सम्पादकीय

मौका या धोखा

Admin Delhi 1
18 Jun 2022 6:48 AM GMT
मौका या धोखा
x

प्रदीप पंडित, संपादक

सेना के तीनों अंगों में भर्ती के लिए लाई गई केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना बस्तुत: युवाओं के लिए मौका है या धोखा है।पूरी योजना को समझे बिना असहमत होते युवाओं ने अनुशासनहीन और अराजक युवाओं की तस्वीर पेश की। सैन्य बलों के ढांचे को युवा बनाने की प्रक्रिया दुनिया में नहीं बल्कि नई पीढ़ी को उसकी ऊर्जा को चेनलाइन कर समाज और राष्ट को लाभान्वित करना भी है।

मुद्दा यह कि सरकार के भरोसे को एकाएक भ्रम में किसने और कैसे बयान दिया। 14 जून को इस योजना की घोषणा हुई और 16 जून को अनेक जगह हिंसा बरपा दी गई। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। पहला यी कि अग्निवीरों का भविष्य असुरक्षित है। कैसे ? जो आगे चलकर अपना व्यापार करना चाहते हैं या पढ़ना चाहते हैं उनका क्या होगा ? अगर यह सवाल है तो इसका उत्तर यह है कि पढ़ने वालों के लिए एनआईओएस अर्थात राष्टÑीय मुफ्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान से 12वीं का सर्टिफिकेट हासिल कर सकते हैं और चाहें तो आगे पढ़ाई जारी रख सकते हैं। इस कोर्स के लिए इंडियन आर्मीए एअर फोर्स और नेवी इग्नू के साथ एमओयू साइन करेगा।

विरोध की वजह क्या है ? वजह अवधि का कम होना है तो ठीक लग सकता है। इसे पांच से सात साल का किया जाना चाहिए। लेकिन किसी योजना के आने के चंद घंटों के बाद हिंसा कैसे बरप सकती है ? कहीं यह योजनाबद्ध अराजकता की ओर संकेत तो नहीं कर रहा। वे लोग जो सैन्यभर्ती की इस योजना से नाखुश हैं, उनसे ध्वनि तो यहीं आ रही है कि वे भी सेना में शरीक होने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन क्या... बात यह नहीं कि सरकार की इस योजना का क्या होगा। यह भी नहीं की युवकों को बेरोजगारी की तपती धूप और रोजगार के रेगिस्तान में जगह मिलेगी या नहीं। इसलिए की नियत पर शक करना एक मानसिकता का परिचायक है। कुछ समझने के लिए कुछ ज्यादा करना हो होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अग्निवीरों के और अनुभव को मान्यता देने के साथ उन्हें उच्च शिक्षा में सुविधा प्रदान करने की तैयारी शुरू कर दी है।

बात यह है कि लोग कौन हैं जो बिना योजना और समझे सीधे आगजनी और अराजकता पर उतर आए। भाषा सदैव दो निर्वाह भूमि होती है और संवाद का खत्म हो जाना उस भूमि को निर्बर बना देता है। किसे बताएं कि हजारी प्रसाद द्विवेदी का एक निबंध है 'अशोक के फूल' की शुरूआत उदास करती है। लेकिन अंत में वे कहते हैं कि उदास होना बेकार है। ठीक इसी तरह बिना योजना को पूरी तरह समझे केवल जाति स्मृति से राजनीति करना और मौलिक फैसलों पर हमला करना न्यायोचित नहीं होगा। इसे किसी अर्थ में उचित नहीं ठहराया जा सकेगा। फिर, ऐसा भी नहीं कहा गया कि इनके प्रावधानों में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

निरंतर बदलाव हर व्यवस्था का जरूरी हिस्सा होता है। इसी से जोश, जज्बे को और युवाओं को अवसर मिलते हैं। मेरठ, आगरा, अलीगढ़, फिरोजाबाद, राजस्थान के नागौर, झुंझुनू, जैसलमेर, उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बिहार में सबसे ज्यादा और उग्र प्रदर्शन क्या दर्शाते हैं? भाजपा विधायक पर हमला, पलवल में लाठीचार्ज, यह सब अचानक कैसे हुआ? सरकार को भी चाहिए था कि पहले वह इस योजना को लोगों तक पहुंचाती । अब इस पूरी योजना को इन सभी जगहों के सांसदों और संबंधित महकमे के लोगों के द्वारा पहुंचाना चाहिए था। जैसा कि कुछ एक सेवानिवृत्त सेना के अफसरों ने सुझाया भी है कि इसे शुरूआत में पायलट प्रोजेक्ट की तरह चला कर देखना चाहिए। अब तो यह है कि विरोधियों ने इस योजना की आलोचना करते हुए अग्नि वीरों को टूरिस्ट तक कह दिया। इसे भाषिक हिंसा की परिधि में लिया जाना चाहिए। मालूम होगा विश्व युद्ध के समय भारतीय सैनिकों की कलर सर्विस की अवधि 7 वर्ष थी। और उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। रही बात सेना से बाहर जाने वाले युवाओं की तो उनकी उम्र काफी कम होगी। वह अनुशासित, प्रशिक्षित और निष्ठावान नौजवान होंगे जो किसी निजी कंपनियों को भी बहुत रास आएंगे। वैसे राज्य सरकारों ने भी कहा है कि वे उन्हें अपने यहां समायोजित करेंगे । इसमें वरीयता भी इन्हें ही दी जाएगी। इस पर विपक्ष का कहना है कि इस बात की गारंटी दी जाए कि उन्हें सेवा में लिया ही जाएगा मुझे लगता है कि युवा राष्ट्र निधि हैं उन्हें राजनीति के हथ कंडो के साथ मत तौलिए। विरोध सरकार से है तो कीजिए। लेकिन नौजवानों को बरगालिए नहीं। मुद्दा आधारित राजनीति की जानी चाहिए जैसे जयप्रकाश नारायण ने की। आप सब बदलने की मांग भी कर सकते हैं, लेकिन साथ में आपके पास उसका विकल्प हो। सिर्फ युवाओं के जज्बे को ना बढ़ाएं। युवा यथावाद के हक में कभी नहीं होता, इससे इसका लाभ ना उठाइए। यह पूरा बवाल उन यथावादियों द्वारा खड़ा किया गया है जो बदलाव के हक में नहीं लेकिन उन लोगों ने तरकीब से युवाओं को आगे कर दिया।

Next Story