सम्पादकीय

कारवां बदलते एहसास

Rani Sahu
16 Jun 2022 7:11 PM GMT

मोदी आगमन की शर्तों में हिमाचल की सत्ता का प्रचार हैरान करता है। हैरान राहों के ठिकाने जब जोर आजमाइश करंे, तो समझो कारवां बदल गया है। देश के प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्मशाला के रोड शो में कारवां बदलने के गहरे संकेत देते हुए भाजपा के दिल में चुनाव जीतने का मंत्र घुमा दिया। देश की नारेबाजी या देश के लिए नारेबाजी के बीच प्रधानमंत्री का यह दौरा ऐसे एहसास से भरा है, जो राजनीति के पांव चलता है और विपक्ष की चाल बिगाड़ता है। हिमाचल में चुनाव जब आंख खोल रहे हैं, तो सामने भाजपा के पोस्टर सारा युद्धक्षेत्र बटोर रहे हैं। जाहिर है एक संदेश तो मोदी आगमन ही रहता है, जबकि दूसरे स्तर पर राज्य की तस्वीर बदलने का आश्वासन। सत्ता के गलियारे दिल्ली से हिमाचल तक इतने ठेठ हो चुके हैं कि भाजपा की तंग गलियां भी अपनी मंजिल का हर आयाम ढूंढती हैं। शिमला के बाद धर्मशाला में भाजपा का लाव लश्कर फिलवक्त उन दीवारों को भी फांद सकता है, जो विरोधी पक्ष की एक-एक ईंट गिन रही हैं, लेकिन कांग्रेस की सक्रियता के सबूत हिमाचल के ऐतिहासिक पक्ष में अपनी आशाएं बटोर रहे हैं। कांग्रेस ईडी की बिसात और राहुल के पक्ष में राज्यपाल तक पहुंच कर बरस रही है, तो सैन्य पृष्ठभूमि के सवाल पर आक्रोशित युवा जिस अग्निपथ पर खड़ा हो रहा है उससे भी विपक्षी आक्सीजन का विस्तार होगा। अग्निपथ की परिकल्पना में जिस सैन्य भर्ती के नए विकल्प खड़े किए जा रहे हैं, उनका विरोध हिमाचल को भी तपा रहा है। एक अवांछित हल्ला मोदी के रोड शो के पल्ले पड़ गया। यह राज्य सरकार के लिए भी अप्रत्याशित घटनाक्रम है, लेकिन युवाओं में इस तरह का गुस्सा सीधा नहीं है। सैन्य भर्ती का विषय संवेदनात्मक, परंपरागत तथा राष्ट्र के प्रति ऐसी सौगंध है, जो हिमाचल के कमोबेश हर घर में ली जाती है। हालांकि एक पैकेज के रूप में सेना में चार साल उत्तीर्ण हो भी जाएं, खतरा तो उम्र भर के फेल होने का है।

जिस प्रदेश में राष्ट्रीय औसत की शहादत से कहीं अधिक कुल राष्ट्रीय कुर्बानियों का तीस प्रतिशत आंकड़ा जन्म लेता हो, वहां सेना की हर बात खुद्दारी और जज्बात से निकलती है। सैन्य भर्ती एक लंबी परिपाटी और ऐतिहासिक सम्मान की ऐसी परंपरा है, जो हिमाचल के हर घर में जन्म लेती है। ऐसे में 'अग्निवीर' बनाने की सारी प्रक्रिया का विरोध शुरू हुआ है, तो हिमाचल के युवा अपना सशक्त मत रखते हैं। इसमें दो राय नहीं कि मोदी रैली के दौरान हिमाचल के दो तरह के युवा सामने आए। एक वे जो एक हफ्ते से पार्टी के झंडे बुलंद कर रहे थे या जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री पर पुष्प वर्षा करते हुए अपने सारे राजनीतिक सरोकार अर्पित कर दिए। दूसरी तरह के युवा ऐेसे हैं जिन्हें हम मिट्टी में मेहनत करते देखते हैं। यह वर्ग शारीरिक कसरतें करते हुए सैन्य सेवाओं के प्रति समर्पित है। ये उन परिवारों से आते हैं जहां राष्ट्रीय सुरक्षा में न हाथ थकते हैं और न ही जज्बात बहकते हैं। यह असाधारण परवरिश है और जहां पारिवारिक शहादतों को चुन कर युवा भावना इस प्रतीक्षा में प्रबल रहती है कि कब वर्दी पहनी जाए। हम युवा को आसानी से राजनीतिक कार्यकर्ता तो बना सकते हैं, लेकिन सैन्य सेवाओं की भर्ती में खड़ा नहीं कर सकते। इसलिए युवाओं के मसलों को हम एक ही छाज से नहीं छान सकते। जो नारे धर्मशाला के गगन तक थे या जहां देश का स्वाभिमान अपने प्रधानमंत्री की शान में दंडवत था, उसके सामने अग्निपथ पर उठी आशंकाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते। वहां भी देश की भावना, भक्तिरस के नारे, वंदे मातरम और हर दिल में भारत माता का स्वरूप था। यह दीगर है कि वहां गिला यह है कि सैन्य भर्ती को इतना कमजोर किया जा रहा है कि युवा हौसले पस्त होने लगे हैं। धर्मशाला रोड शो के घोड़े बेहतरीन थे, मगर इसके विपरीत जिन युवाओं के महत्त्वाकांक्षी घुटने वर्षों सैन्य भर्ती के अभ्यास में छिल रहे हैं, उन्हें बस इतना सा मरहम चाहिए कि जब वे सेना की वर्दी पहनें तो कोई शर्त ऐसी न रहे कि मात्र चार साल में ही देश की शान में उतरे इन युवाओं की कोई वर्दी ही न उतार दे।

By: divyahimachal

Rani Sahu

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