सम्पादकीय

सामाजिक सुरक्षा की चुनौती : महंगाई का चौतरफा असर, आर्थिक सुधार में देरी सरकार की बढ़ेंगी मुश्किलें

Neha Dani
23 April 2022 1:44 AM GMT
सामाजिक सुरक्षा की चुनौती : महंगाई का चौतरफा असर, आर्थिक सुधार में देरी सरकार की बढ़ेंगी मुश्किलें
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जरूर बातचीत करनी चाहिए, और वास्तविकताओं का सामना करना चाहिए।

दक्षिणी दिल्ली की लाल गुंबद बस्ती, जहां ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर के रूप में अपना जीवन यापन करते हैं, उस अव्यवस्थित क्षेत्र का हिस्सा है, जिसे 'अनौपचारिक क्षेत्र' कहा जाता है। यह चौदहवीं सदी के सूफी संत की मजार से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यह पंचशील पार्क से भी नजदीक ही है, जो दिल्ली का पॉश इलाका है। इस भीड़-भाड़ वाली कॉलोनी में रहने वाले अधिकांश परिवारों के घर में शौचालय या नल नहीं हैं। हर सुबह कुछ सामुदायिक शौचालयों के बाहर लंबी कतारें लगती हैं। हालांकि कुछ लोगों को पाइप से पानी मिलता है।

दिसंबर, 2020 में, इस बस्ती की कई महिलाएं थोड़े समय के लिए मुखर हुई थीं। उनमें से कई ने दिल्ली रोजी-रोटी अधिकार अभियान नामक सिविल सोसाइटी समूह द्वारा आयोजित 'भूख सुनवाई' में अपनी बातें रखी थीं। मैंने उनके लाइव वीडियो देखे थे। उन्होंने शहर के कई गरीबों के बीच भोजन के संकट की कठोर वास्तविकता को उजागर किया था, जो अपनी नौकरी खो चुके थे और कोविड-19 महामारी की शुरुआत के साथ गहरे कर्ज में डूब गए थे। तबसे मैं कई बार लाल गुंबद बस्ती जा चुकी हूं। हाल ही में मैं एक बार फिर उस बस्ती में गई।
इस बार भी मैंने जिन लोगों से बात की, उनके मन में सबसे ऊपर भोजन का विषय था। दो बच्चों की मां और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ममता बाई चिंतित थीं। उन्होंने बताया कि वह खाना पकाने के लिए 15 किलोग्राम के खाद्य तेल का कनस्तर लेती हैं, जिसकी कीमत दो साल पहले 2,200 रुपये थी, जो अब बढ़कर 3,000 रुपये हो गई है। और इतना ही नहीं, खाना पकाने के तेल से लेकर सब्जी, रसोई गैस और दूध-सभी चीजों की कीमतें बढ़ गई हैं।
उनके पड़ोस की एक गृहिणी संजू (जिनके पति वेटर का काम करते हैं और जिनके दो बच्चे हैं) का कहना है कि परिवार के पास कोई बचत नहीं है और खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नए शैक्षणिक वर्ष में बच्चों के स्कूल की फीस कैसे चुकाई जाएगी। उस परिवार ने अपने आहार में सब्जियों की कटौती कर दी है। बच्चों को भी कम दूध दिया जाता है और बड़े लोग कम चाय पीते हैं। वह कहती हैं कि 'हम अपने मित्रों को ज्यादा आमंत्रित नहीं करते हैं। पैसे कहां हैं?'
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) ने तीव्र भुखमरी को दूर करने में मदद की है। यह गरीबों के लिए केंद्र सरकार की मुफ्त खाद्यान्न योजना है, जिसमें सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम चावल और गेहूं मुफ्त में देती है। इस योजना से लगभग 80 करोड़ लोगों को लाभ मिलता है और हाल ही में इसे आगामी सितंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है। लेकिन गरीबों का गुजारा भी सिर्फ गेहूं या चावल खाने से नहीं होता है। उनकी दूसरी जरूरतें भी हैं।
जब खाने-पीने की चीजों की कीमतें अधिक होती हैं, तो कई लोगों के पास कम खाने या सस्ता और कम गुणवत्ता वाला खाना खाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। फिर और भी खर्चे हैं और सब पर महंगाई भारी है। परांठे बेचने वाली एक बुजुर्ग विधवा ने मुझे बताया कि ऐसे दिन भी आते हैं, जब हाथ में पैसे नहीं होते हैं और वह एक चपाती, नमक और थोड़ा अचार खाकर सो जाती हैं। वह अपने परांठों की कीमत नहीं बढ़ा सकतीं, क्योंकि उनके ग्राहक भी बुरे समय से गुजर रहे हैं और अगर वह अधिक पैसे लेंगी, तो वे कहीं और जा सकते हैं।
ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी ने परिवहन लागत के साथ सभी को प्रभावित किया है। जबकि कम बचत और कम सामाजिक सुरक्षा वाले गरीब सबसे बुरी तरह से प्रभावित हैं। मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवार भी हाल के दिनों में भोजन और ईंधन की कीमतों में तेज वृद्धि के चलते बेहद कठिन समय से गुजर रहे हैं। पिछले तीन वर्षों में कई मध्यम वर्गीय परिवारों ने अपने परिवार के कमाने वाले व्यक्ति को नौकरी खोते देखा है; कई लोग कम कमा रहे हैं और कर्ज में भी हैं।
हैरानी की बात नहीं कि लोग कम खरीदारी कर रहे हैं, कम खाना खा रहे हैं और गैर-जरूरी खर्चों में कटौती कर रहे हैं। यह निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा। और सबको अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर रूस-यूक्रेन संघर्ष जारी रहता है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित रहती है, तो उपभोक्ताओं को आने वाले महीनों में कीमतों के मोर्चे पर और भी अधिक कष्ट सहने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। खुदरा मुद्रास्फीति के जोखिम अधिक व्यापक होते जा रहे हैं। अन्य संकेत भी परेशान करने वाले हैं।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल मार्च के महीने में अत्यधिक गर्मी ने गेहूं की फसल को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है और इससे गेहूं की पैदावार में पंद्रह से बीस फीसदी की कमी आ सकती है। फिर रूस के यूक्रेन पर हमले के दुष्प्रभाव के रूप में गेहूं निर्यातकों द्वारा वैश्विक गेहूं की कीमतों में तेज वृद्धि का फायदा उठाने की बातें की जा रही हैं। सरकार के पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है, जिसे खुले बाजार में कीमतों में और वृद्धि होने पर विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना चाहिए। हर कोई मुफ्त खाद्यान्न का हकदार नहीं है और खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी अति समृद्ध परिवारों को छोड़कर सबको प्रभावित कर रही है।
यदि खुदरा मुद्रास्फीति जल्द ही कम नहीं होती है और आर्थिक सुधार में देरी होती है, तो सरकार को सबसे कमजोर लोगों को अधिक से अधिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। ऐसे अनिश्चित माहौल में जब मौसम की चरम स्थितियां बढ़ती जा रही हैं, तो हमारे लिए जलवायु परिवर्तन उतना ही महत्वपूर्ण कारक होना चाहिए और खाद्यान्न के बारे में हमारी चर्चा में मौसम की चरम घटनाओं से निपटने की आवश्यकता शामिल होनी चाहिए। संकट की घड़ी में भोजन के बारे में हमारी चर्चा खुशनुमा नहीं होगी, लेकिन हमें इसके बारे में जरूर बातचीत करनी चाहिए, और वास्तविकताओं का सामना करना चाहिए।

सोर्स: अमर उजाला

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