सम्पादकीय

केंद्र ने नौकरशाही को दिया सख्त संदेश

Rani Sahu
7 Oct 2023 2:27 PM GMT
केंद्र ने नौकरशाही को दिया सख्त संदेश
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केंद्र की मोदी सरकार ने 1994 बैच की अरुणाचल प्रदेश सरकार में सेवारत आईएएस अधिकारी रिंकू दुग्गा को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया। पिछले साल मई में रिंकू दुग्गा और उनके पति संजीव खिरवार का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो कुत्ता घुमाते हुए नजर आ रहे थे। स्टेडियम में एथलीटों और कोचों को उस दिन अपना अभ्यास सत्र जल्दी खत्म करने और जगह खाली करने के लिए कहा गया था ताकि आईएएस दंपती अपने कुत्ते को घुमा सकें। केंद्र सरकार ने रिंकू दुग्गा को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर नौकरशाहों को संदेश दे दिया है कि जनता जनार्दन देश में सर्वोच्च है। इस मामले में किसी भी तरह की कोताही, लापरवाही और भ्रष्टाचार केंद्र सरकार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। कुत्ता टहलाने और एथलीटों को बाहर किए जाने के मामले में केंद्र सरकार ने रिंकू दुग्गा और उनके पति संजीव खिरवार के खिलाफ जांच कराई थी। इस रिपोर्ट से एथलीटों और जनता में भारी आक्रोश फैल गया था। इसके बाद दिल्ली सरकार में प्रमुख सचिव (राजस्व) के रूप में काम करने वाले संजीव खिरवार को लद्दाख में स्थानांतरित कर दिया गया था।
वहीं दुग्गा को अरुणाचल प्रदेश में स्वदेशी मामलों के प्रमुख सचिव के रूप में तैनात किया गया था। इससे पहले भी केंद्र की भाजपा सरकार ने देशभर के सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को एक सख्त चेतावनी जारी की थी। कर्मचारियों को काम को लेकर सतर्क रहने और लापरवाही नहीं बरतने के आदेश दिए गए हैं। अगर ऐसा होता है तो रिटायरमेंट के बाद पेंशन व ग्रेच्युटी रोकने के निर्देश दिए गए। इस आदेश पर राज्य सरकारों से अपने स्तर पर फैसला लेने को कहा गया था। केंद्र में करीब दस साल पहले सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने सरकारी दफ्तरों में पसरी लापरवाही, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भरी थी। केंद्र में सत्ता संभालने के साथ ही सरकार को पता चला था कि दिल्ली में आईएएस और कुछ अन्य अधिकारी कार्यालय के समय में गोल्फ खेलने चले जाते हैं। इस पर सरकार एक्शन में आ गई। सभी अधिकारियों को आगाह किया गया कि कार्यालय समय के दौरान कोई भी अधिकारी-कर्मचारी निजी कार्य से नहीं जा सकता। आईएएस अधिकारियों को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि उनकी लगाम थामने वाला भी कोई हो सकता है। दरअसल पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों ने नौकरशाही को मनमर्जी करने की छूट दे रखी थी।
यही वजह रही कि अधिकारियों में हर तरह का दुस्साहस पैदा हो गया। अधिकारी नौकरी को निजी मिल्कियत समझ कर आम लोगों से अंग्रेजी शासन की तरह व्यवहार करने लगे। दूसरे शब्दों में कहें तो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मंत्री-नेताओं की शह पाकर नौकरशाही आम अवाम की सिरमौर बन बैठी। केंद्र में सरकार के पलटते ही नौकरशाहों की हरकतों पर गहरी नजर रखी गई। मौजूदा केंद्र सरकार ने साफ संदेश दे दिया कि आम लोगों की कीमत पर कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने कठोर कार्रवाई करते हुए ग्रुप-ए और बी स्तर के कुल 312 अफसरों को जबरन रिटायर कर दिया। सरकार ने ग्रुप-ए के 36000 कर्मचारियों और ग्रुप-बी के 82000 कर्मचारियों के काम का रिव्यू किया। इनमें से 312 अफसर नकारा मिले। इनमें ग्रुप-ए के 125 अफसर और ग्रुप-बी के 187 अफसर शामिल हैं। विभागीय स्तर पर कर्मचारी-अधिकारियों के कामकाज की समीक्षा के साथ केंद्र सरकार ने भ्रष्ट और नाकारा अफसरों को भी सबक सिखाने की ठान ली। सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को पूरी तरह से ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की छूट दी। केंद्र सरकार के कदम से कदम मिला कर सीबीआई ने अफसरों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। सीबीआई ने 44 आईएएस और 12 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किए। पिछले छह साल में 3464 शिकायतें आईएएस अधिकारियों के खिलाफ वित्तीय और आपराधिक मामलों के तहत प्राप्त हुई हैं। अहम बात यह है कि शिकायतों के मामले हर साल बढ़ते गए हैं। मसलन जहां 2015-2016 में 380 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई, वह 2019-20 में करीब दोगुनी होकर 753 तक पहुंच गई। कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा 10 मार्च 2021 को लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 से फरवरी 2021 तक आईएएस अधिकारियों के खिलाफ वित्तीय और आपराधिक मामलों के तहत कुल 3464 शिकायतें प्राप्त हुईं। सीबीआई के अनुसार इस अवधि में 44 आईएएस और 12 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं, जबकि इस अविध में 43 आईएएस और 17 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार ने कार्रवाई की है। प्रतिष्ठित भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) से 27 वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त करने के कुछ दिनों बाद सरकार ने सभी मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) से समय से पहले सेवानिवृत्ति के लिए हर महीने अधिकारियों के नामों की सिफारिश करने को कहा।
केंद्र सरकार के 104 कर्मचारियों पर साल 2021-22 में कार्रवाई की गई। इनमें ग्रुप-ए के सबसे अधिक 45 कर्मचारी हैं। केंद्र सरकार के लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला जारी रहा। ये कार्रवाई प्रदर्शन, हाजिरी और अनुशासनात्मक मामलों को लेकर की गई। सरकार ने मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की और उन्हें रिटायर कर दिया। यह कार्रवाई फंडामेंटल रूल्स (एफ आर) 56 (जे), (आई), सेंट्रल सिविल सर्विसेज (सीसीएस) पेंशन रूल्स 1972 और आल इंडिया सर्विसेज के संशोधित रूल 16 (3) को ध्यान में रखकर की गई है। इसके तहत सरकार को अधिकार है कि वह किसी भी अफसर के काम का कुछ अंतराल पर रिव्यू कर सकती है और उन्हें प्रीमैच्योर रिटारमेंट दे सकती है। 7 अक्टूबर 2022 को इन नियमों में बदलाव किया गया है। सक्षम अधिकारियों को दोषी पाए जाने पर कर्मचारियों की पेंशन अथवा ग्रेच्युटी या फिर दोनों आंशिक या फिर पूर्ण रूप से रोकने का अधिकार शामिल किया गया। नौकरी के दौरान अगर इन कर्मचारियों के खिलाफ कोई विभागीय या न्यायिक कार्रवाई हुई तो इसकी जानकारी संबंधित अधिकारियों को देना अनिवार्य किया गया। अगर कोई कर्मचारी रिटायर होने के बाद फिर से नियुक्त हुआ है तो उस पर यही नियम लागू होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर जमकर हमला बोला था। उन्होंने देश की जनता से इन दो कुरीतियों को खत्म करने में मदद की अपील की।
पीएम ने कहा कि इन कुरीतियों को नहीं रोका गया तो यह विकराल रूप ले सकता है। पीएम मोदी ने कहा था कि दुर्भाग्य से राजनीतिक क्षेत्र की इस बुराई ने देश की हर संस्था को पोषित कर दिया। मोदी ने लाल किले के प्राचीर से कहा था, भारत जैसे लोकतंत्र में जहां लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है, एक तरफ वो लोग हैं जिनको चोरी का माल रखने की जगह नहीं है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लडऩा है। केंद्र सरकार की इस कार्रवाई के साथ ही उत्तराखंड और मध्यप्रदेश की राज्य सरकारों ने भी अपने शासन के नकारा अफसरों पर कार्रवाई की। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने कड़े कदम उठाते 600 अधिकारियों पर कार्रवाई की। इनमें 200 अधिकारी ऐसे हैं जिन्हें जबरन रिटायरमेंट दे दिया गया। सर्वाधिक आश्चर्य तो यह है कि सरकार के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के खिलाफ राज्यों में गैर भाजपा सरकारों ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जिससे अधिकारियों-कर्मचारियों में भय व्याप्त हो सके। विपक्षी दल बेशक केंद्र पर बदले की कार्रवाई से ईडी और सीबीआई की कार्रवाई का आरोप लगाते रहें, किन्तु गैर भाजपा शासित राज्यों में सरकारी तंत्र को सुधारने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया गया।
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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