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- जातिगत जनगणना का

भारत में जाति जनगणना को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है उसकी मुख्य वजह स्वतन्त्र भारत में सामाजिक न्याय की बयार बहना है जबकि ब्रिटिश राज के दौरान इसका मुख्य कारण अंग्रेजों की शासन पद्धति की जड़ें जमाना था। यही वजह है कि आज जब संसद से लेकर सड़क तक जाति जनगणना की बात होती है तो 1931 की जाति जनगणना का उदाहरण दिया जाता है और कहा जाता है कि भारत में यह अंतिम जाति जनगणना थी। मगर अंग्रेज हर दस वर्ष जनगणना कराया करते थे और 1941 में भी जनगणना हुई थी मगर द्वितीय युद्ध की विभीषिका की वजह से इसके पूरे आंकड़े नहीं मिल पाये थे। पूरी दुनिया में भारतीय उपमहाद्वीप एक मात्र ऐसा इलाका माना जाता है जहां जातियों के आधार पर समाज बंटा हुआ है और जातियों के आधार पर सामाजिक वर्गों की आर्थिक स्थिति तय होती रही है और उनके व्यवसाय बंटते रहे हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो चन्द्रगुप्त मौर्य के काल से लेकर ब्रिटिश इंडिया के समय तक हमें जातिगत आधार पर जनसंख्या की गणना किये जाने के प्रमाण मिलते हैं। परन्तु भारत के स्वतन्त्र होने के बाद परिस्थितियां गुणात्मक रूप से बदली और भारतीय संविधान ने हर समाज व सम्प्रदाय के हर नागरिक को बराबर के अधिकार देकर घोषणा की कि उसके व्यक्तिगत विकास के लिए 'राज से लेकर समाज' के सभी स्रोत बराबरी के आधार पर उपलब्ध रहेंगे। इसे ही बाद में सामाजिक समता का नाम दिया गया और प्रत्येक व्यक्ति के शिक्षित होने से लेकर आर्थिक उन्नति तक की स्थितियां निर्माण करने की गारंटी तक दी गई।
आदित्यचोप्रा
