सम्पादकीय

अमल की चुनौती

Subhi
2 July 2022 4:49 AM GMT
अमल की चुनौती
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देश में अब एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक के सामान पर प्रतिबंध लग गया है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिहाज से यह महत्त्वपूर्ण और जरूरी कदम है। लेकिन इसे लेकर अब कामयाबी तभी हासिल हो पाएगी जब इस पर सख्ती से अमल हो।

Written by जनसत्ता: देश में अब एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक के सामान पर प्रतिबंध लग गया है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिहाज से यह महत्त्वपूर्ण और जरूरी कदम है। लेकिन इसे लेकर अब कामयाबी तभी हासिल हो पाएगी जब इस पर सख्ती से अमल हो। यों इस तरह के प्लास्टिक के सामान पर प्रतिबंध लगाने की कवायद तो काफी समय से चल रही है।

प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उसी साल दो अक्तूबर से इस प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने का एलान किया था। पर लगता है कि ऐसे प्रतिबंध लगाने में व्यावहारिक अड़चनें इतनी ज्यादा रहीं होंगी कि अभी तक इस दिशा में कदम नहीं बढ़ पाए। पर सरकार ने अब जिस संकल्प और सख्ती के साथ एकल उपयोग प्लास्टिक से बने सामान पर पाबंदी के लिए कमर कसी है, उससे इस मुद्दे को लेकर गंभीरता का पता चलता है। इस पर कड़ाई से अमल करवाने के लिए व्यापक तैयारियां की गई हैं। राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं और इसमें सहयोग नहीं करने वालों के खिलाफ दंड का भी प्रावधान है। हालांकि दंड से कहीं ज्यादा कंपनियों, विक्रेताओं और लोगों के सकारात्मक रुख, सहयोग और जागरूकता से ऐसे अभियान कामयाब बनाए जा सकते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पर्यावरण और प्राणियों के लिए प्लास्टिक एक गंभीर संकट बन चुका है। इसने मानव जीवन में जितनी जगह बना ली है, उसे देखते हुए अब इससे पिंड छुड़ा पाना आसान नहीं है। अभी सिर्फ एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक के सामान पर पाबंदी लगी है, जिसमें कप, प्लेट, चम्मच, ग्लास जैसे सामान हैं, पालिथीन की थैलियां, प्लास्टिक के झंडे, आइसक्रीम स्टिक, स्ट्रा, सजावट के लिए थर्माकोल से बना सामान आदि हैं।

पाबंदी का मतलब साफ है कि अब न तो ये सब सामान बनेंगे, न इनका भंडार जमा होगा, न ही इनका आयात होगा और ये बाजार में बेचे भी नहीं जा सकेंगे। सरकारी अमले को यह सब सुनिश्चित करना होगा। हालांकि यह काम कम चुनौती भरा नहीं है। पहले भी जब-जब प्लास्टिक की थैलियों पर पाबंदी लगती रही है, देखने में यही आया कि कुछ दिन तो सरकारी अमला सतर्कता दिखाता है, प्लास्टिक थैलियां प्रयोग करने वालों पर जुर्माने की कार्रवाई होती है और थोड़े दिन बाद ही सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। सब जगह प्लास्टिक थैलियां धड़ल्ले से इस्तेमाल होने लगती हैं। ऐसे में सवाल है कि अब इस मुहिम को कामयाब कैसे बनाया जाएगा?

अच्छा तो यही है कि हम प्लास्टिक के उपयोग से जितना बच सकें, उतना बचें। जाहिर है, इस्तेमाल न्यूनतम करने की आदत डालनी होगी। फिर इसके विकल्प भी देखने होंगे। अभी हालत यह है कि रोजाना करीब साढ़े ग्यारह सौ टन प्लास्टिक कचरा निकलता है और इसमें आधे से ज्यादा कचरा यानी छह सौ बत्तीस एकबारगी इस्तेमाल हो सकने वाले प्लास्टिक कचरे का होता है। अभी तो मामला सिर्फ एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का ही है।

अगर इसका ही इस्तेमाल बंद कर दिया जाए तो काफी हद तक राहत मिल सकती है। दुनिया में दूसरी तरह का जो प्लास्टिक कचरा जैसे इलेक्ट्रानिक कबाड़ और दूसरे सामान हैं, वे और बड़ा संकट हैं। मुक्ति उनसे भी पानी है। लेकिन एक बड़ा संकट यह है कि जो उत्पादन इकाइयां एकल प्लास्टिक सामान बना रही हैं, इस पाबंदी के बाद तो वे बंद होने के कगार पर आ जाएंगी। लाखों लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। इनकी समस्या का समाधान निकाले बिना यह मुहिम कैसे कामयाब होगी?


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