- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सीबीआई की जांच
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सुप्रीम कोर्ट ने देश की प्रीमियर जांच एजेंसी सीबीआई से यह बताने को कहा है कि उसके द्वारा दर्ज किए गए मामलों में कितने अभी लंबित हैं, वे कितने समय से लंबित हैं और कितने फीसदी मामले अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचते हैं। शीर्ष अदालत ने यह निर्देश उस अपील की सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें एक मामले में सीबीआई द्वारा 542 दिनों की देरी की बात कही गई थी। कोर्ट ने ठीक ही कहा कि किसी भी मामले में सीबीआई का केस दर्ज करके जांच शुरू कर देना ही काफी नहीं होता। यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि मामला अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचे और दोषियों को वाजिब सजा मिले।
हालांकि अदालत में सीबीआई की नुमाइंदगी कर रहे अडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि भारत जैसे देश में मुकदमों का फैसला आना कई कारकों पर निर्भर करता है। इसलिए सक्सेस रेट को जांच एजेंसी के मूल्यांकन का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता। मगर अदालत का कहना था कि जो पूरी दुनिया के स्तर पर पैमाना माना जाता है, सीबीआई के मामले में उसे लागू न करने का कोई कारण नहीं। बहरहाल, सीबीआई के कामकाज पर यह शीर्ष अदालत की कोई पहली टिप्पणी नहीं है। इसी अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि कर्तव्यपालन में भारी लापरवाही के कारण कोर्ट में केस फाइल करने में असामान्य देर होती है।
सीबीआई के कामकाज में सरकार के बेजा दखल देने और इस जांच एजेंसी का राजनीतिक इस्तेमाल किए जाने की बात भी काफी पहले से कही जाती रही है। 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक चर्चित मामले में सीबीआई को पिंजरे का तोता बता दिया था। आशय यह था कि जांच एजेंसी अपने मन से कुछ नहीं करती, अपने मालिक यानी सरकार की बात दोहराती रहती है। तब से सीबीआई को स्वायत्त बनाने की बातें तो बहुत हुईं, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पिछले महीने भी सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों की जांच में देरी के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर केस में दम है तो आपको चार्जशीट फाइल करनी चाहिए, लेकिन अगर आपको कुछ नहीं मिलता है तो मामला खत्म होना चाहिए। बेवजह तलवार न लटकाए रखें।
साफ है कि ऐसे मामले जब तक लटके रहें संबंधित सांसदों, विधायकों पर एक अंकुश बना रहता है कि वे सरकार से पंगा न लें, उनके खिलाफ चल रहे मामलों में शिकंजा कसा जा सकता है। बहरहाल, टिप्पणियों और आलोचनाओं से ज्यादा जरूरी है सही हालात का पता चलना। तभी उनके कारणों पर विचार करके हालात को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्देश उस दिशा में एक ठोस कदम है। उम्मीद की जाए कि इससे न केवल सीबीआई के कामकाज का सही मूल्यांकन हो सकेगा बल्कि उसे बेहतर बनाने की भी राह खुलेगी।