सम्पादकीय

डिजिटल मुद्रा की चुनौतियां

Subhi
21 March 2022 4:16 AM GMT
डिजिटल मुद्रा की चुनौतियां
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हर मुद्रा नोट की अलग पहचान और अलग नंबर होता है। डिजिटल रुपए में इसे कैसे प्रबंधित किया जाएगा, यह सवाल अलग है। बड़ा सवाल तो यह है कि डिजिटल रुपए किसे जारी किए गए, किसके पास कितने हैं

आलोक पुराणिक: हर मुद्रा नोट की अलग पहचान और अलग नंबर होता है। डिजिटल रुपए में इसे कैसे प्रबंधित किया जाएगा, यह सवाल अलग है। बड़ा सवाल तो यह है कि डिजिटल रुपए किसे जारी किए गए, किसके पास कितने हैं, यह जानकारियां कैसे और कितनी जुटाई जाएंगी? क्या कोई डिजिटल तौर पर यह जानकारियां देना पसंद करेगा कि मेरे पास कितने डिजिटल रुपए हैं?

रिजर्व बैंक लगातार इस आशय की घोषणा कर रहा है कि वह डिजिटल मुद्रा पर काम कर रहा है। हाल में जब क्रिप्टोकरेंसी के चलन से जुड़ी बहसें तेज हुर्इं, तो इस आशय के प्रस्ताव सामने आने लगे कि रिजर्व बैंक को जल्दी से जल्दी अपनी डिजिटल मुद्रा को लाना चाहिए। सवाल यह है कि रिजर्व बैंक की डिजिटल मुद्रा यानी रिजर्व बैंक का डिजिटल रुपया होगा क्या!

भारत की आधिकारिक मुद्रा का नियंत्रक भारतीय रिजर्व बैंक है। नोटों पर रिजर्व बैंक का वादा दर्ज होता है कि वह धारक को एक तय रकम अदा करने का वचन देता है। इस वचन को पूरा करने का मौका अभी तक के इतिहास में कभी नहीं आया कि लोगों ने रिजर्व बैंक के दफ्तर के बाहर लाइन लगा दी हो कि रिजर्व बैंक अपने वादे को पूरा करे। रिजर्व बैंक ने वादा किया, इतने भर से मान लिया जाता है कि यह आधिकारिक मुद्रा है।

यानी भारत में आधिकारिक मुद्रा का जारीकर्ता एक ही संगठन है- भारतीय रिजर्व बैंक। रिजर्व बैंक अब तक इस मुद्रा को भौतिक स्वरूप में ही जारी करता रहा है। पर डिजिटल स्वरूप में जारी मुद्रा भौतिक तौर पर जारी न होगी, यानी यह डिजिटल मोड में ही होगी। इसे छुआ ना जा सकेगा, न ही इसके नोट होंगे। पर इसकी पूरे तौर पर कानूनी मान्यता होगी। तकनीकी भाषा में कहें तो रिजर्व बैंक अगर डिजिटल रुपया जारी करता है, तो यह लीगल टेंडर होगा। लीगल टेंडर से आशय ऐसी मुद्रा से है, जिसे लेने से भारत में कोई इनकार नहीं कर सकता।

उदाहरण के लिए, कहीं ऐसा चलना हो सकता है कि रेजगारी न होने पर कोई दुकानदार टाफी चाकलेट दे देता है, पर यह लीगल टेंडर नहीं है। यानी किसी ग्राहक को विवश नहीं किया जा सकता कि वह धनराशि की जगह चाकलेट टाफी को स्वीकार करे ही। पर रिजर्व बैंक द्वारा जारी रुपया लीगल टेंडर है, इसलिए इसे किसी वस्तु या सेवा के भुगतान में इसे स्वीकार करना ही होगा। आम मुद्रा की तरह लेन-देन में इसका चलन होगा, लेकिन इसे भौतिक रूप में नहीं, डिजिटल रूप में उपयोग किया जा सकेगा। इसे डिजिटल बटुए में रखा जा सकेगा और वहीं से भुगतान और आनलाइन खरीददारी संभव होगी। इस तरह डिजिटल रुपया कागज के नोट की जगह बदला जा सकेगा। तो कुल मिलाकर यह डिजिटल रुपया एक तरह से कागज के नोट का डिजिटल संस्करण होगा।

क्रिप्टोकरेंसी की आमद के बाद ही रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए की चर्चा तेज हुई है। एक वर्ग में यह माना जा रहा है कि डिजिटल रुपए के आने से क्रिप्टोकरेंसी का आकर्षण कम हो जाएगा। पर सच यह है कि क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल रुपया दोनों अलग- अलग हैं। दोनों में कुछेक समानताएं भले दिखती हों, पर बुनियादी तौर पर दोनों में बहुत अंतर है। क्रिप्टोकरेंसी के विकल्प के तौर पर रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए को नहीं रखा जा सकता। डिजिटल रुपया तो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी रुपया होगा, आधिकारिक मुद्रा के तौर पर इसे जारी किया जाएगा। पर क्रिप्टोकरेंसी का हिसाब-किताब बहुत ही अपारदर्शी है। जैसे बिटकायन के भाव ऊपर नीचे क्यों जाते हैं, इसका वैज्ञानिक विश्लेषण किसी के पास नहीं है।

जैसे भारतीय रुपए की आखिरी जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है, ऐसे में क्रिप्टोकरेंसी की जिम्मेदारी किसी की नहीं है। तो कुल मिलाकर क्रिप्टोकरेंसी एक तरह सट्टेबाजी से जुड़ा उत्पाद है। सट्टेबाजी से आशय अनुमानों और अनिश्चितता पर आधारित निवेश से है, जिसका कोई वैज्ञानिक या वैधानिक आधार नहीं होता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा भी था कि इस निवेश के पीछे तो ट्यूलिप तक का आधार नहीं है। यह ट्यूलिप का जिक्र रिजर्व बैंक के गवर्नर ने क्यों किया? भयंकर जोखिम वाले अनिश्चित निवेश के लिए ट्यूलिप का संदर्भ है, जिसका ताल्लुक अविवेक और उन्माद से है। ट्यूलिप एक फूल का नाम है।

यूरोप के देश हालैंड में सत्रहवीं शताब्दी ट्यूलिप को लेकर पागलपन-सा पैदा हो गया था। हर कोई सब कुछ छोड़ कर ट्यूलिप का व्यापार करने की सोचने लगा। मध्यवर्ग से लेकर गरीब तबके तक को ट्यूलिप में सुनहरा भविष्य नजर आने लगा था। लोगों ने अपने खेत, मकान और दुकान या तो गिरवी रख कर या बेच कर ट्यूलिप खरीद लिए। ट्यूलिप की एक पंखुड़ी की कीमत उस समय एक मकान की कीमत से ज्यादा थी।

यह सिर्फ उन्माद था। रिजर्व बैंक के गवर्नर का आशय था कि ट्यूलिप निवेश के पीछे तो कम से कम ट्यूलिप का आधार था, पर क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के पीछे तो कुछ भी नहीं है। ट्यूलिप तक नहीं है। यानी किसी भी तर्कहीन निवेश को ट्यूलिप उन्माद से जोड़ कर देखा जाता है। तो बात साफ यह है कि रिजर्व बैंक का डिजिटल रुपया आधिकारिक मुद्रा होगी और उसके भावों में वैसे उतार-चढ़ाव नहीं होंगे, जैसे क्रिप्टोकरेंसी के भावों में होते हैं। एक समानता है क्रिप्टोकरेंसी और रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए में यह होगी कि दोनों का स्वरूप डिजिटल होगा। पर क्रिप्टोकरेंसी को भारत में कभी वैध करेंसी के तौर पर या लीगल टेंडर के तौर पर मान्यता मिलेगी, इसकी संभावना नगण्य है।

रिजर्व बैंक को अंदाज है कि डिजिटल रुपए लाना और इसे सुचारु रूप से चला पाना आसान नहीं है। कई तकनीकी और व्यावहारिक दिक्कतें हैं। हर मुद्रा नोट की अलग पहचान और अलग नंबर होता है। डिजिटल रुपए में इसे कैसे प्रबंधित किया जाएगा, यह सवाल अलग है। बड़ा सवाल तो यह है कि डिजिटल रुपए किसे जारी किए गए, किसके पास कितने हैं, यह जानकारियां कैसे और कितनी जुटाई जाएंगी? क्या कोई डिजिटल तौर पर यह जानकारियां देना पसंद करेगा कि मेरे पास कितने डिजिटल रुपए हैं?

भारत की अर्थव्यवस्था में नकद के व्यवहार की अपनी जगह है। वर्ष 2016 की नोटबंदी और फिर कोरोना काल में लोगों ने आनलाइन भुगतान की आदतें बढ़ाई तो हैं, पर नकद की अपनी जगह कायम है। कुल मिलाकर सवाल यह उठ खड़ा होगा कि जब बिना रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए के ही लोग नकद व्यवहार और आनलाइन भुगतान की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं, तब रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए के आने का क्या असर पड़ेगा।

क्या यह क्रिप्टोकरेंसी की ओर जा रहे निवेशकों को रोक पाएगा, इस सवाल का जवाब है नहीं। क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध कितना लगाया जाएगा, यह भी अभी साफ नहीं है। पर साफ यह है कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए जो लोग जा रहे हैं, उन्हें सिर्फ डिजिटल रुपए से नहीं रोका जा सकता। दोनों एकदम अलग-अलग उत्पाद हैं। इसलिए दोनों की तुलना निरर्थक है।

डिजिटल रुपया मौद्रिक ढांचे में तकनीक की एक और आमद के तौर पर चिन्हित होगा, पर क्रिप्टोकरेंसी में निवेश इससे हतोत्साहित होगा, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। क्रिप्टोकरेंसी में निवेश को हतोत्साहित करने के लिए कराधान से लेकर प्रतिबंध तक बहुत दूसरे विकल्प हैं। रिजर्व बैंक को इन सवालों से जूझना होगा कि किस हद तक वह तमाम लोगों के आंकड़े अपने पास रख सकता है और यह किस तरह से संभव होगा।

तकनीक के स्तर पर, कानून के स्तर पर, जन शिक्षण के स्तर पर, ये सारी चुनौतियां सामने आएंगी। इन पर सलीके से विचार करके ही रिजर्व बैंक के डिजिटल रुपए का रास्ता आगे साफ हो सकता है। यह याद रखना होगा कि ये तकनीकी प्रयोग सामान्य तकनीकी प्रयोग नहीं हैं, देश की मौद्रिक व्यवस्था इससे जुड़ी हुई है। इसलिए डिजिटल रुपए के आगमन में भले ही थोड़ी देर हो जाए, पर जब यह आए तो एकदम दुरुस्त अवस्था में आना चाहिए।


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