सम्पादकीय

'मोदी महल' नहीं सेंट्रल विस्टा

Gulabi
18 Sep 2021 4:22 AM GMT
मोदी महल नहीं सेंट्रल विस्टा
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सेंट्रल विस्टा

दिव्याहिमाचल.

क्या यह अपमानजनक नहीं है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी, कर्मचारी और जांबाज सैनिक आज तक घोड़ों के लिए बनाए गए अस्थायी ढांचों में लगातार काम करते रहे हैं? यह सिलसिला द्वितीय विश्व युद्ध से शुरू हुआ था, जब भारत गुलाम देश था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी यही व्यवस्था क्यों बनी रही? अस्तबल और बैरकों के लिए जो अस्थायी ढांचे तैयार किए गए थे, उन्हीं में हमारा रक्षा मंत्रालय कार्यरत क्यों रहा? मजबूरी नहीं, लापरवाही और अनदेखी थी। उपनिवेशवाद की मानसिकता अब भी जि़ंदा थी, लिहाजा जब पुनर्विकास का फैसला लिया गया, तो उसका दुष्प्रचार शुरू हो गया। हालांकि रक्षा मंत्री और तीनों सेना प्रमुखों के सचिवालय अलग-अलग और बेहतर भवनों में स्थित रहे। उन्हें अब भी स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। यह मुद्दा खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक मंच से उठाया है, जो न जाने कितने व्यापक स्तरों पर ध्वनित हुआ होगा! दूसरा मुद्दा संसद भवन का है। जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी, तब 2012 में तत्कालीन स्पीकर मीरा कुमार ने नए संसद भवन का प्रस्ताव रखा था। उस पर सभी पक्षों की सहमति थी। सबसे अहम कारण बताया गया था कि प्राचीन संसद भवन भूकम्प सरीखी आपदाओं के मद्देनजर सुरक्षित नहीं है। वह भीतर से जर्जर भी होने लगा था। सांसदों की संख्या बढ़ेगी, तो वे कहां बैठेंगे? प्रस्तावित और निर्माणाधीन संसद भवन में एक साथ 1272 सांसद बैठ सकेंगे और राष्ट्रपति संयुक्त सत्र को संबोधित कर सकेंगे। नए भवन में कई और सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है।
संसद भवन के ही करीब राजपथ है, जहां हर 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय अवसर पर, सैनिक परेड करते हैं और सांस्कृतिक झांकियों को प्रदर्शित किया जाता है। वे दृश्य हमारी विविधता में एकता को साकार करते हैं। केंद्रीय सचिवालय, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और विदेशी, अति विशिष्ट सम्मेलनों के सभागार के लिए भी भवनों के पुनर्विकास की जरूरत थी, लिहाजा उनकी परियोजना बनाकर काम शुरू किया गया। रक्षा मंत्रालय के जिन दो परिसरों का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया है, उनमें 7000 से अधिक कर्मचारी काम कर सकेंगे, वहां रक्षा मंत्रालय के दफ्तर आरंभ भी हो गए हैं। अस्थायी अस्तबल ढांचों से मुक्ति मिलनी शुरू हो चुकी है। कमोबेश ऐसी शुरुआत से ही साबित होता है कि सेंट्रल विस्टा के मायने 'मोदी महल' नहीं हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां राजशाही की कोई गुंज़ाइश नहीं है कि किसी शासक का महल बनाया जा सके। प्रधानमंत्री आवास निर्वाचित प्रधानमंत्री का अधिकृत निवास स्थान होता है। उसी परिसर में प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह, अटलबिहारी वाजपेयी, आईके गुजराल, देवगौड़ा और उनसे काफी पहले राजीव गांधी तक रहे हैं। गांधी परिवार को तो अच्छी तरह एहसास होगा।
फिर 'मोदी महल' कैसे संभव है? यदि सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत नया प्रधानमंत्री आवास भी बनना है, तो उसे 'मोदी महल' करार क्यों दिया जा रहा है? आवास प्रधानमंत्री मोदी की पैतृक संपत्ति नहीं है और न ही वह हमेशा के लिए प्रधानमंत्री चुने गए हैं, लिहाजा कांग्रेस को ऐसे झूठे, छद्म दुष्प्रचार से बचना चाहिए। इन जुमलों पर वोट नहीं मिला करते। अंततः पार्टी देश और उसकी व्यवस्था का ही अपमान कर रही है। कांग्रेस ने विस्टा के बजट के आंकड़े भी फर्जी पेश किए हैं। रक्षा परिसरों पर करीब 775 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक पूरी परियोजना के लिए 20,000 करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है। यह किस्तों में, साल-दर-साल खर्च किया जाना है। देश में कोरोना महामारी का प्रकोप रहा है। टीके की करीब 76 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। यकीनन बेरोज़गारी भी बढ़ी है। अर्थव्यवस्था ने कुछ उबरना शुरू किया है। महंगाई कमरतोड़ है। कई औद्योगिक क्षेत्रों को पूंजीगत सहायता भी देनी है, ताकि उत्पादन पटरी पर लौट सके, लेकिन देश के बुनियादी ढांचे के तहत राजमार्गों, एक्सप्रेस-वे, सड़कों आदि का निर्माण भी अनिवार्य है। किसी भी क्षेत्र की निरंतरता को कोरोना की वजह से रोका नहीं जा सकता, लिहाजा सेंट्रल विस्टा भी अपरिहार्य है। कुछ गलत हो रहा है, तो विपक्ष उसका खुलासा करे, लेकिन दुष्प्रचार से क्या हासिल होगा? अदालतें भी विपक्ष और खासकर कांग्रेस को लताड़ लगा चुकी हैं और विस्टा को हरी झंडी दी जा चुकी है।
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