सम्पादकीय

जातिगत जनगणना : विपक्ष के इस मास्टर प्लान के मुकाबले पीएम मोदी के पास क्या है दांव

Rani Sahu
26 Aug 2021 1:21 PM GMT
जातिगत जनगणना : विपक्ष के इस मास्टर प्लान के मुकाबले पीएम मोदी के पास क्या है दांव
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जातीय जनगणना (Caste Based Census) का मुद्दा अब देश की राजनीति में तेजी से उठाया जाने लगा है

संयम श्रीवास्तव। जातीय जनगणना (Caste Based Census) का मुद्दा अब देश की राजनीति में तेजी से उठाया जाने लगा है. हालांकि यह मुद्दा दशकों से देश की राजनीति में मौजूद है, लेकिन इतने जोर शोर से आज तक इस मुद्दे को नहीं उठाया गया. केंद्र में इस वक्त नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार है जो बीते कुछ वर्षों से ओबीसी केंद्रित राजनीति (OBC Politics) कर रही है. पहले जिस भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था, आज उसे गैर यादवों वाली ओबीसी केंद्रित पार्टी कहा जाने लगा है. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में नरेंद्र मोदी सरकार शायद जातीय जनगणना कराने की भी मंजूरी दे दे, या कुछ ऐसा कर दे जिसके चलते समाजवादी पार्टी (SP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसी पार्टियां की लगातार मांग की अपने-आप हवा निकल जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को भी लागू करके विपक्ष की मांग को भोथरा कर सकते हैं.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 राजनीतिक दलों के नेताओं से इस विषय पर मुलाकात भी की है. लेकिन इन मुलाकातों के बाद सरकार इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से क्या रुख अख्तियार करती है, इसके बारे में खुलकर फिलहाल केंद्र सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया है. भारतीय जनता पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जिस तरह की राजनीति देश में कर रही है उसे देखते हुए यह कह पाना बिल्कुल सटीक है कि वह गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अनुमानतः देश में लगभग 52 फ़ीसदी ओबीसी समुदाय की आबादी है. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां भी 40 से 50 फ़ीसदी ओबीसी समुदाय की आबादी है. यानि अगर आप ओबीसी वर्ग को अपने पाले में कर लेते हैं तो प्रदेश और देश की सत्ता आपसे कोई नहीं छीन सकता.
मोदी सरकार पहले ही ओबीसी के लिए ले चुकी है कई फैसले
मोदी सरकार के पिछले कुछ निर्णय बताते हैं कि वह ओबीसी वर्ग को लेकर कितनी ज्यादा सक्रिय हैं. चाहे मेडिकल की उच्च शिक्षा में पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को केंद्रीय कोटे से आरक्षण देने की व्यवस्था हो या फिर राज्यों को यह अधिकार देना कि वह जिस जाति को चाहे ओबीसी वर्ग में शामिल कर सकते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी के संगठन को या फिर प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल को देखें तो साफ पता चलता है कि इनमें भी ओबीसी वर्ग की आज कितनी भागीदारी है.
मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया था. सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में ओबीसी समुदाय के उप-वर्गीकरण के लिए एक आयोग का गठन किया गया है, ताकि कमजोर वर्गों तक आरक्षण की पहुंच बढ़ाई जा सके.
2019 में ओबीसी वर्ग 47 परसेंट मिला बीजेपी को
गैर यादव ओबीसी वर्ग अब धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी के पाले में आ चुका है. 2019 के चुनाव को देखें तो आईएएनएस-सी वोटर के मतदान पैटर्न के अध्ययन के अनुसार यह पता चलता है कि एनडीए को 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ओबीसी वर्ग का लगभग 47.1 फ़ीसदी वोट मिला था. वहीं 43.2 फ़ीसदी एसटी और 39.5 फ़ीसदी एससी समुदाय ने वोट दिया था. बीजेपी को मालूम है कि सवर्ण मतदाता उसे छोड़कर किसी और राजनीतिक पार्टी के पाले में फिलहाल जाते नहीं दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में अगर ओबीसी वर्ग का भी साथ मिल गया तो बीजेपी भारतीय राजनीति में अमरत्व को प्राप्त कर जाएगी.
2022 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव होना है और राज्य में गैर यादव ओबीसी वर्ग की आबादी लगभग 35 फ़ीसदी है. ज्यादातर ओबीसी केंद्रित राजनीतिक पार्टियां अपना दल से लेकर निषाद पार्टी तक इस वक्त भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन एनडीए का हिस्सा हैं. इसलिए यूपी में बीजेपी को गैर यादव ओबीसी वोट बैंक का पूरा साथ मिलने की उम्मीद है. 2014 के बाद जिस बीजेपी को नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने खड़ा किया वह पूरी तरह से अब ओबीसी केंद्रित हो चुकी है.
पीएम खुद ओबीसी और उनका मंत्रीमंडल और संगठन में भी बहुमत
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं. वहीं उनके मंत्रिमंडल में भी ज्यादातर मंत्री इसी वर्ग से आते हैं. उत्तर प्रदेश में भी चाहे प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह हो या फिर डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य दोनों ही ओबीसी वर्ग से आते हैं. यही वजह है कि बीजेपी देश और यूपी जैसे राज्यों में खुद को गैर यादव ओबीसी केंद्रित राजनीतिक पार्टी साबित करने में कहीं ना कहीं कामयाब हो चुकी है. और अब अगर बीजेपी ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर मुहर लगा दी तो उसे ओबीसी वर्ग का पूरा सहयोग 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलना तय है.
विपक्ष को अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की चिंता
बिहार में लालू प्रसाद यादव, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का यह मास्टर प्लान था कि वह जातीय जनगणना की बात कर भारतीय जनता पार्टी के हाथ से ओबीसी वर्ग का सपोर्ट खींच लेंगे. क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद है कि बीजेपी जिसकी राजनीतिक विचारधारा शुरू से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की रही है वह किसी भी कीमत पर जातीय जनगणना पर मुहर नहीं लगाएगी. यही वजह थी कि लालू प्रसाद यादव ने मुलायम सिंह यादव और शरद यादव से भी इस मामले को लेकर मुलाकात की थी. नीतीश कुमार को भी इसी मुद्दे ने आरजेडी के करीब लाया और वह तेजस्वी यादव के साथ प्रधानमंत्री मोदी से मिलने भी चले गए. इन राजनीतिक पार्टियों को पता है कि यह मुद्दा ओबीसी वर्ग के सेंटीमेंट से जुड़ा है. और विपक्ष इसका पूरा फायदा मोदी विरोध की राजनीतिक जमीन तैयार करने में करना चाहती थी.
लेकिन जिस तरह से बीजेपी के अंदर ही जातीय जनगणना कराने के समर्थन में आवाज उठने लगी है और नरेंद्र मोदी की रणनीति शुरू से ही जिस तरह से ओबीसी केंद्रित रही है उसे देख कर साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में बीजेपी जातीय जनगणना के मुद्दे पर अपनी मुहर लगा सकती है और अगर ऐसा हुआ तो विपक्ष का वह मास्टर प्लान फेल हो जाएगा जिसके सहारे वह 2024 में नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करने का सपना देख रही थी.
रोहिणी आयोग की सिफारिश लागूकर मोदी बन सकते हैं ओबीसी के हीरो
मोदी सरकार पहले ही ओबीसी जातियों के वर्गीकरण करने और उनके बीच आरक्षण के समुचित बंटवारे के लिए रोहिणी आयोग बनाया है. इस आयोग के निष्कर्ष सामाजिक रूप से विस्फोटक हो सकते हैं. 2017 से इस आयोग की अवधि को करीब 11 बार बढ़ाया गया है. इससे समझा जा सकता है कि मामला कितना गंभीर है. पर सरकार विपक्ष को गुगली खेलाने में माहिर है . हो सकता है चुनाव के पहले प्रधानमंत्री मोदी इस आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करके उसको लागू कर दें. जातिगत जनगणना की मांग करने वालों की डिमांड भी भोथरा हो जाएगी और ओबीसी आबादी के बीच जय-जय भी हो जाएगी.


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