सम्पादकीय

विकसित देश बनाने की चुनौतियां

Subhi
5 Sep 2022 4:43 AM GMT
विकसित देश बनाने की चुनौतियां
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भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए पच्चीस वर्षों तक लगातार करीब सात से आठ फीसद की दर से बढ़ना होगा। इसके अलावा कई अहम बातों पर ध्यान देना होगा।

जयंतीलाल भंडारी: भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए पच्चीस वर्षों तक लगातार करीब सात से आठ फीसद की दर से बढ़ना होगा। इसके अलावा कई अहम बातों पर ध्यान देना होगा। नई पीढ़ी को नए कौशल से सुसज्जित करके बड़ी संख्या में नई नौकरियों का सृजन करना होगा।

इन दिनों भारत को विकसित देश बनने की संभावनाओं पर मंथन चल रहा है। यह अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है। एक विकसित राष्ट्र की पहचान आमतौर पर अपेक्षाकृत ऊंची आर्थिक विकास दर, बेहतर जीवन स्तर और उच्च प्रति व्यक्ति आय से होती है। इसके अलावा उसे मानव विकास सूचकांक के मानकों पर अच्छा प्रस्तुतीकरण करने की भी जरूरत होती है। इसमें शिक्षा, साक्षरता और स्वास्थ्य जैसी आधारभूत चीजें शामिल हैं। इन सभी मानकों पर भारत अभी बहुत पीछे है और विकसित देश बनने का लक्ष्य पाना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।

जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि भारत 2047 में विकसित देश कैसे बनेगा, तो दो बातों का विश्लेषण करना होगा। एक, आजादी से अब तक भारत का आर्थिक-सामाजिक आधार कैसा है और दो, हम विकसित देश बनने के लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर पाएंगे? निश्चित रूप से विगत पचहत्तर वर्षों में असाधारण चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के बाद दुनिया में सामर्थ्यवान भारत की जो तस्वीर दिखाई दी है, उसके आधार पर देश के विकसित देश बनने की पूरी क्षमता है।

गौरतलब है कि इस समय भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। 2021-22 में 83.57 अरब डालर का एफडीआई प्राप्त हुआ है। कंप्यूटर साफ्टवेयर और हार्डवेयर क्षेत्र में सबसे अधिक एफडीआई प्राप्त हुआ है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत स्तर पर दिखाई दे रहा है, जो कि दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। दुनिया के ढहते शेयर बाजारों के बीच 30 अगस्त, 2022 को सेंसेक्स 59357 अंकों की ऊंचाई पर दिखाई दिया।

पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात करीब 419 अरब डालर और सेवा निर्यात करीब 249 अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचना इस बात का संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की डगर पर आगे बढ़ रहा है। भारत की पहचान एक उद्यमी समाज के रूप में बन रही है। इस समय भारत नवउद्यमों और यूनिकार्न्स का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा ठिकाना बन गया है। यूनिकार्न एक अरब डालर मूल्यांकन वाले उपक्रम होते हैं।

देश कृषि क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ा है। वर्ष 2021-22 के चौथे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 31.57 करोड़ टन होगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 49.8 लाख टन अधिक है। देश की अर्थव्यवस्था तेजी से डिजिटल होती गई है। इस समय भारत डिजिटल तकनीक के कारण कृत्रिम मेधा, ड्रोन, रोबोटिक्स, ग्रीन एनर्जी, चौथी औद्योगिक क्रांति और डिजिटल पेमेंट की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। दुनिया के चालीस फीसद आनलाइन पेमेंट भारत में हो रहे हैं।

इतना ही नहीं, डिजिटल इंडिया मुहिम देश को डिजिटलीकृत और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभा रही है। इससे ई-कामर्स और अन्य व्यवसाय बढ़ रहे हैं। साथ ही डिजिटल अर्थव्यवस्था के तहत रोजगार के नए मौके निर्मित हो रहे हैं। कोविड महामारी और वर्तमान वैश्विक संघर्षों के बीच देश की नई प्रतिभाशाली पीढ़ी के बल पर देश स्टार्टअप और साफ्टवेयर से लेकर स्पेस जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सामर्थ्यवान देश के रूप में उभर रहा है। मार्गन स्टैनली की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज बढ़ती एशियाई अर्थव्यवस्था होगी।

जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि हमें विकसित देश बनने के लिए कितने और कैसे प्रयास करने होंगे, तो हमारे सामने दुनिया के अड़तीस विकसित देशों का आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) दिखाई देता है। विकसित देशों का यह संगठन हमें संकेत देता है कि करीब बारह हजार से पंद्रह हजार डालर प्रति व्यक्ति जीडीपी के आधार पर अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में जगह मिल जाती है।

अभी भारत की प्रति व्यक्ति आय पच्चीस सौ डालर से भी कम है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2047 तक भारत की जनसंख्या एक सौ चौंसठ करोड़ तक पहुंच सकती है। इसलिए अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्रों की पांत में शामिल होना है तो उस समय भारत की अर्थव्यवस्था करीब बीस लाख करोड़ डालर होनी चाहिए, जो फिलहाल करीब 2.7 लाख करोड़ डालर है। यानी पच्चीस वर्षों में जीडीपी को छह गुना अधिक बढ़ना पड़ेगा।

भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए पच्चीस वर्षों तक लगातार करीब सात से आठ फीसद की दर से बढ़ना होगा। इसके अलावा कई अहम बातों पर ध्यान देना होगा। नई पीढ़ी को नए कौशल से सुसज्जित करके बड़ी संख्या में नई नौकरियों का सृजन करना होगा। नई रिपोर्टों के अनुसार अगले वर्ष तक भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा और देश में श्रम योग्य आयु वाली आबादी का बढ़ना 2045 तक जारी रहेगा और इस राह में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा।

ऐसे में इस नई डिजिटल दुनिया में देश की नई पीढ़ी को डिजिटल रोजगार जरूरतों के कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित करना होगा। आटोमेशन, डेटा साइंस, मशीन लर्निंग रोबोटिक्स और कृत्रिम मेधा के चलते देश की नई पीढ़ी देश ही नहीं दुनिया भर में डिजिटल अर्थव्यवस्था में बढ़े हुए रोजगार मौकों को मुठ्ठियों में ले सकेगी। अगले पच्चीस वर्षों के दौरान दस हजार यूनिकार्न के सृजन की व्यापक योजना बनाना उचित होगा। वहीं देश को कुछ सौ डेकाकोर्न की योजना भी बनानी होगी। डेकाकोर्न दस अरब डालर मूल्यांकन वाले उपक्रम होते हैं।

हमें भी शोध और नवाचार में तेजी से बढ़ना होगा। इस समय देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 0.67 प्रतिशत आरऐंडडी पर खर्च होता है। चीन और यूरोपीय संघ में आरऐंडडी पर जीडीपी का करीब दो प्रतिशत, अमेरिका और जापान में करीब तीन फीसद और दक्षिण कोरिया में करीब 4.5 फीसद व्यय किया जाता है। शोध और नवाचार की भूमिका को प्रभावी बनाने के लिए सरकार को आरएंडडी पर कुल जीडीपी का दो फीसद तक खर्च करना होगा। इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ानी होगी।

निस्संदेह चीन के प्रति बढ़ती वैश्विक नकारात्मकता के बीच हमें विनिर्माण क्षेत्र और विभिन्न उत्पादों की वैकल्पिक आपूर्ति करने वाले देश के रूप में आगे बढ़ने का अवसर मुठ्ठी में लेना होगा। सरकार द्वारा भारत को दुनिया का नया विनिर्माण केंद्र बनने की संभावनाओं को साकार करना होगा। देश को कृषि क्षेत्र में वैश्विक नेता बनने का मौका मुठ्ठियों में लेना होगा। देश में दलहन और तिलहन की उन्नत खेती में 'लैब टू लैंड स्कीम' के प्रयोग और वैज्ञानिकों की सहभागिता के साथ नीतिगत समर्थन की नीति से तिलहन मिशन को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। इन सब प्रमुख उपायों के साथ देश को आगामी पच्चीस वर्षों में विकसित देश बनाने के लिए कई और बातों पर ध्यान देना होगा। देश के बुनियादी ढांचे को और मजबूत बनाना होगा।

हमें प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण को भारत की आर्थिक और सामाजिक नीति के आधार के रूप में विकसित करना होगा। देश के 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' में सुधार करना होगा। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी और शिशु मृत्यु दर में कमी लानी होगी। शिक्षा के उन्नयन और कौशल युक्त उच्च शिक्षा में अधिक छात्रों का प्रवाह बढ़ाना होगा। स्टार्टअप और स्वरोजगार के अधिक प्रयास करने होंगे। इन उपायों को अमल में लाकर हम देश के आजादी के सौवें वर्ष में आर्थिक शक्तिशाली और विकसित भारत बनने के सपने को साकार कर सकेंगे।


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