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पेट्रोल वाहनों
इस प्रकार सबसिडी के माध्यम से बिजली वाहन को प्रोत्साहन देने का भार आम आदमी पर पड़ता है, जबकि कार्बन टैक्स के माध्यम से वही भार पेट्रोल कार का उपयोग करने वाले पर पड़ता है। मैं समझता हूं कि जो लोग पेट्रोल कार का उपयोग करते हैं, उन्हीं पर यह भार पड़ना चाहिए। उनके द्वारा पेट्रोल की कार द्वारा किए गए पर्यावरण के नुक्सान का भार आम आदमी पर नहीं डालना चाहिए। इसलिए सरकार को सबसिडी के स्थान पर पेट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगाने की पॉलिसी अपनानी चाहिए। दूसरा काम सरकार को बिजली वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली स्टेशन बड़ी संख्या में बनाने चाहिए, जिससे कि बिजली की कार खरीदने वाले के लिए यात्रा सुलभ हो जाए। तब अपने देश में खरीददार का रुझान बिजली की कार की तरफ आसानी से मुड़ेगा। तीसरा कार्य सरकार को बिजली के मूल्यों में दिन और रात में बदलाव करना चाहिए। यह नीति संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगी और बिजली की कार के लिए विशष रूप से…
ग्लासगो में चल रहे सीओपी-26 पर्यावरण सम्मेलन में भारतीय वाहन निर्माताओं ने कहा है कि 2030 तक भारत में 70 फीसदी दोपहिया, 30 फीसदी कार और 15 फीसदी ट्रक बिजली से चलने वाले होंगे। यह सुखद सूचना है, लेकिन दुनिया की चाल को देखते हुए हम फिर भी पीछे ही हैं। नॉर्वे ने निर्णय किया है कि 2025 के बाद उनकी सड़कों पर एक भी पेट्रोल या डीजल का वाहन नहीं चलेगा। डेनमार्क और नीदरलैंड ने यही निर्णय 2030 से एवं इंग्लैंड और अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया ने यही निर्णय 2035 से लागू करने की घोषणा की है। चीन में इस वर्ष की पहली तिमाही में 5 लाख बिजली के वाहन बिके हैं और यूरोप में 4.5 लाख। भारत अभी इस दौड़ में बहुत पीछे है और पहली तिमाही में हम केवल 70000 बिजली के वाहन बेच सके हैं। बिजली से चलने वाले वाहन आर्थिक एवं पर्यावरण, दोनों दृष्टि से लाभप्रद हैं। पेट्रोल से चलने वाले वाहन ईंधन की केवल 25 फीसदी ऊर्जा का ही उपयोग कर पाते हैं। शेष 75 फीसदी ऊर्जा इंजन को गर्म रखने अथवा बिना जले हुए कार्बन यानी धुंए के रूप में साइलेंसर से बाहर निकल जाती है। इसकी तुलना में बिजली के वाहन ज्यादा कुशल हैं। यदि उसी तेल से पहले बिजली बनाई जाए तो बिजली संयंत्र में तेल की लगभग 15 फीसदी ऊर्जा क्षय होती है। फिर इस बिजली को कार तक पहुंचाने में 5 फीसदी का क्षय होता है और कार स्वयं में बिजली से गाड़ी को चलाने में लगभग 20 फीसदी ऊर्जा का क्षय होता है। कुल 40 फीसदी ऊर्जा का क्षय होता है और बिजली की कार के माध्यम से हम तेल में निहित 60 फीसदी ऊर्जा का उपयोग कर पाते हैं। अतः पेट्रोल से चलने वाली कार जहां 25 फीसदी ऊर्जा का उपयोग करती है, वहीं बिजली से चलने वाली कार 60 फीसदी ऊर्जा का उपयोग करती है। अथवा यूं समझें कि उतने ही तेल से बिजली की कार से आप दूनी दूरी को तय कर सकते हैं।
इसलिए बिजली के वाहन पर्यावरण के लिए सुखद हैं। आर्थिक दृष्टि से भी ये लाभदायक हैं। आने वाले समय में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक अध्ययन के अनुसार 2019 में पेट्रोल की कार का मूल्य 24000 अमेरिकी डॉलर था जो कि 2025 में बढ़कर 26000 डॉलर हो जाने का अनुमान है। इसके विपरीत 2019 में समतुल्य बिजली की कार का मूल्य 50000 डॉलर था जोकि 2025 में घटकर मात्र 18000 डॉलर हो जाएगा। अतः आने वाले समय में पेट्रोल की कार की तुलना में बिजली की कार सस्ती होगी। केंद्र सरकार बिजली वाहन को प्रोत्साहन देने के लिए लगभग 15000 रुपए की सबसिडी देती है। कई राज्य सरकारों द्वारा भी अलग-अलग दर से बिजली की कार पर सबसिडी दी जा रही है। विषय है कि बिजली की कार को बढ़ावा देने के लिए सबसिडी दी जाए अथवा पेट्रोल वाहनों पर अतिरिक्त टैक्स आरोपित किया जाए। यदि हम बिजली वाहन पर सबसिडी देते हैं तो उसका दाम कम होता है और पेट्रोल की तुलना में बिजली की कार खरीदना लाभप्रद हो जाता है। यही कार्य पेट्रोल कार पर टैक्स लगाकर हासिल किया जा सकता है।
पेट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगा दिया जाए तो पेट्रोल वाहन महंगे हो जाएंगे और पुनः उनकी तुलना में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे। दोनों नीतियों में अंतर यह है कि जब हम बिजली के वाहन पर सबसिडी देते हैं तो सबसिडी में दी गई रकम को हम जनता से किन्हीं अन्य स्थानों पर टैक्स के रूप में वसूल करते हैं। जैसे यदि बिजली की कार पर 15000 रुपए की सबसिडी दी गई तो देश के हर नागरिक को कपडे़ पर एक पैसा प्रति मीटर अधिक टैक्स देना पड़ सकता है। नतीजा हुआ कि बिजली की कार चलाने वाले को सबसिडी मिलती है और उसका भार आम आदमी पर पड़ता है। इसके विपरीत यदि हम पेट्रोल की कार पर टैक्स लगाएं और पेट्रोल वाहन को महंगा करें तो टैक्स का भार सीधे उस व्यक्ति पर पड़ेगा जो पेट्रोल वाहन को चलाता है। जो व्यक्ति बिजली की कार चलाएगा उसे अतिरिक्त टैक्स नहीं देना होगा। इस प्रकार सबसिडी के माध्यम से बिजली वाहन को प्रोत्साहन देने का भार आम आदमी पर पड़ता है, जबकि कार्बन टैक्स के माध्यम से वही भार पेट्रोल कार का उपयोग करने वाले पर पड़ता है। मैं समझता हूं कि जो लोग पेट्रोल कार का उपयोग करते हैं, उन्हीं पर यह भार पड़ना चाहिए। उनके द्वारा पेट्रोल की कार द्वारा किए गए पर्यावरण के नुक्सान का भार आम आदमी पर नहीं डालना चाहिए। इसलिए सरकार को सबसिडी के स्थान पर पेट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगाने की पॉलिसी अपनानी चाहिए। दूसरा काम सरकार को बिजली वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली स्टेशन बड़ी संख्या में बनाने चाहिए, जिससे कि बिजली की कार खरीदने वाले के लिए यात्रा सुलभ हो जाए।
तब अपने देश में खरीददार का रुझान बिजली की कार की तरफ आसानी से मुड़ेगा। तीसरा कार्य सरकार को बिजली के मूल्यों में दिन और रात में बदलाव करना चाहिए। यह नीति संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगी और बिजली की कार के लिए विशष रूप से। सामान्य रूप से दिन में बिजली की मांग अधिक और रात में कम होती है। इस कारण अक्सर थर्मल बिजली संयंत्रों को रात्रि के समय अपने को बैकडाउन करना पड़ता है। यानी कि उस समय वे अपनी क्षमता का 60 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं। इससे बिजली के मूल्य में वृद्धि होती है। यदि बिजली का दाम दिन में बढ़ाकर रात में कम कर दिया जाए तो बिजली की कार के मालिकों समेत कारखानों के लिए लाभप्रद हो जाएगा कि वह रात्रि के समय अपनी कार को चार्ज करें और कारखाने चलाएं। गृहिणी रात में वाशिंग मशीन से कपडे़ धोएगी। गृह स्वामी रात के समय ट्यूबवेल चला कर पानी की टंकी भरेगा। तब रात्रि में बिजली की मांग बढ़ेगी जिससे कि थर्मल पावर स्टेशन को बैकडाउन नहीं करना पड़ेगा और बिजली के दाम में कमी आएगी। ऐसे बिजली के मीटर उपलब्ध हैं और दूसरे देशों में उपयोग में हैं जो समय के अनुसार बिजली की खपत का रिकॉर्ड रख लेते हैं। सुझाव है कि केवल सबसिडी देने से बिजली की कार का उपयोग देश में नहीं बढे़गा। हम चीन, यूरोप और कैलिफोर्निया से पीछे ही रहेंगे। अतः उपरोक्त नीतियों को सरकार को लागू करने पर विचार करना चाहिए।
भरत झुनझुनवाला
आर्थिक विश्लेषक
ई-मेलः [email protected]
Gulabi
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