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- हादसों की कड़ियां
Written by जनसत्ता: कुछ दिनों पहले जबलपुर के एक अस्पताल में आग लगने की हृदयविदारक घटना में आठ लोगों की जान चली गई। मुख्य कारण जो भी हो, हादसे ने एक बार फिर अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए है। अस्पताल में आग की यह कोई पहली घटना नही है। इससे पहले भी इस तरह की आग से पता नहीं कितने लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।
ताजा घटना से एक बार फिर यही साबित होता है कि अब तक के अग्निकांडों से कोई सबक नहीं लिया गया और आग से बचाव के लिए जो जरूरी उपाय होने चाहिए, वे नहीं किए जा रहे। लोग अस्पतालों में जीवन मिलने की उम्मीद से जाते हैं, लेकिन अगर अस्पतालों में इस तरह मौत मिलने लगे तो इससे ज्यादा भयानक और दुखदायी क्या हो सकता है। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित हो, इस पर गंभीरता से विचार विमर्श होना चाहिए।
'बर्बादी के भंडार' (संपादकीय, 2 अगस्त) में खाद्यान्न की बर्बादी के संदर्भ में दी गई जानकारी चौंकाने वाली और गंभीर है। इसमें सटीक टिप्पणी की गई है कि सरकार कृषि उत्पादन को लेकर तो खासी उत्साहित नजर आती है, मगर फसलों की सुरक्षा और अनाज के सुरक्षित भंडारण के प्रति लापरवाही बरतती है। अफसोसजनक बात है कि जिस देश की संसद में 542 सांसद हों, देश भर में हजारों विधायक हों, कार्यपालिका में चतुर्थ श्रेणी से लेकर उच्च पदों पर कार्यरत अधिकारियों की भरमार हो, उस देश में सभी साधन तथा क्षमता होते हुए भी खाद्यान की भारी बर्बादी वर्षों से हो रही है।
प्रश्न उठना स्वभाविक है कि क्या इन जनप्रतिनिधियों का काम केवल एक दूसरे के निजी तथा राजनीतिक बयानों पर सदनों में हंगामे और सड़कों पर धरना-प्रदर्शन करना ही रह गया है। वह भी जरूरी और असली मुद्दों को भुला कर। जब कभी इन नेताओं के नाजायज कामों की पोल खुल जाती है तो शर्मिंदा होने के बजाय ये हंगामा करने लगते हैं। कितनी शर्मनाक बात है कि सदनों में केवल विपक्ष वाले ही नहीं, सत्ता पक्ष वाले भी बेहद उथली बर्ताव के साथ विचित्र हरकते करते हैं। जो हो, आरटीआइ के जरिए प्राप्त हुई इस जानकारी के सार्वजनिक हो जाने के बाद कृषि मंत्रालय को अनाज की बर्बादी रोकने के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने चाहिए।