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सम्पादकीय
Caste Census in Bihar : क्या कर्नाटक की तर्ज पर जातीय जनगणना करा सकते हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार?
Gulabi Jagat
17 May 2022 8:52 AM GMT
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ओपिनियन
पंकज कुमार |
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जातीय जनगणना (Caste Census) के पुरजोर समर्थक हैं और इस मुद्दे पर आरजेडी (RJD) भी लगातार दबाव बनाए हुए है. ऐसे में सभी दलों के साथ बैठक कर जल्द ही कार्रवाई करने की बात को नीतीश कुमार कैसे पूरा करेंगे इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. बीजेपी की यूपी में जीत के बाद राजनीतिक दलों में इस बात को लेकर चिंता है कि बीजेपी अब कमंडल ही नहीं बल्कि मंडल की राजनीति में भी सबसे आगे निकल चुकी है. केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी को मंत्री बनाकर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने दूसरे दलों के जनाधार पर जोरदार प्रहार किया है.
यही वजह है कि यूपी में लगातार बीजेपी की जोरदार जीत से जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियां हतप्रभ हैं. ज़ाहिर है जातीय जनगणना ही वो हथियार है जो बीजेपी की मंडल और कमंडल के मजबूत गठजोड़ को तोड़ सकती है. इसलिए इसकी मांग बिहार प्रदेश में जोरदार तरीके से उठ रही है. जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं कि कल्याण योजनाओं का लाभ पहुंचाने और योजनाओं की दशा दिशा नए तरीके से लागू करने के लिए जातीय जनगणना जरूरी है.
जातीय जनगणना के पीछे की राजनीति क्या है?
राजीव रंजन कहते हैं कि वंचित तबकों की पहचान जातीय जनगणना से हो पाएगी और इस मुद्दे पर आरजेडी और हमारी राय एक है. ज़ाहिर है स्वस्थ लोकतंत्र की दुहाई देकर नीतीश और तेजस्वी की मुलाकात को जेडीयू जातीय आधारित मुद्दे से परे देखने पर ऐतराज करती है, लेकिन बिहार की राजनीति समझने वाले लोग इसे बेहद गंभीरता से लेते हुए नए तरह की राजनीति की शुरूआत की झलक मानते हैं. दरअसल पिछले साल सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि केन्द्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराएगी. इसके बाद विपक्ष के शोर शराबे के बाद नीतीश कुमार ने 6 दिसंबर को जातीय जनगणना पूरा कराने का ऐलान कर दिया.
11 मई को सीएम और तेजस्वी की मुलाकात के बाद सीएम नीतीश कुमार ने जल्द ही जातीय जनगणना शुरू करने की बात कही और यहां तक कह दिया कि बुनियादी काम शुरू भी हो चुका है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार कर्नाटक की तर्ज पर जातीय जनगणना कराएंगे? आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि हमारी पार्टी अन्य प्रदेशों की तरह जातीय जनगणना कराने की मांग कर रही है जिसे सीएम नीतीश कुमार ने पूरा करने का वादा किया है. इसलिए विधानमंडल जिन मुद्दों पर सहमती जता चुकी है उसे जल्द पूरा किए जाने को लेकर हम कटिबद्ध हैं.
जातीय जनगणना की मांग तेजस्वी लगातार कर रहे हैं?
साल 2014 में सिद्धारमैया सरकार ने जातीय जनगणना का काम शुरू किया था, लेकिन विरोध होने पर सामाजिक और आर्थिक सर्वे का नाम देकर जातीय जनगणना का काम कर्नाटक प्रदेश में पूरा कराया था. लेकिन साल 2017 में इस रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं कराया गया और इसकी वजह तकरीबन दो सौ नई जातियों के सामने आने की बात कही गई है. साल 2011 में लालू प्रसाद और मुलायम सिंह के दबाव में कांग्रेस ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना कराने का काम पूरा किया था.
साल 2016 में जाति को छोड़कर सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना का डाटा मोदी सरकार ने जारी कर दिया. जातियों का रॉ डाटा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के पास पड़ा है, लेकिन जातियों के क्लासिफिकेशन में कई सारी पेचीदगियों की वजह से रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हो पाई है. ज़ाहिर है यूपी बिहार में ओबीसी का बड़ा हिस्सा क्षेत्रीय दलों का समर्थक रहा है. जातिगत जनगणना कराने के बाद क्षेत्रीय दल नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ज्यादा ओबीसी कोटे की मांग कर सकते हैं, जो देश में मंडल-2 की स्थितियां पैदा कर सकती है. इस आधार पर क्षेत्रीय पार्टियों का सिमटता जनाधार बीजेपी की मजबूत पड़ रही मंडल कमंडल गठजोड़ को जोरदार नुकसान पहुंचा सकता है.
इसलिए आरजेडी समेत जेडीयू के सुर इस मसले पर एक समान हैं. बीजेपी प्रवक्ता डॉ. रामसागर सिंह कहते हैं कि केन्द्र सरकार जातीय जनगणना कराने की पक्ष में नहीं है लेकिन प्रदेश सरकार चाहे तो वो जातीय जनगणना करा सकती है. ज़ाहिर है बीजेपी कर्नाटक और केन्द्र द्वारा कराए गए सर्वे की पेचीदगियों को बखूबी समझ रही है और देश में तकरीबन एक लाख उपजातियों के नाम सामने आने को लेकर बखेड़ा खड़ा करने से बच रही है. लेकिन बीजेपी जातीय जनगणना की पक्षधर नहीं है, इसलिए अब गेंद राज्य सरकार के पाले में डाल रही है.
जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी की सोच अलग क्यों है?
बीजेपी दो ही जातियों का हवाला देकर मामले से पल्ला झाड़ रही है. बीजेपी इसे अमीर और गरीब की श्रेणी में बांट रही है. बीजेपी मानती है कि केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही 60 योजनाएं जाति और धर्म से ऊपर उठकर जनकल्याण के लिए बनाई गई है. बिहार की स्थिती अभी भी अन्य राज्यों की तुलना में दयनीय है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 26 फीसदी बच्चे स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं, जबकि केरल में ये आबादी 1.78 फीसदी है. सैनिटेशन, इलेक्ट्रिफिकेशन से लेकर कई मुद्दों पर बिहार देश के अन्य राज्यों की तुलना में कही पीछे है. गरीबी के लिहाज से यहां की 52 फीसदी आबादी गरीब है.
वहीं सरकारी अस्पताल की सुविधा 80 फीसदी लोग ले नहीं पाते हैं. जा़हिर है गरीबी, भ्रष्टाचार और उद्योगों का अभाव यहां की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन जातीगत आरक्षण को तूल देकर बीजेपी को घेरने की तैयारी है. इस कड़ी में जेडीयू भी बीजेपी को घेरने की फिराक में है. साल 2015 में मोहन भागवत द्वारा आरक्षण पर समीक्षा की बात कहे जाने के बाद बीजेपी करारी हार का सामना कर चुकी है. इसलिए यूपी में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के बाद जातीगत जनगणना के द्वारा मजबूत हो रही मंडल कमंडल के गठजोड़ को तोड़ने की नई सियासी चाल चलाए जाने की कवायद समझी जा रही है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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Gulabi Jagat
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