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Written by जनसत्ता: उदयपुर में एक दर्जी की हत्या का मामला अभी शांत भी नहीं पड़ा था कि महाराष्ट्र से भी ऐसी ही दहला देने वाली घटना सामने आ गई। हालांकि यह घटना पहले की है, पर खुलासा अब हुआ। पिछले महीने की इक्कीस तारीख को अमरावती में एक दवा विक्रेता की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। हालांकि तब इस मामले को नफरती हत्या के नजरिए से नहीं देखा गया था और स्थानीय मीडिया और पुलिस ने इसे लूटपाट जैसी घटना बता डाला था। लेकिन बाद में छानबीन की गई तो घटना कुछ और निकली।
जैसा कि अब बताया गया है कि इस दवा विक्रेता ने भी भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी। इसी से नाराज हो कर उनकी हत्या की साजिश रची गई और हत्यारों ने इक्कीस जून की रात उन पर उस वक्त हमला कर दिया जब वे दुकान बंद कर घर लौट रहे थे। जब उदयपुर की घटना हुई और इसके पीछे हत्यारों का मकसद सामने आया, तब अमरावती की पुलिस ने भी इसी दिशा में जांच की और खुलासा हुआ कि यह घटना भी उदयपुर जैसी ही थी। इस घटना में भी पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अमरावती घटना की जांच भी एनआइए को सौंप दी।
इसमें कोई संदेह नहीं कि उदयपुर में हुई नफरती हत्या की घटना ने देश को हिला दिया। अब अमरावती का मामला भी इसमें जुड़ गया। देखा जाए तो दोनों घटनाओं में कई समानताएं हैं। जैसे हत्या का कारण एक ही मसले पर उठा विवाद रहा। हत्यारों ने मारने का तरीका भी एक जैसा अपनाया। मारे गए दोनों लोगों ने निलंबित भाजपा प्रवक्ता का समर्थन किया था। जाहिर है, इसे लेकर समुदाय विशेष के लोगों में प्रतिक्रिया पनप रही होगी और योजनाबद्ध तरीके से लोगों को निशाना बनाने की तैयारी की गई होगी।
अब जैसा कि उदयपुर की घटना में सामने आया है कि दोनों हत्यारे पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे थे। इनमें एक हत्यारा कई बार पाकिस्तान भी होकर आया। यह भी कि दोनों लोग लंबे समय से राजस्थान के कई जिलों में सक्रिय रूप से युवाओं को अपने नफरती अभियान में जोड़ने के काम में लगे थे। पर हैरानी की बात है कि पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। भले यह मामला आतंकी घटना न हो, लेकिन उससे कम भी नहीं है। भारत में होने वाली विवादास्पद व भड़काऊ बातों और घटनाओं का पाकिस्तान किस तरह से इस्तेमाल कर रहा है, यह भी सामने आ गया।
ऐसी घटनाएं स्वाभाविक रूप से चिंता बढ़ाने वाली हैं। जिस तरह से अलग-अलग शहरों में दो लोगों को एक विवाद के कारण एक ही तरह से मार डाला गया, उससे तो पहली नजर में यही लगता है कि यह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकता, बल्कि इसके पीछे ऐसा बड़ा गिरोह या संगठन काम कर रहा है जो हमारी अब तक हमारी खुफिया एजंसियों की नजर से बचता रहा।
गौरतलब है कि हर जिले में पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई भी होती है। जैसा कि बताया गया है कि उदयपुर की घटना में लिप्त हत्यारे कई सालों से राष्ट्र और समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। इसलिए सवाल तो उठता ही है कि इतने समय तक पुलिस इससे अनजान कैसे बनी रही? इन घटनाओं ने एक बार फिर पुलिस और खुफिया तंत्र की नाकामियों को रेखांकित किया है। अगर ये महकमे चुस्त-दुरुस्त रहें, जैसा कि सरकारें दावा करती भी रहती हैं, तो शायद ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है।