सम्पादकीय

CBSE Class 12 Board Exams 2021: परीक्षा का सार्थक विकल्प शिक्षा को उसकी अनेक बाधाओं से करेगा मुक्त

Gulabi
4 Jun 2021 8:48 AM GMT
CBSE Class 12 Board Exams 2021: परीक्षा का सार्थक विकल्प शिक्षा को उसकी अनेक बाधाओं से करेगा मुक्त
x
इस प्रणाली में परीक्षा की ही सबसे अधिक महत्ता है

गिरीश्वर मिश्र। CBSE Class 12 Board Exams 2021 कोरोना वायरस की उलटी-सीधी चाल के चलते लंबी खींची कोविड महामारी के बीच हो रही उठापटक में चाहे-अनचाहे देश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक जीवन की अब तक की स्वीकृत सामान्य व्यवस्थाओं में बहुत सारे बदलाव करने पड़ रहे हैं। इसके फलस्वरूप अब हर किसी को नए सिरे से अपने को व्यवस्थित करना जरूरी होता जा रहा है। हमारे विकल्प सीमित-संकुचित होते जा रहे हैं और हमें नई शर्तों के साथ जीने का अभ्यास करना पड़ रहा है। कोरोना के दौर में मजबूरी में ही सही, हमें स्वदेशी, स्वावलंबन, संतोष और संयम जैसे पुराने पड़ रहे शब्दों का अर्थ फिर से समझना पड़ रहा है।

चूंकि कोविड महामारी आने के पहले की अवस्था में शिक्षा संस्थाएं चल रही थीं, पढाई-लिखाई के नाम पर प्रवेश और परीक्षा का कार्यक्रम विधिवत संपादित हो रहा था। विद्यार्थी, अध्यापक और पालक सभी प्रचलित व्यवस्था का आदर करते हुए उस पर अपना भरोसा बनाए हुए थे। लोग औपचारिक व्यवस्था की कमियों की पूर्ति के लिए ट्यूशन और र्कोंचग पर अतिरिक्त खर्च भी करने को तैयार थे। यह सब इस तथ्य के बावजूद हो रहा था कि सबको पता था कि पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या, मूल्यांकन और अध्यापक प्रशिक्षण आदि की कमजोरियां शिक्षा के आयोजन को अंदर से लगातार खोखला कर रही थीं। इस प्रणाली में परीक्षा की ही सबसे अधिक महत्ता है।
साल भर क्या पढ़ा-लिखा गया, इससे किसी को उतना मतलब नहीं होता जितना कि सालाना परीक्षा में कितने अंक या श्रेणी मिलती है? इसलिए सही-गलत किसी भी तरह परीक्षा में दांव लगाना ही सबका लक्ष्य होता गया। यह इसलिए भी कि परीक्षा के अंक ही इस क्षणभंगुर जीवन में नित्य होते हैं। इनका ठप्पा अकाट्य होता है और विभिन्न अवसरों के लिए आर-पार तय करने वाला होता है। कहना न होगा कि परीक्षा की प्रामाणिकता को लेकर उच्च शिक्षा के शिखर तक संशय फैल चुका है। इस व्यवस्था से निकल रहे अधिकांश छात्र-छात्राओं की दक्षता, कौशल और योग्यता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बेरोजगार युवा वर्ग की बढ़ती संख्या स्वयं बहुत कुछ कहती है। इन खामियों से उबरने के लिए सरकार शिक्षा-नीति में बदलाव लाने की मुहिम पिछले पांच-छह वर्ष से चलती रही है और अब उसका खाका सार्वजनिक हो चुका है। जैसी सूचना है, उस खाके को मूर्त रूप देने का काम भी तेजी से चल रहा है, यद्यपि उसकी स्पष्ट रूपरेखा उपलब्ध नहीं है।
कोरोना महामारी ने शिक्षा को आपातकाल में डाल दिया है। साल भर से अधिक हुआ विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय सभी भौतिक दृष्टि से प्रत्यक्ष शिक्षा देने की जगह दूरस्थ शिक्षा का आश्रय लेने को मजबूर हैं। जहां सुविधा और संसाधन हैं, वहां इंटरनेट द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ाने की कवायद और परीक्षा का कृत्य भी पूरा किया जा रहा है। विद्यार्थी और अध्यापक किसी को भी इसका अभ्यास न था। धीरे-धीरे जूम और ऐसे ही दूसरे प्लेटफार्म की सहायता से अध्यापन ने जोर पकड़ा, पर शिक्षा का व्यापक आशय मन, शरीर और आत्मा को स्वस्थ और स्वायत्त बनाना अब और दूर चला गया है। समता और समानता के लक्ष्य भी बिसराने लगे, क्योंकि बच्चे अच्छे मोबाइल और लैपटाप से लैस होना चाहते हैं, जो गरीब और निम्न मध्य वर्ग को सहजता से सुलभ नहीं हैं। इनकी आदत या व्यसन से पैदा होने वाले खतरे ऊपर से हैं। तथापि आज के हालात में हमारे पास इस अंधकार से उबरने का कोई और विकल्प भी नहीं है। कोरोना संक्रमण के भय से स्कूल कालेज को खोलना भी खतरे से खाली नहीं है। कोविड की तीसरी लहर का भी अंदेशा बना हुआ है, जिसका असर बच्चों और किशोरों पर अधिक होने के संकेत दिए जा रहे हैं।
लाखों अध्यापकों और करोड़ों विद्यार्थियों को लेकर चलने वाली देश की विराट शिक्षा व्यवस्था को स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रामाणिकता के साथ संचालित करना सचमुच एक बड़ी चुनौती है। इसलिए केंद्र सरकार ने सीबीएसई 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं को निरस्त करने का फैसला किया। कई प्रदेशों के परीक्षा बोर्ड भी केंद्र की राह पर चल रहे हैं। सामान्य वार्षिक परीक्षा, जिसमें एक स्थान पर एक निश्चित समय में निश्चित प्रश्नों का उत्तर देना होता है, अभी तक मानक मानी जाती रही है।विद्यार्थियों, पालकों और अध्यापकों की सुरक्षा, सेहत और तनाव के मद्देनजर इस व्यवस्था को नकारना चुनौती और अवसर, दोनों है। विवश होकर ही सही अब इस अर्थहीन परीक्षा का उचित विकल्प ढूंढना ही होगा। सीखने का मूल्यांकन जैसा कि अभी तक ज्यादातर होता आया है, हौआ बन गया है। मूल्यांकन सीखने से बाहर की चीज नहीं होनी चाहिए। वैसे भी मूल्यांकन से यह पता चलना चाहिए कि विद्यार्थी को क्या आता है? प्राप्तांक, ग्रेड और श्रेणी सिर्फ अप्रत्यक्ष रूप से ही यह बताते हैं कि तुलनात्मक दृष्टि से विद्यार्थी कहां खड़ा हुआ है, न कि कौशल की जानकारी देते हैं। परीक्षा में मिले अंकों से जीवन की वास्तविकताओं से टकराने और उनके समाधान के कौशल की कोई जानकारी नहीं मिलती है। वैसे भी साल भर या दो साल के शैक्षिक जीवन की यात्रा को दरकिनार रख तीन घंटे की परीक्षा में पांच-दस प्रश्नों के उत्तर से करियर का बनना-बिगड़ना श्रम की जगह भाग्य को ही महत्व देता है।
अब शिक्षाविदों को शैक्षिक योग्यता को दर्शाने वाले दूसरे मापकों की तलाश करनी होगी, जो न केवल अधिक साख वाले हों, बल्कि विद्यार्थियों की सृजनामक क्षमता, निर्णय की क्षमता और ज्ञान के उपयोग को दर्शाते हों। बौद्धिक योग्यता की प्रामाणिकता अपने परिवेश, समाज और प्रकृति के साथ रहने और अनुकूलन की व्यावहारिक उपलब्धि में ही प्रकट होती है। जो क्रियावान होता है, वही विद्वान होता है। इस दृष्टि से अब आभासी शिक्षण की दुनिया में रिमोट परीक्षा के एक सार्थक माडल को विकसित करना होगा, जिसमें स्मरण, समझ, विश्लेषण, सृजन और निर्णय आदि को सीखने के व्यापक परिवेश में स्थापित करना जरूरी होगा। इस दिशा में देश-विदेश की विभिन्न शिक्षा संस्थाओं में प्रयोग चल रहे हैं। छात्रों को अपनी क्षमता व्यक्त करने का समुचित अवसर देना परीक्षा के भूत से मुक्ति दिलाने में निश्चित रूप से सहायक होगा, जो मानसिक रुग्णता और पारिवारिक तनाव का एक बड़ा कारण बना रहता है। परीक्षा का सार्थक विकल्प शिक्षा को उसकी अनेक बाधाओं से मुक्त करेगा।
(लेखक पूर्व प्रोफेसर एवं पूर्व कुलपति हैं)
Next Story