक आंदोलन शुरू किया और उसके अध्यक्ष संत फतेह सिंह ने धमकी दी कि अगर चंडीगढ़ को पंजाब में स्थानांतरित नहीं किया जाता है तो वे आत्मदाह कर लेंगे. इस धमकी ने फैसला लेने की प्रक्रिया को तेज कर दिया और जनवरी 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि चंडीगढ़ पंजाब जाएगा और हरियाणा पांच साल के भीतर अपनी नई राजधानी बनाएगा. हरियाणा को 10 करोड़ रुपये का अनुदान राजधानी बनाने के लिए दिया जाना था.
चंडीगढ़ का स्थानांतरण अकाली दल की मांगों में से एक
लेकिन मामला यूं ही चलता रहा. बाद में चंडीगढ़ का स्थानांतरण अकाली दल की मांगों में से एक था और उन्होंने 1982 में केंद्र के खिलाफ "धर्म युद्ध मोर्चा" शुरू कर दिया. यह मुद्दा जल्द ही बेकाबू हो गया और जून 1984 में "ऑपरेशन ब्लू स्टार" के तहत सेना को पंजाब में बुलाया गया. शहर के प्रशासन में काफी बदलाव लाते हुए केंद्र सरकार ने शहर पर अपना दबदबा बढ़ा लिया.
1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौते के मद्देनज़र फिर से ऐसा लगने लग गया था कि चंडीगढ़ पंजाब में स्थानांतरित हो जाएगा. समझौते के क्लौज 7 के अनुसार, चंडीगढ़ को 26 जनवरी, 1986 को पंजाब में स्थानांतरित किया जाना था. स्थानांतरण के बदले में, हरियाणा से सटे कुछ हिंदी भाषी क्षेत्रों को पंजाब से स्थानांतरित किया जाना था. हालांकि, हरियाणा को स्थानांतरित किए जाने वाले इलाकों पर विवाद की वजह से एक बार फिर पंजाब में चंडीगढ़ को शामिल नही किया जा सका.
इसके बाद से चंडीगढ़ का स्थानांतरण हमेशा ही विवाद का मुद्दा बना रहा और खास तौर पर चुनाव के दौरान इस मुद्दे को उठाया जाता रहा. यूं तो शहर में एक तरह की यथास्थिति बनी हुई है लेकिन जमीन पर पिछले तीन दशकों के दौरान शहर की जनसांख्यिकी में भारी बदलाव आया है. पुनर्गठन के बाद यहां मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के लोग रहते थे. लेकिन 2011 की जनगणना के आंकड़े एक अलग तस्वीर प्रस्तुत करते हैं. पंजाब के 13.58 प्रतिशत, हरियाणा के 8.37 और हिमाचल प्रदेश के 5.72 प्रतिशत के मुकाबले यूपी के लोगों का प्रतिशत 17.36 प्रतिशत और बिहार का 5.09 प्रतिशत था. जाहिर है कि 10 साल बाद अब पंजाब और हरियाणा के मुकाबले दूसरे राज्यों के लोगों की आबादी और भी बढ़ गई होगी. हाल के चंडीगढ़ नगरपालिका चुनावों के दौरान ये देखा गया था कि यूपी, बिहार और उत्तराखंड के कई प्रवासी मैदान में थे. कुछ साल पहले यहां के कुछ निवासियों ने एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था जिसके तहत 114 वर्ग किलोमीटर में फैले चंडीगढ़ क्षेत्र को "शहर राज्य" बनाने की मांग की गई थी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि शहर का स्थानांतरण आसान नहीं होगा क्योंकि पंजाब और हरियाणा के अलावा चंडीगढ़ की आबादी भी इस निर्णय को प्रभावित करेगी.
कर्मचारियों के चरित्र में एक बड़ा बदलाव आया है
मामला अब और पेचीदा हो गया है. एक तरफ तो पंजाब और हरियाणा की सरकारें इन चीजों के प्रति जस की तस बनी रही, वहीं दूसरी तरफ शहर में कर्मचारियों के चरित्र में एक बड़ा बदलाव आया है. इसके लगभग 23000 कर्मचारियों में से लगभग 21,500 को सीधे केंद्र शासित प्रदेश द्वारा नियुक्त किया गया है जो 1960 के दशक की परंपरा के ठीक विपरीत है जब उनमें से अधिकांश पंजाब और हरियाणा से डेपुटेशन पर नियुक्त होते थे. चूंकि उनमें से अधिकांश केंद्र के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने अमित शाह की घोषणा का स्वागत किया है.
इस बीच, मूल योजनाओं में शहर की चौहद्दी को "नो-कंस्ट्रक्शन" ज़ोन के रूप में चिह्नित किया गया था. लेकिन अब यहां भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. दोनों राज्यों की सरकारों की इसमें जबरदस्त भूमिका रही है. पंजाब में एसएएस नगर (मोहाली) और हरियाणा में पंचकुला जैसी टाउनशिप बसा दी गई. पंजाब में मुल्लांपुर और उसके आसपास के गांवों में एक विशाल न्यू चंडीगढ़ टाउनशिप आ रही है. यूटी चंडीगढ़ का आकर्षण ऐसा रहा है कि आधा दर्जन से अधिक अन्य टाउनशिप इसके चारों ओर वजूद में आ गई हैं. इस पूरे इलाके को कई लोग बतौर चंडीगढ़ कैपिटल रिजन (सीसीआर) जानने लगे हैं. शायद दिल्ली के नेशनल कैपिटल रिजन (एनसीआर) के इस तरफ यह सबसे बड़ा शहरी फैलाव है
बदले हुए हालात में अगर शहर की स्थिति में किसी तरह का भी बदलाव होता है तो वह राजनीतिक रूप से काफी विवादास्पद मुद्दा होगा. लेकिन इस सबके बावजूद इस मुद्दे पर राजनीति करने से किसी सियासी दल को रोका नहीं जा सकता है. दरअसल, आने वाले दिनों में इस पर सियासत बढ़ेगी है.
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