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लिहाजा यह उस हेलीकॉप्टर की क्षमता पर सवाल उठाने का सही समय नहीं है।
जो भी आदमी सेना की वर्दी पहनता है, वह जानता है कि उसके साथ कभी भी अनहोनी हो सकती है। देश के पहले रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत भी यह बात बखूबी जानते रहे होंगे। वह बेहद काबिल आदमी और जांबाज योद्धा थे। साथ ही, वह बहुत किस्मत वाले भी थे। उन्हें गोली लग चुकी थी। नगालैंड में हुए एक हादसे में वह बाल-बाल बच गए थे। लेकिन विगत आठ दिसंबर को, जब वह एक कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे थे, तकदीर ने उनका साथ नहीं दिया।
उनका हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वह हमसे बिछड़ गए। उनके साथ-साथ उनकी पत्नी तथा दूसरे लोग भी काल के गाल में समा गए और सिर्फ ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह अस्पताल में बेहद बहादुरी से जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। जनरल बिपिन रावत के बारे में यह याद रखना चाहिए कि अपनी बहादुरी और काबिलियत के कारण ही उन्हें थल सेनाध्यक्ष, और फिर देश का पहला रक्षा प्रमुख बनाया गया।
वर्ष 1971 में यानी बांग्लादेश युद्ध के दौरान ही देश में सीडीएस या रक्षा प्रमुख की चर्चा शुरू हो गई थी, जो सेना के तीनों अंग का प्रधान होता है। रक्षा प्रमुख के होने से युद्ध जैसी स्थिति में सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होने का फायदा होता है। वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जनरल सैम माणेकशॉ को, जो तब थल सेनाध्यक्ष थे, रक्षा प्रमुख बनाना चाहती थीं।
लेकिन तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष ने उस प्रस्ताव पर रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि माणेकशॉ से उनके अच्छे रिश्ते नहीं थे। करगिल युद्ध के बाद तैयार की गई रिपोर्ट में एक बार फिर रक्षा प्रमुख की जरूरत बताई गई, क्योंकि उस युद्ध में थलसेना और वायुसेना के बीच तालमेल की कमी सामने आई थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस संभावना पर पानी फेर दिया।
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्हें रक्षा प्रमुख का महत्व समझ में आया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल भी रक्षा प्रमुख के पक्ष में थे। विचार-विमर्श के बाद इस महत्वपूर्ण पद के लिए बिपिन रावत का नाम सामने आया। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि थल सेनाध्यक्ष के रूप में बिपिन रावत का कामकाज सरकार को बहुत पसंद आया था। वह सेना के आधुनिकीकरण के हामी थे।
रक्षा प्रमुख के तौर पर उन्होंने अनेक काम किए, लेकिन उनकी सबसे महत्वाकांक्षी योजना इंटीग्रेटेड थियेटर कमांड के गठन की थी। इसके तहत वह अलग-अलग सत्रह कमांड को एक एकीकृत बल (यूनिफाइड फोर्स) में लाने की योजना बना रहे थे, जो दुर्योग से अधूरी रह गई। उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले दिनों में यह काम जरूर पूरा होगा।
जनरल रावत ने अपने लंबे सैन्य जीवन में एक जांबाज सैनिक और अचूक रणनीतिकार की अपनी छवि बनाई थी। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद-विरोधी लड़ाई में योगदान के कारण उन्हें पुरस्कार मिला था। पूर्वोत्तर में उग्रवाद-विरोधी अभियानों में उनकी सक्रियता भी उतनी ही देखने लायक थी। इस संदर्भ में खासकर 2015 में नगा उग्रवादियों को करारा जवाब देने के लिए म्यांमार स्थित उनके शिविरों को निशाना बनाने की घटना याद की जा सकती है, जिसे औपचारिक तौर पर पहली सर्जिकल स्ट्राइक माना जाता है। उरी में हुए हमले के बाद उनकी सक्रियता देखने लायक थी।
वह युद्धभूमि में एक सख्त सैनिक थे, तो रात-रात भर जागकर सैन्य व्यूह रचना करने वाले अनूठे योजनाकार भी थे। पुलवामा हमले के जवाब में की गई सर्जिकल स्ट्राइक दुनिया ने देखी। जनरल रावत, जाहिर है, उस जवाबी हमले के योजनाकारों में से थे। शीर्ष सेनाधिकारी के तौर पर जनरल बिपिन रावत ने अपनी गहरी छाप छोड़ी। उनके समय में पाकिस्तान और चीन, दोनों के खिलाफ सख्ती हमारी सेना के हौसले और मनोबल के बारे में ही बताती थी।
भारतीय सेना ने युद्ध के मैदान में हमेशा ही शौर्य का परिचय दिया है। आज का भारत एक साथ दो मोर्चों पर बढ़े हुए मनोबल के साथ लड़ सकता है। जनरल रावत ने इसके अलावा कई बार अपने फैसलों, विचारों और टिप्पणियों से भी भारतीय सेना की बनी-बनाई छवि तोड़ी। चाहे वह कश्मीर के बड़गाम में पत्थरबाजों से बचाव के लिए एक आम नागरिक को सेना की जीप के बोनट पर बांधकर घुमाने वाले मेजर गोगोई को दिया गया पुरस्कार हो या फिर सीएए के खिलाफ आंदोलन करने वालों की आलोचना या फिर सरकार की नीतियों का समर्थन।
इन सबके जरिये जनरल रावत ने यह संदेश दिया कि देश के जिन मुद्दों से सेना का सीधे जुड़ाव है, उन पर सेनाधिकारियों को टिप्पणी करने का अधिकार है। हां, जिन मुद्दों से सेना का कोई लेना-देना नहीं, उन पर जरूर टिप्पणी करने से उसे बचना चाहिए। लेकिन इस सोच का समर्थन नहीं किया जा सकता कि सेना को राजनीति से दूर ही रहना चाहिए।
चूंकि रक्षा प्रमुख जनरल रावत, उनकी पत्नी और दूसरे सैन्य सहयोगियों को ले जा रहा हेलीकॉप्टर एमआई-17, वी5 के दुर्घटनाग्रस्त होने से यह हादसा हुआ, ऐसे में इस हेलीकॉप्टर पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि जांच में सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। इसलिए जल्दबाजी में इस हेलीकॉप्टर की क्षमता पर सवाल उठाना सही नहीं है, क्योंकि इसे सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टर माना जाता है।
फिर यह भी नहीं भूल सकते कि इस तरह के हादसे इससे पहले भी हुए हैं। अव्वल तो जैसा कि बताया गया है, धुंध के कारण दृश्यता बहुत कम थी। तिस पर हेलीकॉप्टर की लैंडिंग के वक्त इस तरह की समस्या आ जाती है। लिहाजा यह उस हेलीकॉप्टर की क्षमता पर सवाल उठाने का सही समय नहीं है।
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