सम्पादकीय

कार्बन घटाने का लक्ष्य

Subhi
3 Nov 2021 1:45 AM GMT
कार्बन घटाने का लक्ष्य
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो सम्मेलन में यह कहकर एकबारगी सबको चौंका दिया कि भारत 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो सम्मेलन में यह कहकर एकबारगी सबको चौंका दिया कि भारत 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा। जीरो कार्बन उत्सर्जन का मतलब है कि कार्बन तो उत्सर्जित होगा, पर वह उस स्तर के ऊपर नहीं जाएगा, जितने तक पृथ्वी का वातावरण जज्ब कर सकता है। साल 2070 की यह समयसीमा हालांकि अमेरिका और यूरोपियन यूनियन (ईयू) की 2050 और चीन की 2060 की डेडलाइन से आगे है, और इसलिए हो सकता है कुछ ग्रीन एक्टिविस्ट्स को इससे निराशा हुई हो, लेकिन सम्मेलन में शामिल डेलीगेट्स की अपेक्षाओं और व्यावहारिक तकाजों को ध्यान में रखते हुए देखा जाए तो यह कोई छोटी बात नहीं कि दुनिया के चौथे सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश ने जीरो कार्बन उत्सर्जन को लेकर समयबद्ध प्रतिबद्धता जाहिर की। दूसरे, यह 50 साल आगे की दी हुई एकमात्र प्रतिबद्धता नहीं है। जो पांच संकल्प भारत ने वहां व्यक्त किए, उनमें यह भी है कि 2030 तक वह कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी लाएगा और यह भी कि इन दस वर्षों में वह ऊर्जा की अपनी कुल जरूरतों का आधा हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पूरी करने लगेगा।

भारत द्वारा तय किए गए इन लक्ष्यों की अहमियत इस बात में है कि ये हवाई नहीं हैं, हासिल किए जा सकते हैं। मगर इन तक पहुंचना आसान भी नहीं होगा। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट करने में संकोच नहीं किया कि अन्य देशों को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी समझनी होगी। यहां यह समझना भी जरूरी है कि उत्सर्जित कार्बन की कुल मात्रा के आधार पर भारत को दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक बता देने भर से पूरी तस्वीर सामने नहीं आती। तस्वीर का दूसरा पहलू तब सामने आता है, जब हम प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों पर नजर डालते हैं। यहां अमेरिका (15.5 टन), रूस (12.5 टन) चीन (8.1 टन) और ईयू (6.5 टन) के मुकाबले भारत (1.9 टन) कहीं नहीं ठहरता। इन देशों की बराबरी तक पहुंचने के लिए अभी भारत को काफी लंबी विकास यात्रा तय करनी है। इसके बावजूद भारत यह समझता है कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के सवाल ऐसे नहीं हैं, जिन पर कौन ज्यादा दोषी और कौन कम दोषी जैसी बहस की जाए। लेकिन यह तो देखना ही होगा कि कोई भी देश अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने में कोताही न बरते। इस लिहाज से विकसित देश अभी तो जलवायु परिवर्तन के मद के लिए सालाना 100 बिलियन डॉलर जुटाने का काम भी नहीं कर पाए हैं लेकिन सचाई यह है कि यह रकम जरूरत से बहुत कम है। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा कि विकसित देशों को यह रकम जल्द से जल्द 1 ट्रिलियन डॉलर कर देनी चाहिए। इससे भारत जैसे देशों को अपना संकल्प पूरा करने के लिए जरूरी मदद मिल सकेगी और पृथ्वी पर जीवन बचाए रखने का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकेगा।


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