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- जुबान पर जंजीरें
तवलीन सिंह: मोहम्मद जुबैर की कहानी पर मैंने कड़ी नजर रखी हुई है, जबसे उसकी गिरफ्तारी की गई एक पुराने ट्वीट के बहाने। पिछले सप्ताह उसको रिहा किया गया सर्वोच्च अदालत के आदेश पर, लेकिन जो नुकसान उसको पहुंचाया गया है, उसकी रिहाई से समाप्त नहीं होने वाला।
इसलिए कि उसकी गिरफ्तारी के बाद जब उसको उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालतों के चक्कर काटने पर मजबूर किया रोज कोई नया आरोप लगा कर, उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई मोदी भक्तों और भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों ने, जिनका मकसद था उसको इतना बदनाम कर देना ताकि वह जेल न जाकर भी बेकार हो जाए।
भाजपा के आइटी सेल ने सोशल मीडिया पर एक ऐसी सेना तैयार की है, जो एक इशारे पर मैदान में उतर आती है हिंदुत्व या मोदी के किसी तथाकथित दुश्मन पर हमला करने। सो, जब जुबैर जेल में था, उसके बारे में इस ट्रोल सेना ने क्या कुछ नहीं कहा। साबित करने की कोशिश की इस प्रभावशाली सेना ने कि न सिर्फ यह पत्रकार नहीं है, बल्कि भारत के किसी दुश्मन देश का एजंट है और उसके ट्वीट करने का मकसद एक ही है और वह है भारत को कलंकित करना दुनिया की नजरों में।
मैंने जब ट्वीट करके कहा कि उसकी गिरफ्तारी गलत थी, और किसी भी लोकतांत्रिक देश में होनी नहीं चाहिए थी, तो मुझे सावधान किया कई बार इस ट्रोल सेना के सदस्यों ने कि मुझे समझदारी से ट्वीट करना चाहिए।
क्या जरूरत है मुझे उसके साथ हमदर्दी दिखाने की, जब उसके परिवार ने उसका साथ नहीं दिया है? क्या मैं जानती नहीं हूं कि यह ऐसा व्यक्ति है, जिसके बारे में सारा कुछ छिपा रहा है? क्या जानती नहीं हूं कि इसके हर ट्वीट के पीछे एक ही इरादा है और वह है भारत में अशांति फैलाना? ट्विटर पर मुझे इस तरह के ट्वीट जब मिलने लगे तो मुझे दिखने लगा कि यह सब कुछ हो रहा है एक सोची-समझी रणनीति के तहत, जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बहुत बार काम में लाई गई है।
जब भी कोई मोदी सरकार की नीतियों या हिंदुत्व का विरोध करता है, तो उसको गिरफ्तार करने या उसके घर छापे डलवाने के अलावा एक और हथियार का प्रयोग किया जा रहा है और वह है उसकी बदनामी। इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं भाजपा के प्रवक्ता, कुछ संघ परिवार के सदस्य, कुछ पत्रकार और जरूरत पड़े तो मंत्रियों को भी इसमें शामिल किया जाता है।
मिसालों की सूची लंबी है, लेकिन यहां एक दो उदाहरण काफी हैं। जब मोदी भक्तों ने मुहिम चलाई थी रिया चक्रवर्ती के खिलाफ तो उसकी गिरफ्तारी से पहले साबित करने के लिए सोशल मीडिया पर फैलाया गया कि उसने सुशांत सिंह को मरवाया था उसके पैसे चोरी करने के लिए।
शाहरुख खान के बेटे आर्यन की जब गिरफ्तारी हुई थी तो साबित करने की कोशिश की गई कि वह अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स माफिया से संपर्क रखता है। और तो और, जब कोविड आया तो खूब कोशिश हुई साबित करने की कि इसके पीछे वे विदेशी मौलवी थे, जो दिल्ली स्थित तबलीगी जमात के सम्मेलन में आए थे।
औरों की क्या बात करूं, जब मैं खुद मोदी भक्तों के इस नए हथियार का शिकार हुई हूं। जब मेरे बेटे ने टाइम मैगजीन में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था 'डिवाइडर इन चीफ', 2019 के चुनावों से पहले, तो भारतीय जनता पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने ट्वीट किया कि वह 'आइएसआइ का पेड एजंट' है, यानी पाकिस्तान का जासूस। अब अगर यह इल्जाम मेरे बेटे पर लगता है तो मुझ पर भी लगता है। उस लेख के छपने के बाद जो मेरे खिलाफ मुहिम चली सोशल मीडिया पर कि क्या बताऊं।
मेरे बारे में कहा गया बहुत बार कि मैं असल में भारतीय नहीं, पाकिस्तानी हूं। जब एक ट्रोल ने ट्वीट करके मेरी देशभक्ति पर शक किया घटिया मजाक और गुमनाम ढंग से पर्दे के पीछे छिप कर, तो मुझे किसी दोस्त ने सलाह दी कि ऐसे लोगों को चुप कराने का एक ही तरीका है और वह है मानहानि का मुकदमा।
मैंने ऐसा करने की कोशिश भी की, लेकिन जब मालूम पड़ा कि वकील साहब की एक पेशी के लिए डेढ़ लाख रुपए लगेंगे, मुझे पता लगा कि अदालत के दरवाजे खटकाने की क्षमता मुझमें नहीं है। सोचिए, उनकी क्षमता कहां से होगी, जो छोटी-मोटी वेबसाइट चलाते हैं या जुबैर की तरह ट्विटर पर झूठी खबरों का पर्दाफाश करने का प्रयास करते हैं? लेकिन भाजपा प्रवक्ताओं की आजकल इतनी अकड़ है कि जब भी कोई कहता है कि किसी के साथ अन्याय हुआ है, तो ऊंचे स्वर में कहते फिरते हैं कि किसी को ऐसी शिकायत है तो क्यों नहीं जाते हैं अदालत के दरवाजे, अपनी दलील लेकर।
इस तरह की रणनीति का मकसद साफ है: मोदी के आलोचकों को किसी न किसी तरह चुप कराना, ताकि प्रधानमंत्री की छवि पर जरा-सा भी आंच न आए। नतीजा अक्सर उल्टा होता है और बदनाम होते हैं प्रधानमंत्री।
लेकिन नुकसान उनका भी होता है जो उनके समर्थकों के शिकार बनते हैं। जुबैर शायद फिर से काम करने लगेगा फेक न्यूज की असलियत सामने लाने के लिए, लेकिन क्या इस बार उसमें हिम्मत होगी उन साधु-संतों के नफरत भरे भाषणों का पर्दाफाश करने की?
क्या नूपुर शर्मा जैसे लोगों की भद्दी बयानबाजी को सामने लाने की हिम्मत होगी? क्या उस पर विश्वास करेंगे लोग? कहने का मतलब साफ है मेरा। मोदीभक्तों के पास एक अति-शक्तिशाली हथियार है इन दिनों और वह है किसी की इतनी बदनामी करना कि वे आलोचना करने के बदले अपना मुंह बंद रखना सीख जाएं।