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- युद्ध विराम और...
भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम के ऐलान से साफ है कि भारत के पड़ोसी देश को एहसास हो गया है कि लगातार रंजिश की बुनियाद पर किसी मुल्क को कायम रखने की कोशिशें अन्ततः उसे ही खोखला बना देती हैं जिसका नतीजा पूरी कौम को भुगतना पड़ता है। भारत की शुरू से ही यह कोशिश रही है कि उसकी ही जमीन पर 1947 में तामीर किये गये पाकिस्तान के साथ उसके सम्बन्ध मधुर और दोस्ताना रहें मगर इस मुल्क के हुक्मरान अपनी फितरत से बाज नहीं आये और हर शान्ति के प्रयास के बाद उन्होंने भारत की पीठ में छुरा घोंपा। पिछला 73 साल का इतिहास इसी हकीकत की गवाही चीख-चीख कर दे रहा है जिसे बार-बार लिखने की जरूरत नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान वास्तव में सीमा पर गोलीबारी बन्द रखने का ख्वाहिशमन्द है? अगर ऐसा है तो सबसे पहले उसे अपनी फौजों को हुक्म देना होगा कि वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने से बाज आयें। बेशक यह प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का जलाल और हिन्दोस्तान के फौजियों की जांबाजी है जो पाकिस्तानी फौजों को अपनी हदों में रहने की ताकीद कर कर रहे हैं क्योंकि इसने देख लिया है कि विश्व के विभिन्न मंचों पर भारत की साख किस कदर मजबूत है। यह प्रधानमन्त्री मोदी ही थे जो औहदा संभालने के बाद बिना किसी औपचारिक निमन्त्रण के पाकिस्तान की यात्रा पर सिर्फ इसलिए गये थे कि पाकिस्तान रंजिश की नीयत को छोड़ कर मित्रता के भाव से काम कर सके। मगर पाकिस्तान के समझने में भारी भूल हो गई और वह यह फलसफा नहीं समझ सका कि जो पेड़ फलों से लदा होता है वही झुकता है। मगर तब इसकी अक्ल ठिकाने आ गई जब 2019 में भारत के वीर रणबांकुरों ने इसके घर में घुस कर ही पुलवामा के कायराना हमले का बदला लिया। तब इस्लामाबाद मे बैठे इसके हुक्मरानों को इल्म हुआ कि फलदार वृक्ष क्यों झुकता है?